हेरमन हेस्से: डेमिआन
१३ दिसम्बर २०१८हेरमन हेस्से उस समय 40 साल के थे जब उनका उपन्यास डेमिआन 1919 में पहली बार एमिल सिनक्लेयर के छद्म नाम से प्रकाशित हुआ था. ये नाम उन तमाम संदर्भों से स्पष्ट रूप से प्रेरित था जिन्होंने हेस्से के जीवन में प्रमुख भूमिका निभाई थी. मिसाल के लिए "सिनक्लेयर” नाम, इसाक फॉन सिनक्लेयर की ओर इशारा है, जिनका जन्म 1775 में हुआ था, हेस्से से सदी से भी ज्यादा समय पूर्व.
इसाक फॉन सिनक्लेयर एक जर्मन राजनयिक और लेखक थे. फ्रीडरिष होएल्डरलिन उनके खास दोस्त थे. होएल्डरलिन जर्मन कवि और दार्शनिक थे जो दुनिया भर में प्रेम और दर्द के बारे में अपने आदर्शमूलक लेखन के लिए जाने जाते हैं. ये सभी विषय, दर्शन, मित्रता, प्रेम और नाश, डेमिआन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जो आश्चर्यजनक रूप से कमोबेश युवा-वयस्क साहित्य के रूप में लिखा गया था.
कहानी एमिल सिनक्लेयर की युवावस्था पर केंद्रित है और प्रथम पुरुष में कही गई है. एमिल एक छोटे कस्बे के माहौल में बड़े होते हैं जहां जीवन के सभी पहलुओं पर धर्म का पूरी तरह से कब्जा है. यहां स्वेबिया में हेस्से के अपने गृहनगर काल्व का संदर्भ रखा गया है.
जीवन के अर्थ की छटपटाती तलाश
इस सेटिंग के तहत एमिल सिनक्लेयर की रोजाना की जिंदगी कायदे की है, सुरक्षित, आश्रित और "हल्कीफुल्की.” लेकिन इसका एक स्याह पहलू भी है, जिसकी ओर वो खुद को अधिक से अधिक खिंचा हुआ महसूस करता है. ये उसके शहर का अंडरवर्ल्ड है जहां नौकरों, चीथड़ों में लिपटे व्यक्तियों, चोरों और छुटभैये अपराधियों का बोलबाला है. जैसे जैसे सिनक्लेयर इस संसार में गहरे उतरता है, वो अपने ही झूठों के जाल में फंसता जाता है, और इस तरह खुद को ब्लैकमेल का शिकार बना बैठता है.
अपने नये सहपाठी माक्स डेमिआन से दोस्ती के बाद ही वो हालात के चंगुल से खुद को आजाद करा पाने में सफल हो पाता है.
हेस्से की कहानी, एक नौजवान की जीवन के अर्थ की तलाश के बारे में बताती है. फिर भी एमिल के वयस्क होने की घटना किसी पूर्वानुमेय, सीधे-सपाट तरीके से संपन्न नहीं होना चाहती.
"मैं वासना के आत्मविनाशी कोलाहल में जी रहा था, और जबकि मेरे स्कूल के सहपाठी मुझे एक लीडर के तौर पर देखते, बहुत बड़ी मुश्किल ये थी कि भयानक तेजतर्रार और चतुर लड़के ने मेरे भीतर कहीं गहरे एक कातर आत्मा छिपा दी थी जो भय से फड़फड़ाती रहती थी.”
तकलीफ का स्रोत
समय समय पर, एमिल का दोस्त डेमिआन प्रकट हो जाता है और उसे एक नयी दिशा खोजने में मदद करता है, जिंदगी का नया फलसफा, आचार की एक पद्धति जो अच्छे और बुरे के बीच भेद करने वाले पूर्व निर्धारित मापदंडों का इस्तेमाल नहीं करती, बल्कि दोनों को एक ही अवधारणा में पिरोने की कोशिश करती है.
"मैं सोचता हूं कि मुझे संगीत पसंद है क्योंकि इसका नैतिकता से बहुत थोड़ा सा लेनादेना है. बाकी हर चीज नैतिक या अनैतिक है और मैं ऐसी चीज की तलाश में हूं जो नैतिक न हो. नैतिकता ने हमेशा मुझे तड़पाया ही है.”
एमिल सिनक्लेयर की जिंदगी में एक और रोल मॉडल दाखिल होता है, डेमिआन की मां एफा. न सिर्फ वो उसे बौद्धिक तौर पर प्रेरित करती है, बल्कि जल्द ही उसकी कामनाओं की मुराद भी बन जाती है. वे कामनाएं, हालांकि, अतृप्त ही रह जाती हैं. "फ्राऊ एफा” (श्रीमती ईफा) कहती हैं कि जो वो बनना चाहता है वो महज उसकी एक व्यंजना हैं.
इसके फौरन बाद, पहला विश्व युद्ध भड़क उठता है और सिनक्लेयर को मोर्चे पर भेज दिया जाता है. एक ग्रेनेड हमले में वो बुरी तरह घायल हो जाता है. विस्फोट के क्षण में, वो एक तरह से दोबारा जन्म लेता है. सैन्य अस्पताल में होश आते ही, अप्रत्याशित रूप से डेमिआन उसे फिर मिल जाता है, जख्मी होकर जो मौत के कगार पर है. उस क्षण सिनक्लेयर को महसूस होता है कि वो अब अपने दोस्त और गाइड को अलविदा कह सकता है, सिनक्लेयर ने आखिरकार खुद को पा लिया है.
