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गुटेनबर्ग नाम का सितारा धुंधला पड़ा

१ मार्च २०११

नकल के आरोपों के बाद जबरदस्त राजनीतिक दबाव झेल रहे गुटेनबर्ग को आखिरकार रक्षा मंत्री का पद छोड़ना पड़ा. जर्मनी में सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार होने वाले गुटेनबर्ग जितनी तेजी से बुलंदी पर आए उतनी तेजी से फिसले भी.

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तस्वीर: dapd

कार्ल थेओडोर त्सु गुटेनबर्ग का जन्म 1971 में हुआ और उनका पूरा नाम कार्ल थेओडोर मारिया निकोलाउस योहान जैकब फिलिप फ्रांत्स योसेफ सिल्वेस्टर, बैरन फोन उंड त्सु गुटेनबर्ग है.

शाही खानदान से ताल्लुक रखने वाले गुटेनबर्ग की शादी स्टिफ्नी से हुई जिनके पूर्वज 19वीं शताब्दी में जर्मनी के आयरन चांसलर के नाम से विख्यात ओटो फोन बिसमार्क हैं. गुटेनबर्ग ने अपनी सैन्य सेवा मिटेनवाल्ड में लाइट इन्फैन्ट्री के साथ पूरी की और फिर अपनी पढ़ाई बायरॉएथ और म्यूनिख यूनिवर्सिटी में पूरी की. वहां उन्होंने कानून की पढ़ाई की है.

गुटेनबर्ग ने संसद में 2002 में प्रवेश किया. 2008 में वह जर्मनी के बवेरिया प्रांत की सीएसयू पार्टी के महासचिव बने. क्षेत्रीय चुनावों में हार के बाद ही गुटेनबर्ग को यह जिम्मेदारी सौंपी गई. पीएचडी थीसिस में नकल के आरोप सामने आने से पहले गुटेनबर्ग बेहद लोकप्रिय रहे हैं.

Flash-Galerie Zu Guttenberg Rücktritt
तस्वीर: dapd

अनुदारवादी मीडिया और गॉसिप मैगजीन में उन्हें खासा पसंद किया जाता रहा है. कई बार उनके फोटो लेदर जैकेट और बेसबॉल कैप पहने अखबारों में प्रकाशित हुए.

क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) पार्टी बवेरिया प्रांत में चांसलर अंगेला मैर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स की सहयोगी पार्टी है. सिर्फ 39 साल के गुटेनबर्ग को भावी चांसलर के रूप में देखा जा रहा था.

बेहद कम समय में गुटेनबर्ग जर्मनी के सबसे लोकप्रिय नेता बन गए और जनमत सर्वेक्षणों में उन्होंने कई बार अंगेला मैर्केल को पीछे छोड़ा. 2009 में जब वह जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री बने तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद वह जर्मनी के सबसे युवा आर्थिक मंत्री रहे. फिर उसी साल वह अक्तूबर 2009 में जर्मनी के सबसे युवा रक्षा मंत्री भी बने.

लेकिन गुटेनबर्ग की मुश्किलें तब शुरू हुई जब वह बायरॉएथ यूनिवर्सिटी में पीएचडी थीसिस में नकल के आरोपों में घिरे. इस कांड को कॉपीगेट का नाम दिया गया है जिसमें आरोप लगे हैं कि उन्होंने अपनी थीसिस को कई जगह से नकल करके तैयार किया.

उनकी डॉक्टरेट की उपाधि छीन ली गई है और जर्मनी में शिक्षाविद उनके खिलाफ खड़े हो गए. चांसलर मैर्केल ने गुटेनबर्ग का बचाव किया लेकिन आखिरकार गुटेनबर्ग के चमकीले राजनीतिक करियर का अंत होता नजर आ रहा है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार