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क्या बैलट पेपर से चुनावी 'धांधली' रुकेगी?

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ अगस्त २०१८

भारत में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम बनाम बैलट पेपर की बहस फिर तेज हो रही है. अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले विपक्षी दलों ने बैलट पेपरों के जरिए चुनाव कराने की मांग उठाई है.

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Indien Wahlen
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/P. Gill

सवाल है कि क्या बैलट पेपर से कथित चुनावी धांधुली पर अंकुश लगाया जा सकता है? पहले बैलट पेपरों से चुनावों के समय भी फर्जी मतदान के आरोप बड़े पैमाने पर लगते रहे हैं. इन धंधलियों पर अंकुश लगाने के लिए ही ईवीएम को अपनाया गया था.

तृणमूल कांग्रेस समेत 17 दलों ने चुनाव आयोग के साथ बैठक में अगले साल होने वाले आम चुनावों में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की बजाय बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग उठाई है. इन दलों का आरोप है कि ईवीएम में लगभग हर चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी गड़बड़ियां करती हैं.

उनकी दलील है कि इन धांधलियों को रोकने के लिए बैलट पेपर की ओर लौटना जरूरी है. हाल में उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में ईवीएम में गड़बड़ी के कई आरोप समाने आए थे. कुछ मशीनों से पता चला था कि वोटर चाहे कोई भी बटन दबाए, वोट बीजेपी के खाते में ही दर्ज होते थे. हालांकि आयोग के अधिकारियों ने ईवीएम में तकनीकी गड़बड़ी की दलील देते हुए उनको बदल दिया था. लेकिन मुद्दा जस का तस रहा. उससे पहले बीते साल मार्च उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की भारी जीत के बाद भी ईवीएम से छेड़छाड़ का मुद्दा उठा था.

भारत और जर्मनी के चुनाव, कितने अलग

भारत में वर्ष 1989-90 के दौरान बने ईवीएम का पहली बार नवंबर, 1998 के चुनावों में इस्तेमाल किया गया था. तब मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 16 विधानसभा क्षेत्रों में परीक्षण के तौर पर इनका इस्तेमाल हुआ था. उसके बाद ईवीएम पर आम राय बनने के बाद वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव इसी की सहायता से कराए गए. लेकिन अब विपक्षी दलों की मांग ने फिर यह बहस तेज कर दी है कि ईवीएम बेहतर है या बैलट पेपर.

वैसे, ईवीएम की जगह बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग नई नहीं है. वर्ष 2009 में विभिन्न लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने इन मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए बैलट पेपर की ओर लौटने की मांग की थी. उस समय कई अन्य राजनीतिक दलों मे भी बैलट पेपरों की ओर लौटने का समर्थन किया था. लेकिन चुनाव आयोग ने तकनीकी विशेषज्ञों के अध्ययन के हवाले से यह दलील देते इस मांग को खारिज कर दिया कि ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता.

बीजेपी महासचिव राम माधव कहते हैं, "तमाम दलों के बीच व्यापक सहमति के आधार पर ही ईवीएम के इस्तेमाल का फैसला किया गया था. अब अगर तमाम दल बैलट पेपर का समर्थन करते हैं तो इस पर विचार किया जा सकता है.” ईवीएम पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. इन सवालों का जवाब देने के लिए चुनाव आयोग ने वर्ष 2013 के नागालैंड विधानसभा चुनावों में कुछ ईवीएम को वीवीपैट से जोड़ दिया था. इससे वोट देने के बाद ईवीएम से निकलने वाली पर्ची देख कर वोटर को पता चल जाता है कि उसका वोट उसी उम्मीदवार को मिला है जिसे दिया गया था.

इन हारों से चौकीं बीजेपी

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईवीएम और बैलट पेपरों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं. देश में चुनावी धांधलियों का आरोप कोई नया नहीं है. सत्तर-अस्सी के दशक में जब बैलट पेपरों के जरिए चुनाव होते थे, तब भी दल धांधलियों, फर्जी मतदान और बूथ कैप्चरिंग के आरोप लगाते रहते थे.

अब ईवीएम का समर्थन करने वालों की दलील है कि इसके इस्तेमाल से बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाएं काफी हद तक खत्म हो गई हैं. लेकिन वैज्ञानिक और समाजिक कार्यकर्ता गौतम राजा कहते हैं, "दुनिया की कोई भी मशीन टेम्परप्रूफ नहीं है. ईवीएम से धांधली के लिए तकनीक की जरूरत है, बाहुबल की नहीं, जैसा कि बैलट पेपरों के दौर में होता था.”

बीजेपी और उसके सहयोगी बैलट पेपरों की खामियों का सवाल भी उठा रहे हैं. कई पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त भी ईवीएम के समर्थन में सामने आए हैं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति कहते हैं, "ईवीएम से बैलट पेपर की ओर लौटना पीछे की ओर लौटने जैसा होगा. इससे फायदा कम नुकसान ज्यादा होगा.”

ईवीएम का समर्थन करने वालों की दलील है कि इससे चुनावी प्रक्रिया शीघ्र निपट जाती है. इसके उलट बैलट पेपरों से मतदान में भी काफी वक्त लगता है और उसके बाद वोटों की गिनती में भी. ईवीएम से वोटों की गिनती में जहां तीन से चार घंटे का समय लगता है, वहीं बैलट पेपरों को छांटने और गिनने में तीन से चार दिन लग जाते हैं. इससे समय और धन दोनों की बर्बादी होती है.

इन देशों में हैं कम्युनिस्ट सरकारें

ईवीएम और बैलट पेपर, दोनों का विरोध और समर्थन करने वालों के पास अपनी-अपनी दलीलें हैं. ईवीएम समर्थकों का कहना है कि तकनीक के मौजूदा दौर में बैलट पेपर की ओर लौटना कई दशक पीछे लौटने के समान होगा. इसकी बजाय ईवीएम को तकनीकी तौर पर उन्नत बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए. उनकी दलील है कि बैलट पेपरों के इस्तेमाल से धांधली और बूथ कैप्चरिंग का दौर दोबारा लौट आएगा.

बैलट पेपर समर्थकों का आरोप है कि सरकार के निर्देश पर लगभग हर चुनाव में ईवीएम मशीनों के साथ छेड़छाड़ अब आम हो गई है. इन आरोपों से निपटने के लिए बैलट पेपरों की ओर लौटना जरूरी है ताकि लोकतंत्र की आत्मा बची रहे.

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का कहना है, "राजनीतिक दलों के तमाम सुझावों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा और समस्याओं के संतोषजनक समाधान की कोशिश की जाएगी."

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