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सून पड़े मैदानों में निराश खिलाड़ी

१० मई २०१२

पाकिस्तान के मैदान खिलाड़ियों के लिए तरस रहे हैं. आतंकवाद के खतरों के चलते देश में अंतरराष्ट्रीय टीमों ने आना ही छोड़ दिया है. ऐसे में कभी विश्व कप में इस्तेमाल होने वाले मैदान अब दर्शकों की राह तक रहे हैं.

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तस्वीर: DW

कराची के नेशनल स्टेडियम में साल में कई मैच होते, दर्शकों की भीड़ और आवाज से यह स्टेडियम खचाखच रहता था. लेकिन अब इसी स्टेडियम में कोई फटकता तक नहीं. यह हाल सिर्फ कराची के स्टेडियम का नहीं, देश के अधिकतर मैदानों की यही स्थिति है. श्रीलंकाई टीम पर हमले के बाद देश में कोई मैच नहीं हुआ. क्रिकेट ही नहीं हॉकी की कोई अंतरराष्ट्रीय टीम पाकिस्तान नहीं पहुंची सिवा चीन के. एक छोटी हॉकी सीरीज चीन ने पाकिस्तान के खिलाफ खेली.

बांग्लादेश के साथ मैच पाकिस्तान में आयोजित करने की बात तो थी लेकिन एक ही सप्ताह बाद सुरक्षा कारणों से इसे स्थगित करना पड़ा. पाकिस्तान का दावा कि कनाडा की टीम यहां खेलने आ सकती है, वह भी जल्द ही कनाडा के अधिकारियों ने खारिज कर दिया. कनाडा के क्रिकेट अधिकारी डोंग हानुम ने कहा कि संभावना है लेकिन इस बारे में औपचारिक बातचीत नहीं हुई है.

हॉकी और स्क्वैश के बुरे हालात

पाकिस्तान के एक करोड़ अस्सी लाख लोग क्रिकेट के दीवाने हैं लेकिन भारत ही की तरह पाकिस्तान में भी हॉकी का इतिहास रहा है. हॉकी टीम ने तीन ओलंपिक, चार वर्ल्ड कप और तीन चैंपियंस ट्रॉफी जीती है. वहीं स्क्वैश में जनशेर खान और जहांगीर खान ने अस्सी और नब्बे के दशक में कमाल दिखाया.

Pakistan Hockey Team
तस्वीर: DW

1994 में पाकिस्तान क्रिकेट, हॉकी और स्क्वैश तीनों में एक साथ विश्व चैंपियन बना था. इसके बाद 2006 तक हालात ठीक रहे. लेकिन 2009 में जब लाहौर में श्रीलंकाई टीम पर आतंकी हमला हुआ तो पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और बाकी खेलों के आयोजन से बाहर हो गया. इस हमले में आठ लोग मारे गए और सात खिलाड़ी घायल हुए.

तीन साल से पाकिस्तान घरेलू क्रिकेट सीरीज संयुक्त अरब अमीरात में करवा रहा है. साथ ही डेविस कप और हॉकी के मैच भी दूसरे देशों में खेले जाते हैं.

क्या आएंगी टीमें?

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष एहसान मणि मानते हैं कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की नीति गलत है, "बांग्लादेश की टीम का पाकिस्तान नहीं आना उसके लिए झटका है. लेकिन मैं मानता हूं कि पीसीबी की नीति बिलकुल गलत है क्योंकि वह एक तरह से टीमों से आने की याचना कर रहा है. यह गलत है."

मणि का मानना है कि पाकिस्तान को आईसीसी के सुरक्षा मानकों के स्तर तक पहुंचना होगा. साथ ही उन्होंने आशंका जताई कि भले ही बांग्लादेश आ जाए लेकिन दूसरी टीमें आएंगी ही ऐसा जरूरी नहीं, "मैं अंदाज नहीं लगा सकता कि बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड टीम को भेजना चाहती थी या नहीं लेकिन बांग्लादेश का यहां आना ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड को प्रेरित नहीं कर सकता था."

इस स्थिति का मतलब है कि अच्छे युवा खिलाड़ियों जैसे उमर अकमल, अजहर अली, वहाब रियाज और असद शफीक 50 टेस्ट, 95 वनडे, 39 टी20 मैच खेल चुके हैं लेकिन अभी भी अपने मैदान पर नहीं खेलें. इसका आर्थिक नुकसान बहुत ज्यादा है, पीसीबी के पूर्व चेयरमैन तौकीर जिया कहते हैं कि पीसीबी की जेब जल्द ही तंग होगी, "उनका सालाना खर्च 1.6 अरब रुपये का है. इसकी भरपाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक आप घरेलू मैदान पर मैच न करवाएं, नहीं तो आपको आईसीसी से धन के लिए पूछना होगा."  

भारत में परेशानी का हल

हॉकी को तो सरकारी खजाने से पैसे मिलते हैं जबकि फुटबॉल को अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संस्था फीफा गोल डेवलपमेंट स्कीम के तहत पैसा देती है,

पाकिस्तान की टेस्ट टीम में तेज गेंदबाज रहे जलालुद्दीन इस परेशानी का हल भारत में देखते हैं, "मुझे लगता है कि क्रिकेट की बेहतरी भारत से जुड़ी है क्योंकि वह सुपर पावर है. पीसीबी को खिलाड़ियों और राजनयिकों के एक दल को अलग अलग देशों में भेजना चाहिए ताकि उन्हें पाकिस्तान में खेलने के लिए मनाया जा सके." हालांकि जलालुद्दीन पीसीबी की खराब व्यवस्था को भी कारण मानते हैं.

चूंकि पाकिस्तान के सुरक्षा हालात खस्ता हैं इस कारण टॉप लेवल की टीमों के पाकिस्तान आ कर खेलने की संभावना अभी दूर की कौड़ी लगती है.

एएम/आईबी (एएफपी)

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