1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

'मतपत्रों की ओर लौटने का औचित्य नहीं'

८ अगस्त २०१८

देश के प्रमुख विपक्षी दल अगले लोकसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के स्थान पर दोबारा मतपत्र के इस्तेमाल की मांग कर रहे हैं लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त इसे ठीक नहीं मानते हैं.

https://p.dw.com/p/32q4t
Wahl in Indien ARCHIVBILD 2004
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दो पूर्व चुनाव आयुक्त देश के सभी चुनाव एक साथ कराने के प्रस्ताव के भी खिलाफ हैं. उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. पूर्व प्रमुख चुनाव आयुक्तों ने कहा कि दोनों मुद्दे सैद्धांतिक रूप से संभावना के दायरे में आते हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह इतना आसान और आकर्षक नहीं है.

पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस समेत 17 दलों की ओर से योजनाबद्ध तरीके से उठाए गए उस कदम पर प्रतिक्रिया दी है, जिसमें दलों ने चुनाव आयोग पर ईवीएम की प्रामाणिकता, हेरफेर होने की संभावना और हाल के चुनावों में वोटर वैरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) की विफलता को ध्यान में रखते हुए मतपत्र प्रणाली को बहाल करने का दबाव डालने की योजना बनाई है.

लगभग तीन वर्षों तक चुनाव आयोग के शीर्ष अधिकारी रहे वी.एस. संपत ने जनवरी 2015 में अपना पद छोड़ा था. उन्होंने कहा कि चुनाव कराने के लिए मतपत्रों की ओर वापस जाने का कोई औचित्य नहीं है.

Indien Wahlen 2014 11.04.2014 Tripura
तस्वीर: Reuters

संपत ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, "इसे कोई भी स्वीकार नहीं करेगा." उन्होंने कहा, "वीवीपीएटी एक विश्वसनीय प्रणाली है, जिसके जरिए मतदाता जानता है कि उसने किसे वोट दिया है. मतपत्र पर्ची एक बॉक्स में चली जाती है, जिसे किसी भी विवाद के दौरान कभी भी सत्यापन के लिए फिर से हासिल किया जा सकता है. यह मतपत्र का काम करता है, जो ऑडिट ट्रेल छोड़ देता है."

सुरक्षा उपायों को शामिल करने और राजनीतिक दलों के दिमाग से संदेह को दूर करने के लिए संपत ने कहा कि आयोग पार्टियों के परामर्श से पर्चियों की गिनती के अनुपात को बढ़ाने के बारे में सोच सकता है. पर्ची के नमूनों की मात्रा में भी वृद्धि की जा सकती है.

एक और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि ईवीएम अपनी शुरुआत के साथ आलोचना का शिकार रही है.

उन्होंने कहा, "लोग मतपत्रों पर लौटने की बात कर रहे हैं, लेकिन इससे पहले यह जानने की जरूरत है कि हमने कैसे और क्यों मशीनों की ओर रुख किया था. मतपत्रों के साथ कई गंभीर मुद्दे थे. सबसे पहले तो यह पर्यावरण के अनुकूल नहीं है. कागजों के जरिए चुनाव कराने के लिए कागजों और कागजों के लिए असंख्य पेड़ काटने पड़ते हैं. दूसरी तरफ ईवीएम को एक बार बनाने के बाद उसे बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है."

वह आगे कहती हैं, "दूसरा कारण बड़ी संख्या में अमान्य वोटों का मुद्दा था. अगर कोई मतदाता मुहर को सही तरीके से नहीं लगा पाता है तो वोट अमान्य समझा जाता है. वोटों की गिनती के समय इस पर अनिवार्य रूप से विवाद होता है. इसके अलावा वोटों की गिनती में बहुत लंबा समय लगता है."

Indien Wahlen 2014 11.04.2014 Tripura
तस्वीर: Reuters

पूर्व मुख्य चुनाव आयु़क्त ने कहा कि इस तरह मतदान कराने के दौरान बूथ कैप्चरिंग और मतपत्रों के साथ जालसाजी के मामले भी सामने आते हैं. चुनाव आयोग को इन चुनौतियों का लगातार का सामना करना पड़ता है.

मशीनों से चुनाव कराने के फैसले की पृष्ठभूमि के बारे में वह कहते हैं कि ईवीएम छेड़छाड़ रहित है, जब तक कि आप किसी ईवीएम को पकड़ न लें और उसका मदरबोर्ड न बदल दें. लेकिन वास्तव में चुनावों को प्रभावित करने के लिए बड़ी संख्या में मशीनों की चोरी करनी होगी और फिर उन्हें चुनाव आयोग के बहुस्तरीय सख्त सुरक्षा वाले कमरों तक पहुंचाना होगा.

ईवीएम में एक चिप लगाने की बात भी कही जा रही है जो उन्हें एक विशिष्ट समय व एक विशेष तरीके से प्रभावित कर फिर सामान्य कर देती हैं. विपक्ष ने इस बारे में सवाल उठाए हैं लेकिन पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि यह संभव है."

वह कहते हैं, "क्या होता है कि जब पार्टी को चुनाव जीतने की बहुत उम्मीदें होती हैं, लेकिन वह असफल हो जाती है तो वह ईवीएम को दोषी ठहराती है. वे मतदाताओं को दोष नहीं दे सकते, क्योंकि इससे मतदाता उन्हें अगले चुनावों में और कड़ा सबक सिखा देंगे."

संपत ने कहा कि 2009 के आम चुनाव के दौरान भी मशीनों को लेकर संदेह पैदा हुए थे.

संपत ने बीते दिनों को याद करते हुए बताया, "उस समय तीन-चार पार्टियों को छोड़कर सभी ने ईवीएम पर संहेद जताया था. शिवसेना ने भी मतपत्र से चुनाव कराने की बात कही थी. हमने कहा था कि मतपत्रों की ओर वापस जाने का कोई सवाल नहीं है. उस बैठक में वीवीपीएटी के लिए पहला कदम उठाया गया था."

पूर्व शीर्ष चुनाव अधिकारी ने स्वीकार किया कि तकनीकी कारण हो, या कुछ और, हालिया चुनावों में वीवीपीएटी की बड़े पैमाने पर विफलता ने एक और विवाद खड़ा किया है.

वहीं, देश में एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे, जिस पर विधि आयोग परामर्श कर रहा है, पर संपत ने कहा, "चुनाव कानून के अनुसार कराए जाते हैं और उनके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है."

उन्होंने कहा, "अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ साथ कराए जाते हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि संबंधित सदन अपनी शर्तों को पूरा करेंगे. इन्हें स्वाभाविक रूप से अमल में आना चाहिए ना कि इसके लिए मजबूर किया जाना चाहिए."

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, "एक साथ चुनाव कराना इतना आसान नहीं है. कम से कम मैं 2019 में ऐसा होते तो नहीं देख रहा हूं. इसके लिए संवैधानिक संशोधन और एक कानूनी ढांचा चाहिए. अगर इस पर राजनीतिक दलों के बीच सर्वसम्मति होती है तो एक साथ चुनाव किए जा सकते हैं. लेकिन ऐसा कहना आसान है करना कठिन."

मोहम्मद आसिम खान (आईएएनएस)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी