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पाकिस्तान के बलिदान को स्वीकारे दुनिया: चीन

२ जनवरी २०१८

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की झिड़की से नाराज पाकिस्तान का "सदाबहार मित्र" चीन समर्थन में आया है. ट्रंप के ट्वीट के बाद पाकिस्तान ने अमेरिकी राजदूत को सम्मन किया.

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Chinesischer Präsident Xi Jinping in Pakistan
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/Pang Xinglei

पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में तैनात अमेरिकी राजदूत डैविड हेल को अपने विदेश मंत्रालय में तलब किया है. अमेरिकी दूतावास ने भी सम्मन की पुष्टि की है. दूतावास ने एक बयान जारी कर कहा, "इस मीटिंग के पहलुओं के बारे में हमारी कोई प्रतिक्रिया नहीं है."

अमेरिकी राष्ट्रपति ने 2018 के पहले ट्वीट में पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की. ट्वीट के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 25.5 करोड़ डॉलर की सालाना सहायता राशि भी रोक दी. ट्रंप के मुताबिक अमेरिका ने बीते 15 साल में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी. अमेरिकी राष्ट्रपति का आरोप है कि पाकिस्तान ने इस सहायता के बदले में अमेरिका को सिर्फ गुमराह किया. ट्वीट में ट्रंप ने यह भी कहा कि, "जिन आतंकवादियों को हम अफगानिस्तान में खोजते हैं, वे उन्हें सुरक्षित ठिकाने देते हैं."

पाकिस्तान पर भड़के ट्रंप, रोकेंगे सहायता राशि

इस्लामिक स्टेट से कांपता तालिबान

पाकिस्तान ने ट्रंप के बयानों पर नाराजगी भरी टिप्पणी की है. रक्षा मंत्री से लेकर विदेश मंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति के ट्वीट की आलोचना की है. वरिष्ठ विश्लेषक इम्तियाज गुल मानते हैं कि पहले से खराब चल रहे पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते अब और बुरे दौरे में जाएंगे.

दो खेमों में बंटा दक्षिण एशिया

अमेरिका हक्कानी नेटवर्क के प्रति पाकिस्तान की नरमी से नाराज है. हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना पर कई कातिलाना हमले किये हैं. अमेरिकी सेना के पूर्व टॉप कमांडर माइक मुलेन तो हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का अभिन्न अंग भी करार दे चुके हैं.

अफगानिस्तान समेत कई मुद्दों पर अमेरिका और भारत करीब आ रहे हैं. यह नजदीकी पाकिस्तान को असहज कर रही है. इस्लामाबाद को लगने लगा है कि अमेरिका भारत के सुर में सुर मिला रहा है. ऐसी मुश्किल घड़ी में पाकिस्तान को अपने सदाबहार दोस्त चीन का साथ मिला है. ट्रंप के ट्वीट के अगले ही दिन चीन ने आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में पाकिस्तान की भूमिका को सराहा. इस्लामाबाद की पीठ थपथपाते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, "पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बड़ा योगदान दिया है और बलिदान भी. आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौती से निपटने में पाकिस्तान ने जबरदस्त भूमिका निभाई है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसे स्वीकार करना चाहिए."

यह पहला मौका नहीं है जब चीन पाकिस्तान के समर्थन में आया है. दक्षिण एशिया की राजनीति अब पूरी तरह दो खेमों में बंट चुकी है. एक तरफ अमेरिका और भारत नजर आते हैं, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन. आतंकवाद, आर्थिक सहयोग और रणनैतिक साझेदारी जैसे मामलों में भी यह खेमे साफ तौर पर आमने सामने खड़े नजर आते हैं.

कैसे पड़ी कड़वाहट

11 दिसंबर 2001 के दिन अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद वॉशिंगटन ने अफगानिस्तान में अल कायदा और तालिबान के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ा. इस अभियान के तहत अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना सहयोगी बनाया. अफगानिस्तान तक पहुंचने लिए पाकिस्तान के सैन्य अड्डों और एयरपोर्टों का इस्तेमाल किया गया. अफगानिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ जंग आज भी जारी है.

वक्त बीतने के साथ काबुल और वॉशिंगटन यह आरोप लगाने लगे कि पाकिस्तान आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह दे रहा है. 2011 में अमेरिकी कमांडो दस्ते ने पाकिस्तानी शहर एबटाबाद में अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार गिराया. बिन लादेन के पाकिस्तान में मिलने के बाद से ही दोनों देशों के मीठे रिश्ते कड़वाहट में बदलते गए.

ओएसजे/आईबी (एएफपी)