जर्मन सरकार के मुख्यालय की रंगत बदलने से डर क्यों
७ मई २०२१अगर आप बर्लिन में सैर के सबसे मशहूर रास्ते, उंटेर डेन लिंडेन से गुज़रें, ब्राडनबुर्ग गेट की मेहराबों से सैलानियों की भीड़ को ठेलते हुए आगे बढ़ें और टियरगार्टन पार्क के फैलाव से दायें मुड़ जाएं- तो आप पहुंच जाएंगे राइश्टाग के सामने. ये जर्मनी की संघीय संसद (बुंडेसटाग) है और देश की सामूहिक स्मृति की सबसे विख्यात इमारतों में से एक भी.
इमारत का इतिहास कई मायनों में के पिछले 150 साल का इतिहास भी है. संयुक्त जर्मन साम्राज्य के पहले चांसलर ओटो फान बिसमार्क ने 1894 में नव-बराक शैली का भवन बनाया था. 1933 में अडोल्फ हिटलर की तानाशाही की शुरुआत में इसे आग के हवाले कर दिया गया था. पश्चिम में बर्लिन की दीवार से कुछ मीटर दूर ये जर्जर भवन विभाजन के वर्षों में मरम्मत के लिए तरसता रहा. आखिरकार 1999 में उसका पुनरुद्धार हुआ, वो फिर से खुला और एकीकृत गणराज्य में सरकार का कार्यस्थल बना.
इसके ठीक विपरीत स्प्री नदी के किनारे कुछ दूर आगे ठीक सामने संघीय चांसलरी, बुंडेसकांसलराम्ट की इमारत है. 19 हजार वर्ग मीटर वाली कांच और धातु से बनी उम्दा डिजाइन वाली ये उत्तर-आधुनिक इमारत 2001 में तैयार हुई थी. यहीं जर्मन चांसलर और देश की कार्यपालिका का दफ्तर है.
चांसलरी के साथ-साथ सरकार के समूची प्रशासनिक इकाई के विस्तार और नवीनीकरण की हाल की कोशिशों पर बहस 2010 से चली आ रही है और अक्सर स्थगित भी होती रही है. मौजूदा योजनाओं के तहत ये कॉम्प्लेक्स अपने आकार में दोगुना किया जाएगा और इसकी कीमत होगी 60 करोड़ यूरो. 2027 में ये निर्माण पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.
जर्मन प्रेस ने इसकी लागत पर हैरानी जतायी है. लेकिन कुछ और तीखी आलोचनाएं भी हो रही हैं. 2020 में निर्माण से जुड़े सबसे नये ब्लूप्रिंट जारी होने पर अपनी प्रतिक्रिया में रूढ़िवादी अखबार फ्रांकफुर्टर आल्गेमाइने त्साइटुंग ने इसे "नयी जर्मन खब्त” करार दिया है. उदारवादी साप्ताहिक डि साइट ने अपनी हाल की एक हेडलाइन के जरिए बताया कि ये विस्तार, जर्मनी को "राष्ट्रपति शासन वाले किसी भव्य राज्य” में तब्दील करने की कोशिश की झलक दिखाता है. बर्लिन में सरकार के मुख्यालय का इतिहास और वास्तुशिल्प इस किस्म की प्रतिक्रिया पर कुछ रोशनी डाल सकता है.
बर्लिन क्यों?
वास्तुकार और इतिहासकार एमिली पुग इस ओर इशारा करती हैं, "जर्मनी की राजधानी के रूप में अपने दर्जे को बर्लिन ने कभी साफतौर पर सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया.” उनके मुताबिक, "जर्मनी ऐतिहासिक रूप से वो जगह है जहां क्षेत्रीय अस्मिताओं को वरीयता मिलती रही है. बर्लिन इस समूची पहचान का प्रतिनिधित्व करे, ऐसा ख्याल कई लोगों के लिए बहस का विषय रहा है, खासकर बावेरिया के लोगों के लिए!"
