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साहित्य

हाइनरिष मान: एक वफादार प्रजा

सबीने कीजेलबाख
१३ दिसम्बर २०१८

डीडेरिष हेसलिंग एक आज्ञाकारी, धूर्त और राष्ट्रवादी कायर है- ऐसा निरंकुश जो कमजोरों को कुचलता है. मान का उपन्यास प्रथम विश्व युद्ध से ठीक पहले के जर्मन साम्राज्य का एक तीखा विश्लेषण है.

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Heinrich Mann
तस्वीर: picture-alliance/akg-images

जर्मन क्या है? डीजल कारें? जुराबों के साथ सैंडल? समयनिष्ठा? दक्षता? या फिर ये है चापलूसी या  दास भावना? सौ साल पहले, लेखक हाइनरिष मान ने एक ऐसे जर्मन प्रारूप की रचना की थी, जिसके साथ जर्मनी के लोग आज अपनी पहचान कतई नहीं जोड़ना चाहते हैं. वो एक आततायी था, जो ऊपर बैठे लोगों के सामने तो झुक जाता था और नीचे वालों को लतियाता था. एक घिनौना प्राणी, कट्टर राष्ट्रवादी और धूर्त. जर्मन साम्राज्य में डीडेरिष हेसलिंग जैसे कई लोग थे. ये किताब पाठकों को ये जानने का अवसर देती है कि क्यों जर्मन पहले विश्व युद्ध में भागीदारी को लालायित थे.

कमजोर से क्रूर तक

"डीडेरिष हेसलिंग, हर चीज से डर जाने वाला और कान के दर्द से अक्सर परेशान रहने वाला, सपने देखने वाला एक नाजुक बालक था. सर्दियों में गर्म कमरे से बाहर जाने से उसे नफरत थी, और गर्मियों में उस संकरे से बगीचे से निकलने में, जो कागज फैक्ट्री के चीथड़ों की बास से भरा था और जहां अमलतास और एल्डर के पेड़ों को पुराने मकानों के लकड़ी के खांचो वाली तिकोनी छतें ढांक लेती थीं. डीडेरिष अपनी प्यारी परीकथाओं वाली किताब से आंख उठाकर ऊपर देखता तो अक्सर बुरी तरह डर जाता था. उसके ही जितना बड़ा एक मेंढक उसकी बगल में बैठा हुआ होता, बिल्कुल अविचलित, स्थिर! या दीवार के सामने एक बौना, जो अपनी कमर तक धंसा हुआ था, उसे घूरता रहता था! उसके पिता तो बौने और मेंढक से भी ज्यादा खतरनाक थे और ऊपर से उस पर उनके प्रति प्यार जतलाने की बाध्यता भी थी.”

डीडेरिष हेसलिंग एक ऐसे आदमी का बेटा है जो एक छोटे से शहर में एक छोटी सी पेपर फैक्ट्री का मालिक है. वो ख्वाबों में डूबा, संवेदनशील लड़का है लेकिन ऐसा लड़का जो कम उम्र से ही सत्ता और आधिपत्य की ख्वाहिश रखता है. वो पढ़ने के लिए बर्लिन जाता है और थोड़े से समय के लिए सेना में रहता है और फिर वहां से निकलने में सफल हो जाता है. इसके बावजूद, वो अपने सैनिक दोस्तों के देशभक्तिपूर्ण उद्गारों और राजा के प्रति अंधभक्ति का नशा महसूस करने लगता है.

Deutsches Reich Kaiser Wilhelm II.
जर्मन सम्राट विल्हेम 1913 में बर्लिन में एक परेड मेंतस्वीर: picture-alliance/akg-images

"वाह वाह! डीडेरिष चिल्लाया. उत्साहपूर्ण उन्माद में उसने सभी सिरों से बहुत ऊपर, एक ऐसी जन्नत की ओर जहां हमारी सबसे शानदार भावनाएं तैरती हैं, अपनी हैट उछाली. वहां विजय के उल्लास से भरे हुए अभिषेकों के प्रवेशद्वार से होते हुए, घोड़े पर सवार सत्ता थी अपनी चौंधियाने वाली लेकिन जैसे पत्थर पर अंकित विशेषताओं के साथ. सत्ता जो हमें ऊपर उठा देती है और जिसके खुरों को हम चूमते हैं.

