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भारत: जूस के डिब्बे के साथ अब नहीं मिलेगी स्ट्रॉ

आमिर अंसारी
१४ जून २०२२

5 से 20 रुपये के बीच मिलने वाला जूस, लस्सी और एनर्जी ड्रिंक और छाछ जैसे टेट्रा पैक के साथ आने वाली स्ट्रॉ के दिन लदने वाले हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह से रोक लगनी वाली है.

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टेट्रा पैक के साथ आने वाली प्लास्टिक स्ट्रॉ हो जाएंगी बंद
टेट्रा पैक के साथ आने वाली प्लास्टिक स्ट्रॉ हो जाएंगी बंदतस्वीर: Aamir Ansari/DW

एक ओर जहां सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर एक जुलाई से लगने वाली रोक से पर्यावरण कार्यकर्ता खुश हैं वहीं टेट्रा पैक में अपने उत्पाद बेचने वाली कंपनियां घबराईं हुई हैं. ये वो कंपनियां हैं जिनके उत्पाद छोटे पैकेट में आते हैं और उनके साथ स्ट्रॉ लगी होती है. अमूल, पारले और अन्य पेय पदार्थ उत्पादन करने वाली कंपनियां अपने उत्पाद के साथ सिंगल यूज स्ट्रॉ देती है. सिंगल यूज प्लास्टिक वह प्लास्टिक होता है जिसका इस्तेमाल एक ही बार किया जाता है और फिर ग्राहक उसे फेंक देता है. ये सिंगल यूज प्लास्टिक गुजरते समय के साथ लैंडफिल साइटों पर कूड़े का अंबार बन जाते हैं.

इससे पहले भी सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लग चुका है लेकिन पहले 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक के आइटम पर बैन लगा था. अब जो बैन लगने वाला है वह 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक पर लगने वाला है.

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जानिए सिंगल यूज प्लास्टिक के नुकसान

सॉफ्ट ड्रिंक्स बनाने वाली कंपनियां भारत में हर साल 6.5 अरब डॉलर का कारोबार करती हैं. इस बाजार में प्लास्टिक स्ट्रॉ के साथ बिकने वाले जूस और डेयरी प्रोडक्ट्स के छोटे पैकेटों की हिस्सेदारी 79 करोड़ डॉलर की है. इन पैकेटों की पैकेजिंग, पर्यावरण को खस्ताहाल करने में बड़ी भूमिका निभाती है. इस क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के अलावा विदेशी कंपनियां अपना उत्पाद बेचती हैं. जिनमें अमूल, पारले एग्रो, कोका-कोला, पेप्सीको, पराग, डाबर आदि शामिल हैं.

उद्योग समूह, एक्शन एलायंस फॉर रिसाइक्लिंग बेवरेज कार्टन्स (AARC) ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर कहा है कि विकल्प के बिना इस तरह का कदम उठाने से उद्योग को 5,000 से 6,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. इस एलायंस में भारतीय और मल्टीनेशनल कंपनियों को मिलाकर कुल 15 कंपनियां हैं.

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एएआरसी की दलील है कि स्ट्रॉ पर बैन से ईज ऑफ डूईंग बिजनेस पर भी असर पड़ेगा. हाल ही में अमूल ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखकर प्लास्टिक स्ट्रॉ पर बैन को देर से लागू करने का आग्रह किया था. अमूल का कहना है कि इस कदम से दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक किसानों और दूध की खपत पर "नकारात्मक प्रभाव" पड़ेगा.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमूल ने 28 मई को एक पत्र लिखकर प्रधानमंत्री मोदी से स्ट्रॉ पर प्रतिबंध लगाने में देरी की अपील की थी. अमूल कंपनी हर साल अरबों छोटे डेयरी कार्टन बेचती है जिसमें प्लास्टिक की स्ट्रॉ लगी होती हैं.

भारत ने बड़ी वैश्विक और घरेलू पेय कंपनियों की कुछ प्लास्टिक स्ट्रॉ को 1 जुलाई से लागू होने वाले प्रतिबंध से छूट देने की मांग को खारिज कर दिया था, जिससे अरबों डॉलर के उद्योग पर झटके की आशंका है.

प्लास्टिक के कचरे से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है
प्लास्टिक के कचरे से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता हैतस्वीर: Getty Images/F. Goodall

क्या होंगे बैन

1 जुलाई से जिन प्लास्टिक के आइटम पर बैन लगने वाले हैं, वे हैं- प्लास्टिक के प्लेट, कप, ग्लास और चम्मच, कांटे, स्ट्रॉ, ट्रे आदि. इसके अलावा मिठाई के डिब्बे और सिगरेट के पैकेट पर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक की फिल्म, इनविटेशन कार्ड और 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैनर.

रोजगार पर भी पड़ेगा असर

जानकार बताते हैं कि हर बार अलग-अलग तरह के प्लास्टिक बैन के साथ कई फैक्ट्रियां बंद हो जाती हैं. इससे कई लोगों की नौकरियां भी चली जाती हैं. नए बदलावों से न सिर्फ लोगों के रोजगार जाने का डर है बल्कि जो लोग लोन लेकर अपनी फैक्ट्रियां चला रहे हैं, वो लोन चुकाने की हालत में भी नहीं होंगे, जिससे बैंकों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है.

इसी साल वन्यजीव संगठन वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फोरम ने कहा था, "क्योंकि प्लास्टिक सस्ता हो गया तो उत्पादकों ने बड़े स्तर पर उत्पादन करना शुरू कर दिया. और इससे ज्यादा से ज्यादा सिंगल यूज प्रोडक्ट बने, जो आखिर में कचरा बन गए."

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भारत सरकार ने अगस्त 2021 में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट अमेंडमेंट रूल्स पास किए. इन नियमों के तहत 20 किस्म के सिंगल यूज प्लास्टिक की पहचान की गई. भारत सरकार के रसायन और पेट्रोकेमिकल्स विभाग द्वारा गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत सारे कामों में प्लास्टिक सिर्फ एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है. इस प्लास्टिक की कीमत भले ही बहुत ही कम हो लेकिन पर्यावरण पर बेहद बुरा असर पड़ता है. पर्यावरण संरक्षण के लिहाज ये प्लास्टिक बेहद महंगा पड़ता है.

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