"आर्किटेक्चर, पॉलिटिक्स ऐंड आइडेन्टिटी इन डिवाइडेड बर्लिन" विभाजित बर्लिन में वास्तुशिल्प, राजनीति और अस्मिता किताब की लेखक पुग कहती हैं कि न तो बर्लिन स्वाभाविक पसंद हरगिज था और न राइश्टाग की इमारत. वह समझाती हैं, "पश्चिमी जर्मनी ने अमेरिकी मदद से राइश्टाग में संसद बुलानी चाही थी लेकिन पूर्वी जर्मनी की शक्तियों ने मेरे हिसाब से सही ही दलील दी कि कब्जे वाले शहर के रूप में बर्लिन, पश्चिम जर्मनी का हिस्सा नहीं था लिहाजा उसे राजधानी की तरह नहीं समझना चाहिए."
राइन घाटी के बीच घिरा बॉन शहर, पश्चिम जर्मनी की 'अस्थायी' राजधानी था. 1990 में एकीकरण के बाद से ही राइश्टाग को फिर से जर्मन सरकार का मुख्यालय बनाने की बात उठने लगी थी. 1991 में दस घंटों की प्रचंड बहस के बाद, जर्मन सांसद उस समझौते पर बामुश्किल ही राजी हुए थे जिसके तहत राजधानी और सबसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालय बर्लिन में रखने और अधिकांश अफसरशाही से जुड़े कुछ विशेष दफ्तर बॉन में ही रखे जाने की बात थी.
राइश्टागः लोकतंत्र का प्रतीक
बर्लिन में जर्जर राइश्टाग को बतौर संसद चुन लिया गया. इतिहासकार और "ब्लड ऐंड आयरनः राइज ऐंड फॉल ऑफ द जर्मन एम्पायर"रक्त और लोहाः जर्मन साम्राज्य का उत्थान और पतन किताब की लेखक कात्या होयेर कहती हैं, "राइश्टाग एक स्वाभाविक पसंद था, अपने इतिहास की वजह से और लोकतंत्र के प्रतीक के रूप में अपनी भूमिका की वजह से."
गणराज्य का महल, जहां पूर्वी जर्मन सरकार का दफ्तर था, उस पर विचार नहीं किया गया. होयेर बताती हैं, "राइश्टाग की इमारत नाजीवाद के दाग से अपेक्षाकृत रूप से मुक्त रही है. जलते राइश्टाग की छवि, जलते लोकतंत्र का प्रतीक बन गयी थी."
इमारत चूंकि खस्ताहाल थी लिहाजा उसे बड़ी मरम्मत और पुनर्निर्माण की जरूरत थी. ब्रिटिश वास्तुकार नॉर्मन फॉस्टर को इसके नवीनीकरण का काम मिला. उन्होंने इमारत के शीर्ष पर कांच का एक नया गुंबद जोड़ दिया. 1894 के मूल डिजाइन के प्रति ये एक स्वीकृति थी जिसकी एक निर्मम तुलना राजा विल्हेम द्वितीय, बर्लिन चिड़ियाघर में बंदरों के बाड़े से कर चुके थे. होयेर कहती हैं, "ये दिलचस्प है कि विदेशी वास्तुकार चुना गया. मैं नहीं मानती कि वह एक संयोग था. जर्मन विरासत के बारे में असहजता का एक बोध तो था ही."
पुग स्वीकार करती हैं कि इमारत के वास्तुशिल्प ने उसे एक अनूठा पुरातन-नवीन संतुलन बख्शा है. वह कहती हैं, "नव बराक शैली वाले राइश्टाग में फॉस्टर के कांच के गुंबद का जुड़ाव इमारत की भौतिक अवस्था को अपडेट करने का एक तरीका सा था, जिसके जरिए दिखाया गया है कि अपने मूल निर्माण के दिनों से लेकर आज तक, उसके प्रतीकवाद की अहमियत किस तरह बदली है."
