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रोमानिया में सत्ताधारी पार्टी के नेता को जेल

२२ जून २०१८

रोमानिया में सत्ताधारी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के प्रमुख लिवियू द्रागना को पद के दुरुपयोग के आरोप में जेल की सजा सुनाई गई है. वे इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/V.Ghirda

रोमानिया के सबसे ताकतवर राजनीतिज्ञ को साढ़े तीन साल कैद की सजा दी गई है. इस दौरान उन्हें कोई पेरोल भी नहीं मिलेगी. द्रागना ने इस मामले में कुछ गलत करने से इंकार किया है और वे अदालत के फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं. कई घंटों की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सोशल डेमोक्रैटिक नेता को पार्टी के दो सदस्यों को सरकारी फैमिली वेल्फेयर एजेंसी में नौकरी में रखने के लिए हस्तक्षेप करने का दोषी पाया.

2006 से 2013 के बीच सत्ताधारी पार्टी के जाली कर्मचारियों को तनख्वाह दी गई, जबकि वे सरकारी दफ्तर के लिए काम करने के बदले सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी का काम कर रहे थे. इस मामले में 9 और लोगों को सजा मिली है.

गुरुवार रात लिवियू द्रागना को सजा मिलने की खबर आने के बाद हजारों लोगों ने राजधानी बुकारेस्ट और दूसरे शहरों में सड़कों पर उतर कर सरकार के इस्तीफे की मांग की. सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी यूरोपीय संघ के सदस्य देश में भ्रष्टाचार का पिछले कई महीनों से विरोध कर रहे हैं. वे इस हफ्ते संसद द्वारा आपराधिक कानून में लाए गए बदलाव का भी विरोध कर रहे हैं. अदालत के फैसले से पैदा हुए संकट से निबटने के उपायों पर विचार के लिए पीएसडी पार्टी शुक्रवार को पार्टी कार्यकारिणी और क्षेत्रीय नेताओं की बैठक कर रही है.

Rumänien Proteste in Bukarest
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Mihailescu

रोमानिया की सत्ताधारी पार्टी के नेता के रूप में द्रागना आम तौर पर देश के प्रधानमंत्री होते. लेकिन वोटिंग में धोखाधड़ी के एक मामले में 2016 में हुई सजा के कारण वे प्रधानमंत्री का पद संभालने के अयोग्य हैं. राजनीति से संन्यास लेने के बदले द्रागना ने पिछली जनवरी में अपने सहयोगी वियोरिका दॉन्चिलॉ को प्रधानमंत्री चुना. प्रधानमंत्री ने अदालत के आदेश की आलोचना की है और कहा है कि द्रागना के संसद अध्यक्ष पद से इस्तीफे की मांग कर रहे विपक्षी नेता असंवैधानिक काम कर रहे हैं.

रोमानिया यूरोपीय संघ के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है. आलोचकों का कहना है कि मौजूदा सरकार अपने कदमों से हालात और बिगाड़ रही है. संसद ने इस हफ्ते ऐसा कानून पास किया है जिसके बारे में आलोचकों का कहना है कि उससे उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार की स्थिति और बिगड़ेगी. इसके तहत जांच की अवधि को एक साल के लिए सीमित कर दिया गया है.अगर एक साल के अंदर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाता है तो मुकदमा गिर जाएगा. दूसरे मामलों में हुई फोन टैपिंग का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा और नए सबूत न मिलने पर निचली अदालत द्वारा छोड़े गए अभियुक्तों को सजा नहीं दी जा सकेगी.

रिपोर्ट: महेश झा (डीपीए)

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