फेसबुक पर 'वांटेड'
६ दिसम्बर २०१३फेसबुक पर आजकल लोगों के बारे में इतनी जानकारी होती हैं कि उनसे मिले बगैर ही उनके बारे में काफी कुछ पता चल जाता है. जर्मन राज्य लोवर सैक्सनी में पुलिस सोशल मीडिया प्रोफाइल के जरिए संदिग्धों तक पहुंच रही है. राज्य गृह मंत्रालय में चर्चा चल रही है कि क्या तहकीकात के लिए देश भर में इस तरीके का इस्तेमाल होना चाहिए?
एक बार फेसबुक पर जानकारी डालते ही, बात बहुत तेजी से फैलती है और मदद में दिलचस्पी रखने वाले लोग आगे आने लगते हैं. संदेश को 400 से ज्यादा बार पोस्ट किया जा सकता है.
लोवर सैक्सनी प्रांत में पुलिस 2012 से फेसबुक का इस्तेमाल कर रही है. गृह मंत्री मिषाएल नोएमन ने मंत्रालय के वार्षिक सम्मेलन में कहा, "हम फेसबुक जैसे सोशल मीडिया को नजरंदाज नहीं कर सकते."
अगर न्याय मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने इस दिशा में फैसला लिया, तो बहुत जल्द लोवर सैक्सनी की ही तरह दूसरे जर्मन राज्यों की पुलिस भी जांच में सोशल माडिया की मदद ले सकती है.
नए रास्ते
राज्य के न्याय मंत्रालय में इस बारे में चर्चा हो चुकी है लेकिन मत बंटे हुए हैं. जर्मनी के दो राज्यों हेस्से और मेक्लेम्बुर्ग वेस्टर्न पोमारेनिया में भी अपराधियों को ढूंढने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन सबसे आगे है लोवर सैक्सनी. यहां 1.7 लाख से ज्यादा लोग 'लोवर सैक्सनी पुलिस इंवेस्टिगेशन' पेज से जुड़े हैं. वे कमेंट करके, बात को दोस्तों तक फैला कर, या किसी तरह के सबूत जुटा कर पुलिस की मदद करने को तैयार हैं. पुलिस भी लोगों को प्रोत्साहित कर रही है कि वे फेसबुक जैसे माध्यम से उनकी मदद करें.
लोवर सैक्सनी के पुलिस विभाग के प्रवक्ता उवे श्वेलनुस मानते हैं कि यह अपराधियों को पकड़ने का कामयाब तरीका है. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "ऐसा बहुत तेजी से हो सकता है कि जनता का ध्यान किसी अनजान अपराधी तक जाए और उनकी मदद से पुलिस को इस बारे में काम की जानकारी मिल सके."
अब तक लोवर सैक्सनी की पुलिस ने इस तरह के 160 पोस्ट डाले हैं. इनमें से कितनों में कामयाबी मिली है, कहा नहीं जा सकता. अब गली नुक्कड़ पर पोस्टरों के बजाय सोशल मीडिया पर प्रचार करना ज्यादा मददगार साबित हो रहा है. वर्तमान दौर तकनीक का दौर है और अखबार और रेडियो जैसे पुराने तरीके आज के युवाओं को खास लुभाते नहीं. इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर लोवर सैक्सनी की पुलिस ने यह कदम उठाया.
चुनौतियां
हर नए कदम की आलोचना भी होती है. एक बड़ी समस्या यह भी है कि जर्मन कानून व्यवस्था जांच में निजी सेवाओं के इस्तेमाल की छूट नहीं देती. फेसबुक एक निजी संस्था है. इसके सर्वर निजी हाथों के नियंत्रण में रहते हैं.
फेसबुक पर एक बार कोई संदेश पोस्ट कर देने के बाद वह और लोगों की वॉल पर पहुंच जाता है. इसे मिटाया नहीं जा सकता. फेसबुक पर डला पोस्ट सर्वर पर स्टोर रहता है. लोवर सैक्सनी की पुलिस ने इससे निपटने का एक रास्ता निकाला है. पुलिस सारी जानकारी को पहले अपने सर्वर से पब्लिश करती है, न कि फेसबुक के सर्वर से. जांच पूरी हो जाने के बाद इन्हें मिटा दिया जाता है.
जानकारों का मानना है कि यह तरीका भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. क्योंकि जब फेसबुक पर कोई लिंक डाला जाता है तो फेसबुक अपने आप उससे संबंधित तस्वीर को सेव कर लेता है, फिर भले वह पुलिस सर्वर से ले रहा हो.
गलत इस्तेमाल का खतरा
जांच में फेसबुक का इस्तेमाल न सिर्फ डाटा की सुरक्षा की नजर से विवादास्पद है, बल्कि इसलिए भी कि यह नेटवर्क जानकारी को फैलाता है. तस्वीर के लोगों तक फैलने से एक अजीब तरह की हलचल मच जाती है. कई बार इसके जरिए लोग किसी एक के खिलाफ नफरत की मुहिम छेड़ देते हैं. यह उस व्यक्ति से संबंधित जानकारी का गलत इस्तेमाल है.
लोवर सैक्सनी की पुलिस ने माना कि इससे आपसी लड़ाई झगड़े के मामले सामने आए हैं. हालांकि साथ में वे यह भी कहते हैं कि आपत्तिजनक कमेंट तुरंत ही मिटा दिए जाते हैं. उन पर दिन रात नजर रखी जाती है.
फेसबुक पर पूरा नियंत्रण रखना इतना आसान नहीं. फेसबुक के जरिए उत्पीड़न के भी मामले अक्सर सामने आते हैं. मिसाल के तौर पर एक लड़की की हत्या के आरोपी के खिलाफ लोगों के निंदा और बेहद आपत्तिजनक संदेश आते रहे. लेकिन बाद में बाद में आरोपी निर्दोष साबित हुआ. जिन लोगों ने इस तरह के संदेश डाले थे बाद में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा.
तो क्या अपराध जगत में जांच का भविष्य कुछ ऐसा ही है? न्याय मंत्रालय और गृह मंत्रालय अभी इस बात पर राय नहीं बना पाए हैं कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपराधियों को पकड़ने में होना चाहिए. लेकिन लगता है फेसबुक इस्तेमाल कर रहे लोगों ने जरूर तय कर लिया है. वे जांच के इस नए तरीके के सामने थम्स अप की स्माइली डाल कर बता रहे हैं कि वे इस तरीके के साथ हैं.
रिपोर्टः वेरा केर्न/एसएफ
संपादनः ए जमाल