चांसलर का दफ्तर
घास भरे ‘प्लात्स डेर रिपब्लिक' के पार संसद को देखता, चांसलरी और कार्यपालिका का मुख्यालय है. इस इमारत में अधिकतर सरकारी दफ्तर ही हैं. लेकिन इसमें एक छोटा सा अपार्टमेंट चांसलर का भी है. अभी तक, इसमें सिर्फ एक ही चांसलर रहा हैः गेरहार्ड श्रोएडर जो 2005 तक यहां तीन बार रहे. उनकी उत्तराधिकारी अंगेला मैर्केल नदी के किनारे कुछ दूर चलकर एक सुविधाजनक अपार्टमेंट में अपने पति के साथ रहती हैं.
चांसलरी ही राज्य का प्रतीक बन गयी है, लेकिन अमेरिका के विशाल महलनुमा वाइट हाउस की तरह नहीं. इसी जगह मैर्केल विदेशी मेहमानों से मिलती हैं और अपने अधिकतर काम निपटाती हैं.
पश्चिम जर्मनी के चांसलर बॉन में एक कांच के बंगले में रहते थे. बर्लिन में इससे पहले नयी राइख चांसलरी थी जिसे 1930 के दशक में हिटलर ने फिर से डिजाइन किया था. वहां, जैसा कि विशेषज्ञ पुग कहती हैं, "बढ़ा-चढ़ा कर पेश और संगमरमर से पटे” अपार्टमेंट थे. मित्र देशों की सेना जब बर्लिन पहुंची थी और हिटलर ने इस इमारत के नीचे एक बंकर में अपनी जान ले ली थी, तब ये इमारत आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुई थी.
वास्तुकार पुग कहती हैं कि राइख चांसलरी दोबारा फिर कभी नहीं बनी. और राइश्टाग के गुंबद के अलावा, नयी चांसलरी के डिजाइन में मौलिक शैली को प्रतिबिम्बित करने की कभी कोशिश भी नहीं की गयी.
पुग बताती हैं, "आधुनिक चांसलरी समकालीन वास्तुकला के इस्तेमाल की पद्धति पर चली और उसने शैलियों की ऐतिहासिक अवधियों के संदर्भों के इस्तेमाल से परहेज किया. बहुत संभव है कि ऐसा करने के पीछे उन तमाम चीजों से परहेज करने की मंशा रही होगी जिनमें राष्ट्रीय गौरव की अत्यधिकता नजर आती हो. ये एक नयी शुरुआत की आकांक्षा थी.”
इतिहासकार होयेर कहती हैं, "हिटलर पुरानी चांसलरी से जिस तरीके से जुड़ा था- उसे देखते हुए निश्चित रूप से एक नयी चीज तो होनी ही थी. यह महज संयोग नहीं है कि नयी चांसलरी हिटलर की चांसलरी से एकदम विपरीत है- अमूर्त और पारदर्शी. कांच का इतनी मात्रा में इस्तेमाल ये दिखाने के लिए ही है कि अंदर कुछ गोरखधंधा नहीं चल रहा है. अवधारणा से जुड़ी दलीलें, सौंदर्यबोध पर भारी पड़ी थीं.”
एक सौम्य चांसलर
इमारतों का इतिहास और चांसलरी जिस चीज का प्रतिनिधित्व करती है- वो सब देखते हुए होयेर कहती हैं कि ये समझा जा सकता है कि लोग सरकारी इमारतों के विस्तार का विरोध आखिर क्यों कर रहे हैं. वह कहती हैं, "लोग नहीं चाहते कि चांसलर को बहुत ज्यादा शक्तियां हासिल हो जाएं. इसलिए उस चीज की जरा भी छाया कहीं दिखाई पड़ती है तो उसे संदेह की नजर से देखा जाने लगता है.”
आखिरकार, राइश्टाग के सामने बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है कि सरकार का वजूद सत्ता की हनक दिखाने में नहीं- बल्कि जर्मन लोगों के लिए है- जर्मनी के लोगों की सेवा में निछावर होने में है.
सुलह वाले एक समझौते की तरह, जर्मन सरकार की इमारतों का डिजाइन, आधुनिकता को अंगीकार करते हुए भी एक जटिल अतीत से जुड़ा है. कुछ कुछ देश जैसा ही ये मामला भी है.