कविता के रास्ते मनोविश्लेषण
हेस्से की वयस्कता हासिल करने की कहानी प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने के फौरन बाद प्रकाशित हुई थी. युद्ध की आपदा उपन्यास में साफ जाहिर हुई है, और हेस्से की युंगवादी मनोविश्लेषण में दिलचस्पी भी. किताब पर काम करते हुए हेस्से ने मनोविशेषज्ञ कार्ल युंग के एक छात्र को अपना "उपचार” करने की अनुमति दी थी, जिससे ये पता चल सकता है कि साहित्यिक विद्वानों ने डेमिआन को युंग के काम का "काव्यात्मक अवतार” क्यों कहा हैः
"हर चीज जो हमने इकट्ठा की वो हमें हमारे समय और हमारे समय के यूरोप की उसी प्रत्यालोचना की ओर ले गई. इसके विशालकाय प्रयासों ने शक्तिशाली नये मानव हथियारों की रचना की लेकिन आखिरकार वे आत्मा की एक अथाह और अपमानजनक तनहाई में खत्म हो गये. उसने समस्त विश्व पर तो कब्जा कर लिया लेकिन अपनी आत्मा गंवा दी.”
डेमिआन उपन्यास जब पहली बार प्रकाशित हुआ था, सिनक्लेयर का सफर हेस्से के पाठकों के लिए एक सबक की तरह देखा गया था कि युद्ध के दर्द और तबाही की वजह से अपनी जिंदगियों पर नियंत्रण में आ गई कमी से जूझने के रास्ते पर वे कैसे चलें, कैसे उसकी तलाश करें. खंदकों से लौटे बहुत सारे युवा, विक्षिप्त हो गये थे. उनमें से हर एक ने अपनी नयी दिशा की तलाश की, अच्छे और बुरे के उनके पैमाने हिंसात्मक तौर पर हिल चुके थे. हेस्से का उपन्यास उनकी भावनाओं को पकड़ता है, वे एमिल सिनक्लेयर में और उसकी अपनी अपनी तलाश की जद्दोजहद में खुद की पहचान करते थे.
जर्मन उपन्यासकार थॉमस मान उन शुरुआती बुद्धिजीवियों में से थे जिन्होंने महसूस किया कि डेमिआन ने "सूक्ष्मता के विलक्षण बोध के साथ उस दौर की इतनी सारी नाजुक नब्जों को स्पर्श किया और इस तरह समूची युवा पीढ़ी को कृतज्ञ आल्हाद के साथ भावविभोर कर दिया, जो मानती थी (भले ही गलत तौर पर) कि अत्यंत गहरी दृष्टि वाला ये लेखक उनके बीच आया कोई मसीहा है.”
यहां तक कि मान ने डेमिआन के प्रगाढ़ प्रभाव की तुलना, योहान वोल्फगांग फॉन गोएथे के पहले उपन्यास, "द सॉरोज ऑफ यंग वैर्थर” के असर से की.
हेस्से, एक विद्रोही
1920 में ये पता चला कि एमिल सिनक्लेयर, हेस्से का ही छद्मनाम था. युद्ध के बारे में आलोचनात्मक लेखन के लिए उन्होंने उर्फ का इस्तेमाल किया था. इससे उन्हें अपना उपन्यास लिखने के इरादों के बारे में बोलने की ताकत मिली. "युवाओं के लिए ये एक कठिन समय है. लोगों की निजता को यथासंभव प्रतिबंधित करते हुए उन्हें एक जैसा बनाने की एक व्यापक आकांक्षा हर जगह दिखती है. मानव आत्मा उचित ही इस धक्के के खिलाफ विद्रोह कर उठती है, डेमिआन की यात्रा की बुनियाद यही है.”
लोगों को एक समान भूमिका में नाथने की वो जबरन कोशिश, हालांकि लगता नहीं कि खत्म हो पाई है. दुनिया के कई हिस्सों में राष्ट्रवाद और लोकप्रियतावाद का उभार इस तथ्य का साक्ष्य है कि हेस्से की रचनाएं हमेशा प्रासंगिक रहेंगी. वास्तव में, बदलते पैमानों और मूल्यों और गहराते संकटों के इन वक्तों में, डेमिआन में उठाए गये मुद्दों से ज्यादा सामयिक और उपयुक्त भला क्या होगा.
हेरमन हेस्सेः डेमिआन, पेंग्विन क्लासिक्स, 1919
हेरमन हेस्से का जन्म काल्व में 1877 में हुआ था. नाजी दौर में उनकी रचनाएं ब्लैकलिस्ट में थीं और दूसरे विश्व युद्ध के बाद भी, जर्मनी में उन्हें व्यापक स्वीकृति नहीं मिल पाई. इस बीच, उनकी रचनाएं 1960 के दशक में अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हुईं जिसका असर बाद में जर्मनी में भी हुआ. 1946 में दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के एक साल बाद हेस्से को साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 1955 में जर्मन पुस्तक मेले में उन्हें पीस प्राइज से नवाजा गया. उनकी ग्रंथ सूची में दो दर्जन से ज्यादा रचनाएं शामिल हैं जिनमें स्टेपनवोल्फ, सिद्धार्थ और डेमिआन जैसे अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर शामिल हैं. 1962 में हेस्से का देहांत हो गया.