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समाज

अब पूर्वोत्तर की तेल कंपनियां उग्रवादियों के निशाने पर

प्रभाकर मणि तिवारी
२२ अप्रैल २०२१

हथियारबंद उग्रवादियों के एक समूह ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के तीन कर्मचारियों का बुधवार तड़के शिवसागर जिले में लकवा स्थित एक साइट से अपहरण कर लिया.

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Indien Srinagar Sopore | Tote nach Rebellenangriff
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

अस्सी और नब्बे के दशक में के लिए देश-विदेश में सुर्खियां बटोरने वाला इलाका और खासकर असम एक बार फिर उग्रवाद के चलते सुर्खियों में है. इलाके के उग्रवादी संगठनों ने अब तेल और गैस कंपनियों को निशाना बनाना शुरू किया है. कुछ महीने पहले अरुणाचल प्रदेश में एक तेल कंपनी के दो कर्मचारियों का अपहरण किया गया था जिनको करीब चार महीने बाद संभवतः फिरौती मिलने के बाद छोड़ा गया था. अब यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के स्वाधीन गुट यानी उल्फा (आई) ने असम के शिवसागर जिले से तेल व प्राकृतिक गैस कंपनी (ओएनजीसी) के तीन कर्मचारियों का बंदूक की नोक पर अपहरण कर लिया है. उनकी तलाश में असम और नागालैंड के सीमावर्ती इलाकों में बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है.

मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने स्थिति की समीक्षा कर पुलिस और सुरक्षा एजंसियों को उन कर्मचारियों को शीघ्र अपहर्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के निर्देश दिए हैं लेकिन अब तक उनका कोई सुराग नहीं मिल सका है. अपहर्ताओं ने भी अब तक सरकार, कंपनी या अपहृत लोगों के परिजनों से फिरौती को लेकर कोई संपर्क नहीं किया है. हालांकि किसी गुट ने अब तक इस अपहरण की जिम्मेदारी नहीं ली है. लेकिन सुरक्षा एजंसियों का कहना है कि यह परेश बरूआ के नेतृत्व वाले उल्फा (आई) का ही काम है.

अपहरण का ताजा मामला

अपहरण किए गए तीनों कर्मचारी असम के ही रहने वाले हैं. उनकी पहचान मोहिनी मोहन गोगोई, रितुल सैकिया और अलकेश सैकिया के तौर पर की गई है. अपहरणकर्ताओं ने ओएनजीसी की एक एंबुलेंस में ही उन कर्मचारियों का अपहरण किया. बाद में वह एंबुलेंस नागालैंड सीमा के पास निमोनागढ़ जंगल में लावारिस मिली थी.

ओएनजीसी के एक अधिकारी बताते हैं, "कर्मचारियों और उनके परिवारों की सुरक्षा की उच्चस्तरीय समीक्षा की गई है और हम अतिरिक्त ऐहितियाती कदम उठा रहे हैं. इसमें स्थानीय पुलिस से भी मदद ली जा रही हैं." ओएनजीसी 1960 के दशक की शुरुआत से ऊपरी असम में तेल और गैस की खोज व उत्पादन में जुटी है. शिवसागर में कंपनी के लगभग दो हजार कर्मचारी काम करते हैं.

रिहाई के लिए अभियान

की सूचना मिलते ही असम और नागालैंड की सुरक्षा एजंसियों वे अपहृत कर्मचारियों की तलाश में असम-नागालैंड सीमा से सटे इलाकों में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू कर दिया है. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस घटना पर आश्चर्य जताया है. इसकी सूचना मिलते ही उन्होंने मुख्य सचिव जिष्णु बरूआ और पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत के साथ एक उच्च-स्तरीय बैठक में स्थिति की समीक्षा की और अपहृत लोगों का पता लगा कर उनकी सुरक्षित रिहाई के लिए हरसंभव कदम उठाने का निर्देश दिया. मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) जीपी सिंह मौके पर पहुंच गए हैं और तलाशी अभियान की निगरानी कर रहे हैं.

शिवसागर जिले के पुलिस अधीक्षक अमिताभ सिन्हा बताते हैं, "नागालैंड में सुरक्षा एजंसियों को सतर्क कर दिया गया है. जहां से अपहरण हुआ है वह जगह नागालैंड सीमा के करीब है. इससे संदेह है कि अपहृत लोगों को नागालैंड ले जाया गया है." सिन्हा बताते हैं कि अपहरण के तरीके से साफ है कि इसके पीछे उल्फा (आई) का ही हाथ है. वही गुट इलाके में सक्रिय है.

शिवसागर के पुलिस अधिकारियों को संदेह है कि उग्रवादी अपहृत कर्मचारियों के साथ नागालैंड के मोन जिले से होकर म्यांमार जा सकते हैं. इसलिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात असम राइफल्स को भी सतर्क कर दिया गया है.

 

कर्मचारियों के परिजन परेशान

इन कर्मचारियों के अपहरण की सूचना मिलने के बाद से ही उनके परिजन परेशान हैं. अपहृत अलकेश सैकिया के भाई अनुराग सैकिया बताते हैं, "हमारे परिवार को सुबह टीवी पर खबर देख कर अपहरण की जानकारी मिली. मेरी मां परेशान है. अलकेश ने बीते साल ही ओएनजीसी में नौकरी शुरू की थी. उसके अपहरण से किसी को क्या फायदा होगा? हम सामान्य लोग हैं. अपहर्ताओं को शीघ्र तीनों लोगों को रिहा कर देना चाहिए."

एक अन्य अपहृत कर्मचारी मोहिनी मोहन गोगोई की मां बताती हैं, "मंगलवार को मेरी मोहिनी से बात हुई थी. घर में एक शादी होने की वजह से उसे यहां आना था. लेकिन सुबह बहु ने फोन पर उसके अपहरण की सूचना दी. जिस मां के इकलौता बेटा का अपहरण हो गया हो उसके दिल पर क्या बीत रही है, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. मैं अपहरणकारियों से अपने बेटे की सुरक्षित रिहाई की अपील करती हूं."

इससे पहले बीते दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले में उल्फा (आई) ने एनएससीएन के खापलांग गुट के साथ मिल कर एक तेल कंपनी के दो कर्मचारियों का अपहरण कर लिया था. उनको चार महीने बाद हाल में रिहा किया गया है. सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि उल्फा (आई) गुट इलाके के अन्य उग्रवादी संगठनों के सहयोग से खुद को मजबूत करने की कवायद कर रहा है. इसके लिए वह अस्सी और नब्बे के दशक के अपहरण का अपना पारंपरिक तरीका अपना रहा है. उसका मकसद फिरौती के तौर पर मोटी रकम जुटाना है ताकि वह विदेशों से हथियार खरीद सके. नब्बे के दशक में संगठन ने चाय और तेल कंपनियों को निशाना बनाया था.

एक सुरक्षा विशेषज्ञ जितेन गोगोई कहते हैं, "उल्फा के दो फाड़ होने और एक गुट के शांति प्रक्रिया में शामिल होने के बाद अब बीते कम से कम छह महीनों से इलाके में परेश बरुआ वाले गुट की सक्रियता बढ़ गई है. ऐसे में समय रहते उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो निकट भविष्य में यह संगठन सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है."

 

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