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विवाद

येरुशलम पर इस्राएल में विवादित बिल पास

२ जनवरी २०१८

इस्राएल की संसद ने येरुशलम को लेकर एक विवादित विधेयक पास किया है. विधेयक ने भविष्य में इस्राएल में आने वाली सरकारों के भी हाथ बांध दिये हैं.

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Israel Jerusalem Panorama
तस्वीर: Reuters/R. Zvulun

संविधान संशोधन से जुड़े बिल के तहत भविष्य में इस्राएल और फलीस्तीन के बीच अगर शांति समझौता हुआ तो भी येरुशलम के फलीस्तीनी हिस्से वापस लौटाना इस्राएल की सरकार के लिए बहुत मुश्किल होगा. मंगलवार को पास हुए बिल के मुताबिक भविष्य में अगर किसी भी सरकार ने येरुशलम के कुछ हिस्सों को इस्राएल से अलग करने की सोची, तो उसे संसद में दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी. इस्राएली संसद में 64 में से 51 वोट बिल के पक्ष में पड़े. 

विधेयक का असर भविष्य की शांति वार्ताओं पर पड़ेगा. जब भी बातचीत होगी तो इस्राएल के नियंत्रण वाले येरुशलम के फलीस्तीनी हिस्सों पर मतभेद उभरेंगे. इस्राएल ने 1967 के अरब-इस्राएल युद्ध के दौरान पूर्वी येरुशलम और पश्चिमी तट को नियंत्रण में लिया. पूर्वी येरुशलम को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कभी इस्राएली जमीन के रूप में मान्यता नहीं दी. लेकिन इसके बावजूद इस्राएल पूरे येरुशलम को अपनी राजधानी बताता है. वहीं फलीस्तीनी पूर्वी येरुशलम को भविष्य के आजाद फलीस्तीन की राजधानी बनाना चाहते हैं. येरुशलम, इस्राएल फलीस्तीन संघर्ष का केंद्र बिंदु सा है.

"खून खराबा होकर रहेगा"

इस्राएल की अति दक्षिणपंक्षी यहूदी पार्टी ज्यूईश होम के नफताली बेनेट देश के शिक्षा मंत्री भी हैं. विधेयक पास होने पर खुशी जताते हुए बेनेट ने कहा, "हमने येरुशलम की एकता तय कर दी है. माउंट ऑफ ऑलिव्स, ओल्ड सिटी अब हमेशा हमारे साथ रहेंगे."

वहीं इस्राएली संसद क्नेसेट में विपक्षी पार्टी के नेता डोव खेनिन ने बिल की आलोचना की. खेनिन ने कहा, "येरुशलम पर समझौते के बिना कोई शांति नहीं आएगी. इस कानून का मतलब है कि खून खराबा होकर रहेगा". मतदान से पहले हेनिन ने सांसदों से बिल का विरोध करने की अपील भी की थी.

इस्राएल पर झुंझलाए अमेरिका ने शुरू की कटौती

फलीस्तीन मुक्ति संगठन के महासचिव साएब इरेकात ने इस्राएल के इस कदम के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है. इरेकात के मुताबिक येरुशलम पर ट्रंप के फैसले के बाद इस्राएल यह जानता है कि अमेरिका इस मुद्दे पर चुप रहेगा, "अमेरिकी प्रशासन कब्जेदार का पक्ष ले रहा है."

बिल की आलोचना करते हुए फलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा, "हमें उम्मीद है कि यह वोट अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस बात की याद दिलाएगा कि अमेरिका के भरपूर समर्थन वाली इस्राएली सरकार तात्कालिक और दीर्घकालीन शांति में दिलचस्पी नहीं रखती है."

इस्राएल में यह बिल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के फैसले के बाद आया है. ट्रंप ने छह दिसंबर को येरुशलम को इस्राएल की राजधानी के रूप में अमेरिका की मान्यता दी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध के बावजूद अमेरिका ने अपने दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम ले जाने का एलान किया. अमेरिका के बाद ग्वाटेमाला ने भी अपने दूतावास को येरुशलम शिफ्ट करने की घोषणा की. ट्रंप के फैसले के बाद संयुक्त राष्ट्र आम सभा में अमेरिकी फैसले के खिलाफ मतदान भी हुआ. मतदान में ज्यादातर देश अमेरिकी फैसले के खिलाफ गए.

ओएसजे/आईबी (एएफपी)