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'जवाब दे महाराष्ट्र सरकार'

३० नवम्बर २०१२

आईटी कानून के दुरुपयोग पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. मुमकिन है कि अब ऐसे मुकदमे दर्ज करने के लिए राज्य के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी की इजाजत लेनी पड़े. अदालत ने महाधिवक्ता से मशविरा मांगा.

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तस्वीर: CC-BY-SA-3.0 LegalEagle

फेसबुक कमेंट के लिए गिरफ्तार की गईं लड़कियों का मामला उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर और जस्टिस जे चेलामेश्वर की बेंच ने कहा, "महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह उन कारणों को विस्तार से बताए जिनके तहत दो लड़कियों शाहीन ढाडा और रेणु श्रीनिवासन को फेसबुक पर कमेंट लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया."

राज्य सरकार को चार हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम दिल्ली की एक छात्रा की जनहित याचिका स्वीकार करते हुए उठाया. आईटी कानून को लेकर जनहित याचिका श्रेया सिंघल ने दायर की है. वरिष्ठ न्यायाधीशों की बेंच ने महाराष्ट्र के अलावा पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी को भी मामले में पक्षकार बनाया है. इन दोनों राज्यों में भी ऐसे ही मामले सामने आए.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अटार्नी जनरल जीई वाहनवती की मदद भी मांगी है. आईटी कानून की विवादास्पद धारा के बारे में अटार्नी जनरल की राय मांगते हुए कोर्ट ने कहा, "कृपया सूचना तकनीक अधिनियम 2000 की धारा 66ए का निरीक्षण करें और इस विषय पर अदालत की मदद करें."

वाहनवती ने कुछ दिशा निर्देशों का जिक्र किया है. दिशा निर्देशों में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में आईटी एक्ट से जुड़ा मामला डीजीपी रैंक के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के फैसले के बाद ही दर्ज किया जाए. महानगरों में ऐसा मुकदमा दर्ज करने के लिए आईजीपी की इजाजत की जरूरत होगी. अटार्नी जनरल स्थानीय पुलिस अधिकारियों को आईटी एक्ट से संबंधित मुकदमा दर्ज करने का अधिकार देने के खिलाफ हैं. वाहनवती ने कहा, "यह पुलिस थानों के प्रमुख द्वारा तय नहीं किया जा सकता."

श्रेया की जनहित याचिका की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने ही सर्वोच्च अदालत से यह मांग की थी कि पूरे देश के हर राज्य में पुलिस महानिदेशक की इजाजत के बिना ऐसे केस दर्ज न किए जाएं.

दरअसल यह पूरा विवाद 17 नवंबर को हिंदू कट्टरपंथी पार्टी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की मौत के बाद शुरू हुआ. ठाकरे के अंतिम संस्कार तक पूरा मुंबई शहर दो दिन के बंद रहा. शाहीन ढाडा नाम की युवती ने फेसबुक पर कमेंट लिख इस बंद का विरोध किया. शाहीन के सहेली रेणु ने कमेंट को लाइक किया. अभिव्यक्ति की आजादी वाले मुल्क में बस इतनी सी बात मुंबई पुलिस को नागवार गुजरी. शिवसेना भक्ति में जुटी मुंबई पुलिस ने दोनों युवतियों को गिरफ्तार कर लिया. उन पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का मुकदमा ठोंक दिया.

अगले ही दिन दोनों युवतियों को अदालत में पेश किया गया है. अदालत ने भी हैरान करने के वाला फैसला किया और दोनों को 15,000 रुपये के निची मुचलके पर जमानत दी. इस घटना को मीडिया ने खूब उछाला. पूर्व न्यायाधीशों ने भी इसे पागलपन करार दिया. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने पुलिस कर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की. हंगामे के बाद पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया और निचली अदालत के मजिस्ट्रेट का भी तबादला कर दिया गया. मुकदमा खारिज कर दिया गया है. लेकिन इस घटना से भारत में आईटी कानून पर बहस छिड़ गई है.

श्रेया की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह खुद ही इस मामले को संज्ञान में लेने वाला था. श्रेया ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट आईटी कानून की उस विवादास्पद धारा को रद्द करे जिसके तहत भड़काऊ इंटरनेट सामग्री को बांटने पर सजा देने का प्रावधान है. कोर्ट ने भी साफ किया है वह अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को सुरक्षित रखना चाहता है.

बीते एक साल से भारत सरकार इंटरनेट पर सख्ती दिखा रही है. अगस्त में सरकार ने फेसबुक, ट्विटर, विकीपीडिया और दूसरी वेबसाइटों से भड़काऊ सामग्री हटाने को कहा था. भड़काऊ सामग्री किसे कहा जाए, यह स्थानीय पुलिस पर निर्भर है.

ओएसजे/एनआर (पीटीआई, एएफपी)

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