आधे अफगानिस्तान ने रिश्वत दी
७ फ़रवरी २०१३अमेरिकी नेतृत्व में हुए हमले के 11 साल से ज्यादा बीत चुके हैं. इस बीच अफगानिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद भी मिली है. करोड़ों अरबों डॉलर देश की अर्थव्यवस्था में झोंके गए हैं. लेकिन इन सबके बावजूद देश दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है. पश्चिमी देशों का कहना है कि अगले साल जब अमेरिका पूरी तरह से अफगानिस्तान से हट जाएगा, तब भी उसे बाहरी देशों की वित्तीय मदद की जरूरत पड़ती रहेगी.
संयुक्त राष्ट्र की ड्रग्स और क्राइम तथा अफगानिस्तान के भ्रष्टाचार विरोधी इकाई का कहना है कि हालांकि कुछ जगहों पर सुधार के संकेत मिले हैं, लेकिन 2012 में भ्रष्टाचार के आंकड़े बढ़ कर 3.9 अरब डॉलर तक पहुंच गए, जो 2009 से 40 फीसदी ज्यादा है.
रिपोर्ट के अनुसार, "अफगानिस्तान के लोगों ने 2012 में जितना घूस दिया, वह देश के घरेलू राजस्व का दोगुना है या टोक्यो सम्मेलन में जो मदद का वादा किया गया था, उसका एक चौथाई." जापान की राजधानी टोक्यो में हुए सम्मेलन के दौरान अफगानिस्तान की मदद के लिए 16 अरब डॉलर देने का वादा किया गया था.
संयुक्त राष्ट्र की संस्था से जुड़े यान-लुक लेमाहियू का कहना है, "इस मुद्दे की गंभीरता पर किसी को शक नहीं है. हमें ऐसा तरीका निकालना है कि स्थिति से सही ढंग से निपटा जा सके." रिपोर्ट में परेशान करने वाली बात यह सामने आई है कि आम आदमी भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करने लगा है.
रिपोर्ट में 68 फीसदी लोगों ने माना है कि अगर कोई सरकारी ओहदे पर है और उसे कम तनख्वाह मिल रही है, तो वह रिश्वत लेकर कोई गलती नहीं करता है. चार साल पहले के सर्वे में सिर्फ 42 फीसदी लोगों ने यह बात मानी थी.
अफगानिस्तान में रिश्वत को लेकर दिलचस्प आंकड़ा सामने आया है. रिश्वत देने वालों की संख्या कम हुई है लेकिन कुल रकम बढ़ गई है. चार साल पहले 58 फीसदी अफगान रिश्वत देते थे, अब 50 फीसदी देते हैं. लेकिन ये लोग अब पहले से ज्यादा घूस देने लगे हैं. सर्वे में देश के 6700 लोगों और प्रतिनिधियों से बात की गई है.
राष्ट्रपति हामिद करजई ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि विदेशियों की वजह से देश में भ्रष्टाचार फैला है. उनका कहना था कि नाटो सेना की वापसी के साथ भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है. अफगान सरकार पहले कह चुकी है कि विदेशी कंपनियां जिस तरह से लोगों को कांट्रैक्ट दे रही हैं, उसकी वजह से भी भ्रष्टाचार बढ़ा है, हालांकि बाद में उसने माना है कि घरेलू तंत्र में भी बेईमानी भरी है.
एजेए/एमजे (एपी, एएफपी)