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मिजोरम में बांग्लादेशी उग्रवादियों के शिविर होने का आरोप

प्रभाकर मणि तिवारी
६ जनवरी २०२१

बांग्लादेश का कहना है कि बांग्लादेश की चटगांव पहाड़ियों के अलगाववादी गुटों ने मिजोरम में अपने शिविर स्थापित किए हैं. उसने भारत सरकार से इन शिविरों को नष्ट करने को कहा है.

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Indien Agartala | Grenzstreit Tripura - Mizoram
तस्वीर: T. Debbarma

पूर्वोत्तर में सबसे शांत रहे पर्वतीय राज्य मिजोरम में अब एक बार नए सिरे से उग्रवाद सिर उठाने लगा है. एक ओर जहां पड़ोसी म्यांमार में उग्रवादी संगठन दोबारा एकजुट होने लगे हैं वहीं एक अन्य पड़ोसी बांग्लादेश ने भी राज्य के सीमावर्ती इलाको में उग्रवादियों का प्रशिक्षण शिविर चलने का आरोप लगाया है. हालांकि मिजोरम सरकार ने उसके इस आरोपों को निराधार बताया है.

दूसरी ओर, म्यांमार में उग्रवादी संगठनों और खासकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) के खापलांग गुट की बढ़ती सक्रियता सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है. भारतीय विदेश सचिव हर्ष सिंगला और थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवने की हाल की दो-दिवसीय म्यामांर यात्रा के दौरान भी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया गया था. सुरक्षा एजंसियों का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान सुरक्षा के मोर्चे पर पहले की तरह ध्यान नहीं दिए जाने का फायदा उठाते हुए इन संगठनों ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं और हाल में भारतीय सुरक्षा बलों पर कई हमले भी किए हैं.

बांग्लादेश का आरोप

असम की राजधानी गुवाहाटी में भारत के सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड्स (बीजीबी) के बीच महानिदेशक स्तर की 51वीं बैठक के बाद बांग्लादेश की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि बांग्लादेश की चटगांव पहाड़ियों के सशस्त्र अलगाववादी गुटों ने मिजोरम में अपने शिविर स्थापित किए हैं. उसने भारत सरकार से उन शिविरों को नष्ट करने की अपील भी की है. बीजीबी के महानिदेशक शफीनुल खान ने यह भी दावा किया कि बांग्लादेश से भारत में कोई घुसपैठ नहीं हो रही है. लेकिन बीएसएफ के महानिदेशक राकेश खन्ना ने कहा कि बीएसएफ ने अवैध रूप से भारत में घुसने का प्रयास करने वाले 3,204 लोगों को गिरफ्तार किया है. यह सब बांग्लादेशी नागरिक हैं. महानिदेशक ने कहा कि बांग्लादेश ने पहले भी मिजोरम में उग्रवादियों के शिविर होने का दावा किया था. लेकिन जांच के बाद वह दावा सही नहीं पाया गया था.

बांग्लादेश के पहली बार सार्वजनिक रूप से मिजोरम में उग्रवादी शिविरों की स्थापना के दावे को भारत-बांग्लादेश संबंधों में हाल में आई कड़वाहट से जोड़ कर देखा जा रहा है. बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ और एनआरसी जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के संबंधों में खाई बढ़ी है. इसके अलावा तीस्ता समेत कई अन्य नदियों के पानी के बंटावरे पर भी दशकों से गतिरोध बना हुआ है.

 बांग्लादेश की चटगांव पहाड़ियों में 1970 के दशक में चकमा और त्रिपुरी आदिवासियों ने शांतिवाहिनी नामक एक अलगाववादी गुट का गठन जरूर किया था. लेकिन वर्ष 1997 में बांग्लादेश के साथ हुए एक समझौते के बाद इसके तमाम सदस्यों ने हथियार डाल दिए थे. अब बांग्लादेश सरकार ने एक बार फिर उस इलाके के उग्रवादियों के सक्रिय होने और मिजोरम में शरण लेने का आरोप लगाया है.

