बाल गृह के पीड़ितों को मिलेगा मुआवजा!
१४ दिसम्बर २०१०पश्चिम जर्मनी के बाल गृहों में रह रहे हजारों बच्चों को 1950 और 1960 के दशक में दुर्व्यवहार और बदसलूकी का सामना करना पड़ा. पीड़ितों को मुआवजा देने की मांग पर एक जांच पैनल का गठन किया गया और दो साल तक वार्ताओं के दौर चले जिसमें मुआवजे के तरीके पर सहमति बनाने का प्रयास किया गया.
पैनल ने अपनी सिफारिश में कहा है कि कुपोषण, यातना और बदसलूकी का शिकार पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए 12 करोड़ यूरो के एक फंड की स्थापना की जाए. फंड में जर्मन सरकार, संघीय राज्यों और चर्चों से भी मदद देने के लिए कहा गया है. पीड़ितों को मुआवजा पेंशन फंड, इलाज या फिर अन्य खर्चों के लिए दिया जाएगा. जांच पैनल के सदस्य आंत्ये फोलमर का कहना है कि बाल गृहों में बच्चों को कभी उनके अधिकार नहीं मिल पाए. इसलिए वे आज भी वित्तीय मुआवजे के हकदार हैं.
जर्मन संसद बुंडेसटाग और संघीय राज्यों की संसद ने पैनल के प्रस्ताव पर फैसला नहीं लिया है. पेंशन भुगतान के लिए दो करोड़ यूरो का प्रस्ताव रखा गया है क्योंकि कई बच्चों ने 14 साल की उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था लेकिन बाल गृह अधिकारियों ने पैसा उनके पेंशन फंड में नहीं डाला. 10 करोड़ यूरो के जरिए दुर्व्यवहार और यातना को झेलने वाले पीड़ितों के इलाज में मदद मिलेगी. अब तक की जांच के मुताबिक 30 हजार लोग मुआवजे के हकदार हैं जिनमें से 2,500 पीड़ित सामने भी आ गए हैं.
लेकिन कई पीड़ितों का मानना है कि उनकी सभी मांगों को नहीं माना गया है. पीड़ित संगठनों की मांग थी कि उन्हें हर महीने 300 यूरो या फिर एकमुश्त 50 हजार यूरो का भुगतान कर दिया जाता लेकिन ऐसा हुआ नहीं. एक अन्य संगठन ने पैनल के प्रस्तावों को मजाक करार दिया है. उसका कहना है कि पीड़ितों को कम से कम मुआवजा देने की कोशिश हो रही है और अगर जरूरत पड़ी तो वे यूरोपीयन कोर्ट ऑफ जस्टिस का रुख करेंगे. जर्मनी में 1949 से लेकर 1975 तक करीब आठ लाख बच्चे बाल गृहों में रहे. बाल गृहों का संचालन सरकार के साथ साथ चर्च भी करते थे और वहां बच्चों के साथ बुरा बर्ताव किया गया और उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया गया.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: ए कुमार