स्टार्ट होगा सुपर टेलीस्कोप अल्मा
१३ मार्च २०१३दक्षिण अमेरिकी देश चिली के अटाकाम मरुस्थल में 66 हाइटेक एंटीनों का जंगल बनाया गया है. रेत के पहाड़ों के बीच, दुनिया की सबसे सूखी जगहों में से एक. यहां दुनिया का सबसे बड़ा टेलीस्कोप अल्मा बुधवार से पहली बार पूरी तरह काम करना शुरू कर देगा.
बड़ा और कीमती
समुद्र तल से 5,000 मीटर की ऊंचाई पर तापमान का अंतर कई बार 50 डिग्री तक होता है. यह गर्मी और यहां चलने वाली तेज हवा तकनीक के लिए हालात मुश्किल बनाती है. लेकिन अल्मा को इन मुश्किलों से निबटने लायक बनाया गया है. यह अब तक का सबसे बड़ा और एक अरब यूरो की कीमत के साथ जमीन पर बना अब तक का सबसे महंगा खगोलशास्त्रीय प्रोजेक्ट है. अल्मा के यूरोपीय प्रोजेक्ट मैनेजर वोल्फगांग विल्ड इसके नतीजे की तारीफ करते हुए कहते हैं, "इसकी तुलना खुली आंखों के बाद दूरबीन के आने के समय से की जा सकती है." अल्मा के एंटीने अब तक बने सबसे विकसित एंटीने हैं. वे सब-मिलीमीटर तक की तरंगों वाले विद्युत चुंबकीय किरणों को पकड़ सकते हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि इन सबको मिलाकर एक बड़ी आंख बनाई जा सकती है जो 16 किलोमीटर बड़ी है. विल्ड कहते हैं, "बहुत से एंटीना को एक साथ जोड़ने का मतलब होता है क्षमता में भारी वृद्धि." इसकी वजह से संभव होने वाली तस्वीरों की मदद से खगोलशास्त्री सबसे बड़े राजों में से एक का पर्दाफाश करना चाहते हैं, ब्रह्मांड के बनने के राज का.
कैसे हुई शुरुआत
प्रकृति में अद्भुत बहुलता है. यह एक विकास की एक लंबी प्रक्रिया की देन है. आसानी से विश्वास नहीं होता कि प्रकृति और बस्तियों की यह विविधता सिर्फ सौ रासायनिक तत्वों पर आधारित है. कार्बन जैसे हल्के तत्व सितारों के अंदर पैदा होते हैं. सोने या टाइटन जैसी धातुएं सितारों के विस्फोट से पैदा होती हैं. इस प्रक्रिया में वे अपना खोल ब्रह्मांड में छोड़ देते हैं और पैदा हुए तत्वों को फैला देते हैं.
उस उड़े हुए खोल से बादल बनते हैं जो फिर नए सितारों को जन्म देते हैं. इस तरह पैदा होने और विनाश का एक कॉस्मिक चक्र शुरू होता है. लेकिन इसकी शुरुआत कैसे हुई? अल्मा की मदद से वैज्ञानिक पहले सितारे की जांच करना चाहते हैं, जिसकी वजह से इस कॉस्मिक चक्र की शुरुआत हुई थी, 13 अरब साल पहले.
टेलीस्कोप की सीमाएं
हाइटेक एंटीना का बड़ा हिस्सा जर्मनी में बना है. उन्हें बनाने के लिए जो संभव है, उस हद तक कुशलता जरूरी है. टेलीस्कोप का 12 मीटर बड़ा रिफ्लेक्टर इस तरह बनाया गया है कि वह भारी तापमान होने पर भी आकार नहीं बदलेगा. इसके अलवा सभी एंटीनों के गुण एक जैसे हैं. तभी उन्हें मिलाकर एक आंख बनाना संभव होगा, जिसका नाम है इंटरफेरोमीटर. वेरटेक्स कंपनी में एंटीना तकनीक के प्रभारी पेटर फाजेल कहते हैं, "इन एंटीनों के बीच आकार का अंतर एकदम ठीक होना चाहिए ताकि आप उन्हें मिलाकर एक सिग्नल बना सकें." इसका मतलब यह है कि यदि एक एंटीना अचानक दूसरे से ऊंचा होगा तो यह पूरे इंटरफेरोमीटर को नष्ट कर देगा.
बेस कैंप पर इंजीनियरों और तकनीशियनों ने पहले टेलीस्कोप को एक साथ जोड़ा और उसका परीक्षण किया. वे यह जानना चाहते थे कि क्या उनके रिफ्लेक्टरों का आकार एक जैसा है. क्या उन्हें ठीक ठीक जोड़ा जा सकता है. इस सब की जांच हो जाने के बाद वे पठार पर ऑब्जर्वेटरी की असली साइट पर गए. उनके ट्रांसपोर्ट के लिए विशेष गाड़ियों का विकास किया गया और जर्मनी में उन्हें बनाया गया. वे 100 टन भारी एंटीना को ठीक उसकी जगहों तक पहुंचा सकती हैं.
सफल परीक्षण
जुलाई 2011 में इनमें से 16 एंटीनों को चालू कर दिया गया. वोल्फगांग विल्ड उस समय किए गए परीक्षण की याद करते हुए कहते हैं कि उसका नतीजा भी अब तक उपलब्ध नतीजों से बेहतर था. क्योंकि उस दौरान ही पहली जानकारियां मिली. अल्मा टेलीस्कोप ने छोटे ऑर्गेनिक सुगर मॉलेक्युलों का पता लगाया. वोल्फगांग विल्ड कहते हैं, "चीनी के यह अणु हमारे जीवन का आधार हैं." भविष्य में इस बात पर अटकलें लगेंगी कि क्या ब्रह्मांड में जीवन है.
पूरी दुनिया में खगोलशास्त्री इस बात का इंतजार कर रहे थे कि रिसर्च ऑब्जर्वेटरी अपने सभी 66 एंटीनों के साथ काम शुरू करे. 13 मार्च 2013 को वह दिन आ गया. यह सुपर टेलीस्कोप विज्ञान को क्या योगदान दे पाएगा यह बात आंशिक रूप से मालूम है, लेकिन वोल्फगांग विल्ड का कहना है कि इसके अलावा भी आश्चर्य में डालने वाले नतीजे भी सामने आएंगे. "यह कुछ कुछ गैलीलियो जैसा है. उन्हें भी बृहस्पति के चांद का पता करने की उम्मीद नहीं थी, उन्हें भी आश्चर्य हुआ. "
रिपोर्ट: आंद्रेयास नौएहाउस/एमजे
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी