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सारकोजी: यूरो का साथ नहीं छोड़ेंगे

२७ जनवरी २०११

स्विट्जरलैंड के दावोस में पांच दिवसीय विश्व आर्थिक फोरम में गुरुवार का दिन यूरोप का दिन रहा. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी ने कहा है कि यूरो मुद्रा को समाप्त किए जाने की कोई संभावना नहीं है.

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तस्वीर: AP

फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी ने यूरोपीय मुद्रा यूरो का बचाव करते हुए कहा है, "हम यूरो का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे." गुरुवार को दावोस में विश्व आर्थिक फोरम को संबोधित करते हुए सारकोजी ने स्वीकार किया कि ग्रीस और आयरलैंड को सहायता दिए जाने की जरूरत पड़ने के बावजूद 17 देशों वाली मुद्रा के भविष्य पर चिंता है.

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तस्वीर: picture-alliance / Helga Lade Fotoagentur GmbH

हालांकि उन्होंने कहा कि यूरो के नहीं रहने के परिणाम इतने भयानक होंगे कि हम उसके बारे में सोच भी नहीं सकते. फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने, जो प्रमुख आर्थिक सत्ताओं के संगठन जी-20 के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं, इस पर जोर दिया कि सट्टेबाजी और जरूरी सामानों की कीमतों में उतार चढ़ाव पर काबू पाने के लिए कड़े नियम बनाने की जरूरत है.

दावोस का सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब यूरोपीय संघ भारी बजट घाटे की समस्या से जूझ रहा है. यूरोपीय केंद्रीय बैंक के प्रमुख जाँ-क्लोद त्रिचे ने कहा कि यूरोप की साझा मुद्रा किसी संकट का सामना नहीं कर रही है, लेकिन अधिक निगरानी रखने की जरूरत है.

फ्रांसीसी विज्ञापन कंसर्न पब्लिसिस के मुख्य कार्यकारी मटरिस लेवी ने कहा, मैं समझता हूं कि यूरोपीय व्यवस्था ने अच्छी तरह काम किया है. उन्होंने कहा, "अगर आप पीछे मुड़कर देखें कि यूरोप में क्या हो सकता था, यदि हमारे पास यूरोपीय संघ और हाल में हुआ समन्वय नहीं होता, तो मैं समझता हूं कि हम भयानक संकट में होते."

कर्ज में डूबे ग्रीस को पिछले साल दिवालिया होने से बचने के लिए यूरोपीय संघ की मदद लेनी पड़ी. बहुत से लोगों को आशंका थी कि यदि ग्रीस दिवालिया हो जाता है तो साझा मुद्रा की परियोजना का दीवाला निकल जाएगा. पिछले ही साल आयरलैंड को भी आर्थिक मुश्किलों से बचने के लिए यूरोपीय संघ से मदद की अपील करनी पड़ी.

अमेरिकी इंवेस्टमेंट बैंक जेपी मॉर्गन के अध्यक्ष जेम्स डाइमन ने कहा कि उनके विचार में यूरोपीय संघ इतिहास के सबसे बड़े मानवीय प्रयासों में से एक है. लेकिन उनके विचार में सबसे बड़ी समस्या यूरोपीय संघ के देशों में सामाजिक अंतरों की है.

उन्होंने कहा, "आधारभूत समस्या यह है कि एक देश है, जहां रिटायरमेंट की उम्र 100 फीसदी पेंशन के साथ 55 वर्ष है, उदारवादी सामाजिक कल्याण कार्यक्रम हैं और काम के घंटे प्रति सप्ताह 33 घंटे. दूसरी ओर एक देश है जहां प्रति हफ्ते 40 घंटा काम करना पड़ता है और रिटायर होने की उम्र 65 है. जल्द ही लोग कहने लगेंगे कि हम उनकी अय्याशी के लिए पैसा नहीं देंगे."

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: एस गौड़

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