ईरान और सऊदी अरब के झगड़े में पाकिस्तान क्यों पड़ रहा है?
१५ अक्टूबर २०१९पिछले दिनों प्रधानमंत्री इमरान खान ने तेहरान में ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी से मुलाकात की. पाकिस्तान सरकार का कहना है कि इमरान खान के ईरान दौरे का मकसद "क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना है." इस साल यह इमरान खान का दूसरा ईरान दौरा है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ एक साझा बयान में ईरानी राष्ट्रपति ने कहा, "मैंने प्रधानमंत्री इमरान को बताया है कि हम क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने वाले हर कदम का स्वागत करते हैं और अपने देश की उनकी यात्रा को सराहते हैं."
राष्ट्रपति रोहानी ने बताया कि दोनों नेताओं के बीच अन्य मुद्दों के अलावा यमन युद्ध और ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर भी बातचीत हुई. ईरानी राष्ट्रपति ने कहा, "क्षेत्रीय मुद्दों को क्षेत्रीय तरीकों और संवाद से हल किया जाना चाहिए. हम जोर देकर इस बात को कहते हैं कि किसी भी अच्छे कदम का जवाब हम भी अच्छे कदम और अच्छे शब्दों से देंगे."
पाकिस्तान की चिंता
ईरान के बाद इमरान खान सऊदी अरब का दौरा भी कर रहे हैं, जो मध्य पूर्व में पाकिस्तान का अहम सहयोगी है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का कहना है कि पिछले महीने जब वह अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मिले, तो उन्होंने उनसे सऊदी अरब और ईरान के बीच "मध्यस्थता" करने को कहा. हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप ने ऐसे दावे से इनकार किया है.
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बाजवूद इसके, पाकिस्तान सऊदी अरब और ईरान के बीच तनाव घटाने की कोशिश में लगा है. उसे डर है कि ईरान के साथ अमेरिका समर्थित कोई भी युद्ध बड़ी संख्या में लोगों को ईरान से पाकिस्तान की तरफ धकेल सकता है. इससे पाकिस्तान के भीतर बहुसंख्यक सुन्नी और अल्पसंख्यक शिया समुदाय के बीच हिंसक टकराव हो सकता है.
इसके अलावा तेल का संकट पाकिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था को और चौपट कर सकता है. प्रधानमंत्री इमरान खान की तहरीक ए इंसाफ पार्टी का कहना है, "पाकिस्तान ईरान के साथ अपने दोतरफा संबंधों को बहुत अहमियत देता है. पाकिस्तान क्षेत्र में शांति और स्थिरता को मजबूत करने को लेकर अपनी भूमिका को निभाने का इच्छुक है."
चरमपंथी गतिविधियां
पाकिस्तान और ईरान के बीच आपसी अविश्वास के कारण दशकों से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं. पाकिस्तान ने आम तौर पर सऊदी अरब और ईरान, दोनों के साथ नजदीकी संबंध बनाए रखने की कोशिश की है. लेकिन हाल के सालों में वह ईरान के दूर हुआ है. पाकिस्तान और ईरान एक दूसरे पर अलगाववादियों को समर्थन देने के आरोप लगाते हैं, जो पाकिस्तान और ईरान के बलूचिस्तान प्रांतों में सक्रिय हैं और आजादी मांग रहे हैं.
मार्च में राष्ट्रपति रोहानी ने मांग की थी कि पाकिस्तान ईरान विरोधी आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कदम उठाए. यह मांग उन्होंने सिस्तान,बलूचिस्तान प्रांत में सुरक्षा बल रेवोल्यूशनरी गार्ड्स पर हमले के बाद की, जिसमें 27 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. ईरान का दावा है कि इस हमाले के पीछे एक पाकिस्तानी आत्मघाती हमलावर था. हमले की जिम्मेदारी जैश एल अदल नाम के एक सुन्नी गुट ने ली जो ईरान के मुताबिक पाकिस्तान से काम करता है.
सुन्नी गुटों के समर्थन का आरोप
शिया बहुल ईरान पाकिस्तान पर ऐसे कई सुन्नी गुटों को समर्थन देने का आरोप लगाता है जो ईरान के पूर्वी इलाकों में हुए कई हमलों में शामिल रहे हैं. उन पर पाकिस्तान में शियाओं का नरसंहार करने के आरोप भी हैं. उधर पाकिस्तान में काफी समय से सांप्रदायिक हिंसा जारी है. कई जगहों पर चरमपंथी गुटों ने शियाओं को निशाना बनाया है. तालिबान समेत ऐसे चरमपंथी गुट कट्टरपंथी सऊदी वहाबी विचारधारा से प्रेरित हैं.
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ईरान यमन में हूथी बागियों के खिलाफ हो रहे सऊदी हमलों में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भी नाराज है. विदेश मामलों के एक पाकिस्तानी विशेषज्ञ तारिक पीरजादा कहते हैं, "निश्चित तौर पर ईरान और पाकिस्तान के रिश्ते काफी समय से अच्छे नहीं रहे हैं. फिर भी, अगर पाकिस्तान सरकार यमन संकट में सऊदी अरब को ज्यादा तवज्जो देगी तो रिश्ते और खराब होंगे."
पाकिस्तान जिस तरह बढ़ चढ़ कर सऊदी अरब को खुश करने में जुटा है, वह भी ईरान को पसंद नहीं आ सकता. सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान के समर्थन की वजह से देश के भीतर सुन्नी और शियाओं के बीच की खाई बढ़ रही है. उनका कहना है कि इस बात से भी चरमपंथियों के हौसले बढ़ रहे हैं कि पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ अब सऊदी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं.
ईरान की चिंता
सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान का सहयोग ईरान की चिंता बढ़ाता है. साथ ही ईरान यह भी जानता है कि पाकिस्तान के साथ उसके संबंधों की एक सीमा है. इसीलिए वह अपने इस पड़ोसी के साथ "सामान्य संबंध" बनाए रखना चाहता है. वॉशिंगटन के वूड्रोव विल्सन सेंटर फॉर स्कॉलर्स में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ मिषाएल कूगलमन कहते हैं, "पाकिस्तान सऊदी अरब के साथ मजबूती से खड़ा है. उसे ईरान की ज्यादा परवाह नहीं है. पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच दशकों से जो सैन्य सहयोग रहा है, उसे यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता."
यह देखना बाकी है कि क्या प्रधानमंत्री इमरान खान ईरानी अधिकारियों को यह विश्वास दिला पाएंगे कि क्षेत्र में उनके हितों को पाकिस्तान कमजोर नहीं करेगा. लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि पाकिस्तान पहले ही सऊदी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन का हिस्सा है. इसके अलावा उसने अपनी जमीन पर मौजूद ईरान विरोधी चरमपंथियों के खिलाफ भी पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं. ऐसे में, ईरान और सऊदी अरब के बीच तनाव को दूर करने की इमरान खान की कोशिशों का कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है.
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