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समाजजर्मनी

जर्मनी में गर्भपात को मंजूरी दी जानी चाहिएः विशेषज्ञ

१६ अप्रैल २०२४

जर्मन सरकार के नियुक्त किए विशेषज्ञों ने उन्हें सलाह दी है कि जर्मनी में गर्भपात को अपराध की श्रेणी से बाहर निकाला जाना चाहिए.

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गर्भपात के अधिकार की मांग के साथ बर्लिन में प्रदर्शन करते कार्यकर्ता
जर्मनी में गर्भपात को कानूनी बनाने की मांग करने वालों की तादाद बढ़ रही हैतस्वीर: Sean Gallup/Getty Images

जर्मनी में गर्भपात अपराध है और इससे जुड़े कानून बेहद सख्त. महिला संगठनों की तरफ से लंबे समय से इसे अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने की मांग हो रही है. सरकार ने इस मामले पर विशेषज्ञों का एक आयोग गठित किया. आयोग की तरफ से सोमवार को बर्लिन में विशेषज्ञों की रिपोर्ट पेश करते वक्त कहा गया, "गर्भ के शुरुआती चरणों में महिला की सहमति से गर्भपात को मंजूरी दी जानी चाहिए."

फिलहाल जर्मनी में गर्भपात बिल्कुल शुरुआत यानी 12 हफ्ते के भीतर ही संभव है. इसके लिए गर्भवती महिला को पहले काउंसलिंग के लिए जाना पड़ता है. कुछ चिकित्सा कारणों या फिर बलात्कार की स्थिति में भी गर्भपात को मंजूरी दी जाती है. हालांकि इन परिस्थितियों को अपराध संहिता में अपवाद का दर्जा दिया गया है. अगर ऐसा ना हो तो फिर गर्भपात अपराध बन जाता है जिसके लिए सजा का प्रावधान है.

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गर्भपात पर सलाह के लिए आयोग

चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के नेतृत्व में बनी तीन पार्टियों की गठबंधन सरकार ने अपने साझा कार्यक्रम में एक आयोग बनाने की बात कही थी. इस आयोग का काम यह पता लगाना था कि किस हद तक गर्भपात को अपराध संहिता से बाहर रख कर नियमों से संभाला जा सकता है.

आयोग के संयोजक लियाने वोयर्नर का कहना है, "गर्भपात की बुनियादी वैधानिकता शुरुआती चरणों में उचित नहीं है. विधानमंडल को कदम उठा कर गर्भपात को कानूनी और सजामुक्त करना चाहिए." मौजूदा नियमों की आलोचना करते हुए आयोग की उप संयोजक फ्राउके ब्रोसियस गेर्सडॉर्फ ने कहा भले ही कुछ परिस्थितियों में गर्भपात के शुरुआती चरण में इसकी मंजूरी मिल जाती है, "लेकिन फिर भी इसे गैरकानूनी माना जाता है." गेर्सडॉर्फ ने यह भी कहा कि यह सिर्फ औपचारिकता भर नहीं है. इनका सामना करने वाली महिलाओं को उससे बहुत फर्क पड़ता है कि जो वो कर रही हैं कि वह कानूनी है या नहीं. गेर्सडॉर्फ का कहना है, "इसका असर इस बात पर भी होता है कि कानूनी स्वास्थ्य बीमा की सुविधाएं मिलेंगी या नहीं."

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एग डोनेशन और सरोगेसी

आयोग को एग डोनेशन और सरोगेसी के कानून बनाने की संभावनाओं की पड़ताल करने की भी जिम्मेदारी दी गई थी. विशेषज्ञों ने माना है कि कुछ परिस्थितियों में इन दोनों को भी मंजूरी दी जा सकती है. एग डोनेशन के मामले में उनका कहना है कि, "यह डोनर की सुरक्षा और बच्चे की देखभाल सुनिश्चित करने के कानूनी आधार पर निर्भर करेगा."

यूरोपीय संघ के देशों में सिर्फ जर्मनी और लग्जमबर्ग में ही एग डोनेशन पर अब भी पाबंदी है. गोएटिंगन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर क्लाउडिया विजमान भी इस आयोग में हैं. उन्होंने कहा जैसा कि स्पर्म डोनेशन के मामले में बच्चे के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए उसकी उत्पत्ति के बारे में जानकारी जरूरी है. आयोग ने सरोगेसी के बार में भी यही बात कही है. 

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कब मिलेगी मंजूरी?

सरकार की उप प्रवक्ता क्रिश्टियाने हॉफमान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि निकट भविष्य में नए नियमों की उम्मीद नहीं है. उनका कहना है कि अलग अलग हितों को एक दूसरे के सामने परखना होगा. हॉफमान ने कहा, "हम इस पर चर्चा कराना चाहते हैं जो इस मामले में आगे बढ़ने में हमारी मदद करेगा, और यह समय के दबाव में यह कह कर नहीं किया जा सकता कि आइए जल्दी से इसे निपटा लेते हैं. वह बहुत गलत तरीका होगा." 

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जर्मनी के न्याय मंत्री मार्को बुशमान ने सोमवार को कहा कि संघीय सरकार आयोग की तरफ से जारी 600 पन्नों की रिपोर्ट का विस्तार से विश्लेषण करने के बाद संवैधानिक और अंतरराष्ट्रीय कानूनी दलीलों की पड़ताल करेगी. उन्होंने कहा, "हमें ऐसी बहस की जरूरत नहीं है जो समाज में आग लगा दे या इसे विभाजित कर दे."

स्वास्थ्य मंत्री कार्ल लाउटरबाख ने कहा कि आयोग की विशेषज्ञता रिप्रोडक्टिव सेल्फ डिटर्मिनेशन और रिप्रोडक्टिव मेडिसिन से जुड़े जटिल नैतिक सवालों का जवाब देने में बड़ी मदद करेगी. हालांकि, लाउटरबाख के मुताबिक "आखिरकार इसके लिए एक विस्तृत सामाजिक और निश्चित रूप से संसदीय सहमति की जरूरत होगी."

जर्मनी के लोग क्या चाहते हैं?

एक सर्वे के मुताबिक जर्मनी में आधिकतर लोग गर्भधारण के 12 हफ्तों के भीतर गर्भपात को कानूनी मंजूरी देने के पक्ष में है. सर्वे में शामिल 72 लोगों ने इस अवधि में बिना किसी रोकटोक के गर्भपात को कानूनी बनाने की बात कही है. यह सर्वे आरटीएल/एनटीवी की ओर से रिसर्च इंस्टिट्यूट फोर्सा ने किया था.

सत्ताधारी गठबंधन में शामिल ग्रीन पार्टी के समर्थकों में सबसे ज्यादा 82 फीसदी लोग इसके पक्ष में हैं. इसके उलट धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी के समर्थकों में सिर्फ 55 फीसदी लोग इसे कानूनी बनाने का समर्थन करते हैं. 

एनआर/आरपी (डीपीए, एपी)