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जर्मन विदेश मंत्री पर बरसा ईरान का मीडिया

१२ जून २०१९

जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास की तेहरान यात्रा को ईरान के अखबारों ने भरपूर कवरेज दी है और खूब आलोचना भी की है. मीडिया में सवाल उठे कि जब जर्मनी समेत यूरोप ईरान की मदद करने में सक्षम नहीं है तो यात्रा का तुक क्या बनता है.

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Bundesaußenminister Heiko Maas in Teheran
जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास के साथ ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानीतस्वीर: picture-alliance/AA/Iranian Presidency

जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास पिछले दिनों ईरान की यात्रा पर थे. अपनी इस यात्रा में उन्हें कुछ ऐसा करना था जिससे साल 2015 में  ईरान और जर्मनी समेत दुनिया के छह ताकतवर देशों के बीच हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते को बचाया जा सके. मास की यात्रा को ईरानी मीडिया में जगह खूब मिली और उनकी खूब आलोचना की गई है. ईरानी प्रेस में कहा गया कि ईरान को समझौते की शर्तें मानने के एवज में प्रतिबंधों से राहत दिलाने में यूरोपीय संघ (ईयू) अप्रभावी है.

हालांकि ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी की सरकार से नजदीकी रखने वाले मीडिया संस्थानों ने जरूर जर्मन मंत्री की आलोचना पर नरम रुख रखा. लेकिन रुढ़िवादी मीडिया संस्थानों ने हाइको मास के हर एक बयान पर तीखा हमला किया.

ईरानी प्रेस में जिस चीज ने सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है वह "जवान" समाचारपत्र में छपा एक कार्टून है. यह समाचार पत्र ईरान के इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के बेहद करीब है. इस कॉर्टून में हाइको मास को यहूदी प्रतीक वाले "स्टार ऑफ डेविड" का चश्मा पहने हुए, कलाई पर स्वस्तिक पट्टा और नाजी सेल्यूट करते दिखाया गया है.

Berichterstattung der Reise des deutschen Außenministers Heiko Maas in den Iran
ईरान के जवान अखबार में छपा कॉर्टूनतस्वीर: Javan Newspaper

इतना ही नहीं, अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा, "नाजीवाद और फासीवाद का जो बचाखुचा सड़ा हिस्सा है वही आज इतिहास के सबसे कमजोर यूरोप के रूप में हमें दिखता है." इसी तीखे अंदाज में अखबार ने यह भी सवाल उठाया है कि सबसे पहले तो हाइको मास की ईरान यात्रा की अनुमति क्यों दी गई? शिकायती लहजे में कहा गया कि "ईयू ने अपने दूत को ईरान तक सिर्फ यह कहने भेजा था कि यूरोप अमेरिका की अनुमति की बिना कुछ नहीं कर सकता." अखबार ने कहा, "अगर ऐसा था तो इस पूरी यात्रा की तुक क्या बनती है?"

यूरोप की नाकामी

अखबार ने परमाणु समझौते की शर्तों को पूरा नहीं करवा पाने को ना केवल "यूरोप की विफलता" बताया बल्कि जर्मन विदेश मंत्री के उस बयान की आलोचना की जिसमें वह इस्राएल के अस्तित्व के अधिकार का बचाव करते हैं. अपने एक बयान में मास ने कहा, "इस्राएल का समर्थन करना और उससे घनिष्ट मित्रता रखने पर कोई बहस नहीं हो सकती. वे जर्मन सरकार के सिद्धांतों और दृढ़ संकल्पों का हिस्सा है और उसे बदला नहीं जा सकता. ये एक ऐसी जिम्मेदारी है जो इतिहास ने हमें सौंपी है और इस सिंद्धात को मैं तेहरान में नहीं बदलूंगा."

एक और धुर रुढ़िवादी अखबार "कायहान" ने भी मास की यात्रा और उनके बयानों की आलोचना  की है. अखबार ने दावा किया, "जर्मन संसद में बड़ी संख्या में गैर-जर्मन जायोनिस्ट (यहूदी) हैं." अखबार ने इस्राएल को अवैध बताते हुए कहा कि उसके बारे में जर्मनी का रुख "अपमानजनक और गुलामी जैसा" है. 

अखबार की शिकायत है कि हाइको मास ईरानी अधिकारियों से जिस अंदाज में बात कर रहे थे, वह बेहद ही अड़ियल और अशिष्ट था. कायहान अखबार जर्मन विदेशी मंत्री की आलोचना से भी आगे निकल गया. अखबार ने जर्मनी के समाचार पत्र "द बिल्ड" के संवाददाता को भी फटकार लगाई जिसने ईरान में एलजीबीटी समुदाय के उत्पीड़न पर सवाल पूछ लिया था. अखबार ने लिखा, "जर्मन मीडिया के प्रतिनिधि के तौर पर द बिल्ड का संवाददाता हमारे विदेश मंत्री से ऐसा घटिया सवाल पूछा रहा था कि क्यों ईरान समलैंगिकों का सम्मान नहीं करता है."

संकट में समाधान

ईरान के धुर रुढ़िवादी अखबार हमेशा से परमाणु समझौते के खिलाफ रहे हैं. इस समझौते को ईरान ने संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों और जर्मनी के साथ किया था. हालांकि राष्ट्रपति हसन रोहानी के करीब माने जाने वाले अखबार परमाणु डील के समर्थन में रहे हैं. लेकिन उन्होंने भी जर्मन विदेश मंत्री की आलोचना की है, अलबत्ता उनका लहजा नरम है.

ईरान में एक सुधारवादी अखबार, "अरमान" ने हेडलाइन लगाई, "हम चमत्कार नहीं कर सकते." दरअसल यह वाक्य जर्मन विदेश मंत्री के अंतिम बयान का हिस्सा था. ईरान के विदेश मंत्रालय के पूर्व प्रवक्ता हामिदरेजा आसफी ने अखबार के लिए लिखी अपनी समीक्षा में कहा, "जर्मन विदेश मंत्री का बयान बताता है कि जब वह ईरान आए थे तो उनके हाथ में कुछ नहीं था. यूरोप इस क्षेत्र में पैदा संकट से निपटने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह इसकी कमियों और मुश्किलों की भरपाई करने में असमर्थ है." उन्होंने लिखा, "जर्मनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन के साथ हर संभव तरीके से सहयोग किया है."

अपनी यात्रा में मास ने माना कि जिन आर्थिक लाभों की उम्मीद तेहरान ने परमाणु समझौते से की थी उन्हें हासिल करना अब बेहद मुश्किल हो गया है. फिर भी मास ने ईरान से परमाणु समझौते का सम्मान करने का आग्रह किया. मास ने कहा, "समझौते में बने रहना और यूरोप के साथ बातचीत को बनाए रखना ईरान के राजनीतिक और रणनीतिक हित में है."

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