जब उसके निरंकुश पिता की मौत हो जाती है, डीडेरिष घर लौट आता है, जहां वो न सिर्फ पेपर फैक्ट्री का मालिक बन जाता है बल्कि कपट से और डरा धमका कर, अपने प्रतिस्पर्धियों को अनैतिक रूप से ठप करने में सफल भी हो जाता है. वो राजनीतिक ताकत भी झपट लेता है. उसकी शादी, परिवार की उसकी शुरुआत भी एक सोचीसमझी चाल होती है. आखिर में उसका गृहनगर, मौकापरस्तों और राष्ट्रवाद से अंधे देशभक्तों के अड्डे में तब्दील हो जाता है.  

साम्राज्य पर व्यंग्य

द लॉयल सब्जेक्ट (एक वफादार प्रजा) में, मान जर्मन साम्राज्य पर व्यंग्य करते हुए साथ ही साथ शासक विल्हेम द्वितीय की सत्ता संरचनाओं का एक तीखा विश्लेषण भी पेश करते हैं. उनकी रचना समकालीन ऐतिहासिक उपन्यासों के आज के पैमाने निर्धारित करती है, उन्हें मौजूदा घटनाओं की पृष्ठभूमि के सामने घटित होते हुए एक मनोरंजक कथानक से कुछ अधिक होना होगा. मान ने अपने राजनीतिक झुकाव को भी कभी नहीं छिपाया. उपन्यास में उन्होंने उसे एक बूढ़े 19वीं सदी के क्रांतिकारी बक के किरदार में पिरो दिया.

बक उन लोगों में से है जिन्हें डीडेरिश ने क्रूरतापूर्वक सत्ताच्युत किया था. और वो एक सार्वजनिक सभा में आखिरी बार स्टैंड लेने की हिम्मत करता है और   आदर्शों की बात करता हैः

"लोगों के हित दांव पर लगे हैं, और लोगों में हर एक व्यक्ति आता है, उन्हें छोड़ जो गलती दोहराते हैं, वो गलती जो हमारी जवानी में अपनी खुशहाली को संगीनों के सुपुर्द करने की हुई थी.”

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मान और उनकी पत्नी नेली 1940 में अमेरिका पहुंचेतस्वीर: AP

पैगम्बर जिसे न मिला प्यार

मान ने ये उपन्यास 1906 और 1914 के दरम्यान लिखा था. और शुरू में ये एक पत्रिका में धारावाहिक उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुआ था. प्रथम विश्व युद्ध में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. फिर 1918 में ये दोबारा प्रकाशित किया गया. उपन्यास की तत्काल करीब एक लाख प्रतियां बिक गयीं. यह मान के जीवन की एक सच्ची महान सफलता थी. लेकिन किताब की भरपूर आलोचना भी हुई, और मान को अपने देश में देशद्रोही करार दिया गया.

आज इस किताब को और भी ज्यादा स्याह भविष्य पर पैगंबरी दृष्टि के तौर पर पढ़ा जा सकता है जो आया ही चाहता था. गुलाम मानसिकता वाला एक शख्स अपने विनाशकारी क्रोध और भावनात्मक संवेदनहीनता में जर्मन नाजीवाद का पुरखा है जिसने चंद दशकों बाद ही यूरोप को नरक में धकेल दिया था.

हाइनरिष मानः द लॉयल सब्जेक्ट, द कोंटीनुम इंटरनेशनल पब्लिशिंग ग्रुप (जर्मन टाइटलः डेअ उंटरटान), 1918

हाइनरिष मान (1871-1950) जानेमाने जर्मन लेखक थोमस मान के बड़े भाई थे. उनकी रचनाओं को अक्सर सामाजिक आलोचना के रूप में देखा जाता है. द लॉयल सबजेक्ट के अलावा हाइनरिष मान के अत्यधिक प्रसिद्ध उपन्यासों में प्रोफेसर उनराट (मोटे तौर पर जिसका अनुवाद है- प्रोफेसर कबाड़) और फ्रांस के हेनरी चतुर्थ के जीवन पर केंद्रित दो रचनाएं हैं. नाजी हुकूमत ने मान से उनकी जर्मन नागरिकता छीन ली थी. वे फ्रांस, स्पेन और आखिरकार अमेरिका जाकर बस गये थे. जर्मनी लौटने की योजना से चंद दिन पहले ही उनकी अमेरिका में मृत्यु हो गई.

थोमस मान: प्रतिभाशाली परिवार