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जर्मन तारा जमीन पर, आसमां में बादल

२ मार्च २०११

जर्मनी की राजनीतिक क्षितिज का सबसे चमकता तारा टूट गया है, जिसके बाद आसमां में काली बदली छा गई है और तूफानों बवंडरों का अनुमान लगाया जा रहा है. रक्षा मंत्री के इस्तीफे ने चांसलर अंगेला मैर्केल को मुश्किल में डाल दिया है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

दो हफ्ते पहले तक बवेरिया के शाही खानदान का सितारा 39 साल का कार्ल थिओडर त्सु गुटेनबर्ग जर्मनी के राजनीतिक आसमान की बुलंदियां छू रहा था और जर्मनी के सबसे महत्वपूर्ण पद चांसलर की ओर बढ़ रहा था. लेकिन एक ही झटके में वह टूट कर गिर गया. इससे सरकार भी परेशानी में पड़ गई है. उसकी सबसे मजबूत कड़ी उससे अलग हो गई है.

गुटेनबर्ग पर आरोप है कि उन्होंने अपनी डॉक्ट्रेट की थीसिस नकल कर पूरी की, जिसके बाद उन्होंने खुद इस बात को मान भी लिया. दो हफ्ते पहले सामने आई इस बात के बाद भी उनकी लोकप्रियता में ज्यादा असर नहीं पड़ा. जर्मनी के लोग उन्हें बेइंतहा प्यार करते रहे. शायद यही वजह रही कि जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भी आखिरी वक्त तक उनका साथ दिया. जब गुटेनबर्ग ने डॉक्ट्रेट छोड़ने का एलान किया, तो भी मैर्केल ने कहा कि उन्हें तो मंत्री गुटेनबर्ग से मतलब है और वह उनके काम से संतुष्ट हैं.

NO FLASH Karl-Theodor zu Guttenberg
तस्वीर: dapd

गुटेनबर्ग पिछले दो साल में बड़ी तेजी से उभरे हैं और उन्हें जर्मनी में एक झिलमिलाते सितारे के रूप में देखा जाने लगा है. वह सेलिब्रिटी भी हैं और हर दिल अजीज भी. जब उन्होंने कबूल किया कि उनसे गलती हो गई है तो एक तबके ने यह सोचा कि खास वर्ग के होते हुए भी गुटेनबर्ग आम लोगों की तरह गलती कर सकते हैं. इससे उनके प्रति लोगों की सहानुभूति और बढ़ी.

मैर्केल की गलती

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मैर्केल ने आखिर तक गुटेनबर्ग का साथ देकर शायद गलती की है. निल्स डीडेरिश का कहना है कि गुटेनबर्ग के शैक्षिक कारस्तानी पर पर्दा डालना मैर्केल की भूल रही, जिसे जर्मनी का शैक्षिक वर्ग नजरअंदाज नहीं कर पाया. डीडेरिश का कहना है, “मैर्केल सहित सभी लोगों की नजर पर पर्दा पड़ गया था. सब गुटेनबर्ग की चकाचौंध से चुंधियाए हुए थे.”

लेकिन जहां सरकार में शामिल लोग उन्हें कैबिनेट में बनाए रखने की कोशिश में लगे थे, शैक्षणिक क्षेत्र में उनके खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी और 30,000 लोगों ने ऑनलाइन अपील जारी कर उनसे इस्तीफे की मांग की. इसके बाद गुटेनबर्ग ने खुद तो थोड़ी बहुत इज्जत के साथ विदाई ले ली. लेकिन अपनी चांसलर को बड़ी मुश्किल में छोड़ दिया, जिन्हें कुछ ही दिनों में जर्मनी के अंदर कई चुनावों का सामना करना है.

मैर्केल को पिछले महीने हैम्बर्ग के चुनाव में शिकस्त देखनी पड़ी है और इस महीने बड़े जर्मन प्रांत बाडेन वुटेमबर्ग में चुनाव होने हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मैर्केल की सीडीयू पार्टी वहां कभी नहीं हारी है लेकिन इस बार आसार अच्छे नहीं दिख रहे हैं.

जर्मन प्रांतों में चुनाव का असर राष्ट्रीय संसद के ऊपरी सदन बुंडेसराट पर भी पड़ेगा, जहां मैर्केल के विरोधी पार्टियों की संख्या बढ़ने की संभावना है. मैर्केल को दो साल बाद 2013 में आम चुनाव का सामना करना है.

अंतरराष्ट्रीय चुनौतियां

इस दौरान जर्मनी को कुछ बड़ी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का सामना करना है, जिनमें यूरोप के अंदर यूरो संकट को सुलझाना और अफगानिस्तान का मुद्दा प्रमुख है. जर्मनी दो साल के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य है और इस दौरान उसे अपनी सीट पक्की करने की सभी कोशिशें भी करनी हैं.

गुटेनबर्ग से पहले मैर्केल के कुछ खास लोग विदा हो चुके हैं, जिनमें जर्मनी के पूर्व राष्ट्रपति होर्स्ट कोएलर और जर्मन केंद्रीय बैंक के गवर्नर एक्सेल वेबर शामिल हैं. वेबर मैर्केल के नजदीकी थे, जिन्होंने पिछले महीने अचानक इस्तीफा दे दिया.

जर्मन सरकार में शामिल एफडीपी की लोकप्रियता भी तेजी से गिरी है और इसके प्रमुख गीडो वेस्टरवेले को जर्मनी के लोग नापसंद करने लगे हैं. ऐसे में जर्मन चांसलर को जल्द से जल्द गुटेनबर्ग का विकल्प तलाशना होगा.

समीक्षाः डीपीए/ए जमाल

संपादनः वी कुमार

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