कश्मीर में वूलर झील के किनारे बसा बांग्लादेश

आरोप का खंडन

मिजोरम पुलिस ने भी बांग्लादेश के आरोपों का खंडन किया है. राज्य के डीआईजी (उत्तरी रेंज) लालबाइकथांगा खियांग्ते कहते हैं, "पड़ोसी देश का आरोप सही नहीं है. राज्य में बांग्लादेशी उग्रवादी गुटों की कोई मौजदूगी नहीं है.” उनका कहना था कि मीडिया में इस आशय की खबरें सामने आने के बाद पुलिस ने इस मामले की गहन जांच की है. लेकिन ऐसे किसी शिविर का अस्तित्व सामने नहीं आया है. वह कहते हैं, "बांग्लादेश सरकार पहले भी मिजोरम में उग्रवादी गुटों की मौजूदगी के आरोप लगाती रही है. मिजोरम उग्रवाद-मुक्त राज्य है. यहां पहले सक्रिय तमाम हथियारबंद गुटों ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया है.”

इस बीच, भारत सरकार ने म्यामांर में यूनाइटेड स्टेट आर्मी और अराकान आर्मी समेत तमाम उग्रवादी गुटों की बढ़ती सक्रियता को इलाके की सुरक्षा और आधारभूत परियोजनाओं के लिए खतरा बताया है. सरकार का आरोप है कि चीन इन उग्रवादी संगठनों को हथियारों की सप्लाई कर रहा है. यह संगठन पूर्वोत्तर के सक्रिय उग्रवादी गुटों को भी म्यामांर में शरण और प्रशिक्षण दे रहे हैं.

"आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता चीन"

हालांकि चीनी विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि वह दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता. एक बयान में उसने कहा कि हथियारों के निर्यात के मुद्दे पर भी देश का रवैया जिम्मेदाराना है. चीन संप्रभु राष्ट्रों के साथ ही हथियारों का सौदा करता है, गैर-सरकारी संगठनों के साथ नहीं.

लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि म्यांमार की अराकान आर्मी की वजह से कोलकाता को सितवे पोर्ट के जरिए मिजोरम से जोड़ने की आधारभूत परियोजना खतरे में है. उग्रवादियों की ओर से पैदा होने वाले खतरों की वजह से इस परियोजना का काम उम्मीदों के अनुरूप आगे नहीं बढ़ रहा है. गृह मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति भी कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना (केएमटीटी) की धीमी प्रगति पर गहरी चिंता जता चुकी है. मूल परियोजना का काम तो वर्ष 2017 में पूरा हो गया था. लेकिन इसे देश के बाकी हिस्से से जोड़ने वाली सड़क अब भी अधूरी है. इसे तीन साल में बनना था. लेकिन अब तक इसका आधा हिस्सा भी तैयार नहीं हो सका है.

कलादान परियोजना म्यांमार में सिटवे बंदरगाह को भारत-म्यांमार सीमा से जोड़ती है. यह परियोजना पूर्वी बंदरगाहों से म्यांमार और देश के पूर्वोत्तर हिस्से तक माल लदान के लिए एक मल्टीमॉडल प्लेटफॉर्म बनाने के उद्देश्य से भारत और म्यांमार की ओर से साझा तौर पर शुरू की गई थी. इससे पूर्वोत्तर राज्यों में समुद्री मार्गों को खोलने और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. साथ ही यह भारत और म्यांमार के बीच आर्थिक, वाणिज्यिक और सामरिक संबंधों का मूल्य संवर्धन भी करती है. यह परियोजना कोलकाता से सिटवे तक की दूरी को लगभग 1328 किलोमीटर तक कम कर देगी और संकरे सिलीगुड़ी गलियारे (जिसे चिकन नेक भी कहा जाता है) के जरिए से माल परिवहन की निर्भरता को कम कर देगी. इसके पूरा होने पर कोलकाता से मिजोरम के बीच की दूरी एक हजार किलोमीटर से भी ज्यादा घट जाएगी और इस यात्रा में लगने वाला समय भी चार दिन कम हो जाएगा.

इलाके में उग्रवादियों की बढ़ती सक्रियता पर अंकुश लगाने के लिए भारत और म्यांमार के सुरक्षाबलों ने बीते साल फरवरी में सीमावर्वती इलाकों में साझा अभियान चलाया था. तब अराकान आर्मी के काडर मिजोरम की सीमा के करीब आ गए थे. उसके बाद इस संगठन की सक्रियता एक बार फिर बढ़ गई है.

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