बैंकों की गोपनीयता खत्म होगी
२२ मई २०१३ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के राज्य व सरकार प्रमुख यह तय कर रहे हैं कि साल के अंत तक सदस्य देशों के बीच बैंक खातों में होने वाली आमदनी के बारे में सूचना का आदान प्रदान शुरू हो जाएगा. इसकी बातचीत तो लंबे समय से चल रही थी, लेकिन ऑस्ट्रिया और लक्जेमबर्ग जैसे देशों को आपत्ति थी. लेकिन आर्थिक मुश्किलों के दबाव में अब वे भी तैयार हो गए हैं. इसे लागू करने की समय सीमा नई है. इस फैसले के साथ ईयू के देश कर बचाने के पनाहगाहों पर दबाव बढ़ा रहे हैं.
ईयू के अधिकांश देश ब्याज पर कर लेने के कानून के जरिए पहले से ही दूसरे देशों में रहने वाले ईयू नागरिकों के खातों की जानकारी एक दूसरे के साथ बांट रहे हैं. ऑस्ट्रिया और लक्जेमबर्ग अब तक विदेशियों के खातों की जानकारी छुपा रहे हैं और इसके बदले में नाम बताए बिना स्रोत पर 35 प्रतिशत का टैक्स लेते हैं. लक्जेमबर्ग की इस घोषणा के बाद कि वह 2015 से सूचना के आदान प्रदान की व्यवस्था में हिस्सा लेगा, ऑस्ट्रिया भी दबाव में आ गया है. ईयू के सूत्रों का कहना है कि चांसलर वैर्नर फेमन अब संघ के अंदर विदेशियों के खातों की सूचना को बांटने का समर्थन कर रहे हैं.
सख्ती की मांग
शिखर भेंट से पहले यूरोपीय आयोग के प्रमुख जोसे मानुएल बारोसो ने कर बचाने के लिए पूंजी के पलायन के खिलाफ सख्ती की मांग की है. इसकी वजह से यूरोपीय देशों का हर साल 1,000 अरब यूरो का नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा है कि 2015 तक सभी प्रकार की आमदनी की जानकारी बांटने के लिए एक व्यवस्था बननी चाहिए. उन्होंने कहा कि आयोग का प्रस्ताव है कि बचत पर मिलने वाले ब्याज के अलावा काम, पेंशन, बीमा और शेयर से होने वाली आय को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए.
यह तय हो चुका है कि 2015 तक लागू होने वाले एक कानून के जरिए यूरोपीय सरकारें एक दूसरे को वेतन, भत्ते और दूसरी आमदनियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराएंगे. जर्मन सरकार ने शिखर भेंट से बहुत ज्यादा उम्मीद रखने से मना किया है. शिखर भेंट से पहले हो रही तैयारियों में भाग ले रहे विदेश राज्य मंत्री मिषाएल लिंक का कहना है, छोटे कदम भी हमारी बहुत ज्यादा मदद करेंगे.
अमेरिकी पहल
इस बीच लक्जेमबर्ग के विदेश मंत्री जां आसेलबॉर्न ने बैंक खातों के बारे में सूचना के आदान प्रदान की व्यवस्था में गैर ईयू देशों को भी शामिल करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि कर के पनाहगाहों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के लिए स्विट्जरलैंड, लिष्टेनश्टाइन, मोनाको, सैन मारीनो और अंडोरा जैसे देशों को भी शामिल किया जाना चाहिए.
करचोरी के खिलाफ अमेरिकी सफलताओं के बाद ईयू के देश दबाव में आ गए हैं. अमेरिका ने कर पनाहगाहों की सरकारों को सूचना देने के लिए राजी करने में विफलता के बाद फैक्टा कानून बनाकर यह जिम्मेदारी विदेशी बैंकों पर डाल दी है कि यदि वे अमेरिकी बाजार में सक्रिय रहना चाहते हैं तो उन्हें अमेरिकी नागरिकों के खातों की सूचना देनी होगी. इस कानून की वजह से स्विस बैंकों को जानकारी देने के लिए बाध्य होना पड़ा है.
एमजे/एएम (डीपीए, एएफपी)