भारत में तेज आर्थिक विकास ने पिछले दस साल में 14 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल से बाहर निकाला है, लेकिन बहुत से लोग अभी भी बिजली और टॉयलेट से वंचित हैं. ओईसीडी के अनुसार देश में बहुत ज्यादा गरीबी है.
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OECD says growth in India uneven
शादियों का खर्च भारत में गंभीर समस्या बनता जा रहा है. शादियों के खर्च से जुड़े विधयेक को पेश करने वाली कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन से डीडब्ल्यू संवाददाता मुरली कृष्णन ने बात की.पेश हैं कुछ मुख्य अंश. (28.02.2017)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक सबको मकान का आश्वासन दिया है, लेकिन कहीं परियोजना के लिए धन का अभाव है तो कहीं मदद पाने वालों की फोटो पहचान का सवाल रोड़े अटका रहा है. (28.02.2017)
क्या पूंजीवाद खतरे में है? न सिर्फ अमीरों और गरीबों की बीच की खाई लगातार बढ़ रही है, बल्कि शेयर बाजार में पंजीकृत कंपनियों में कर्मचारियों और मैनेजरों के वेतन का अंतर भी बढ़ रहा है. ये रहे भारत और जर्मनी के कुछ उदाहरण. (24.02.2017)
दुनिया के तमाम धार्मिक स्थानों की तरह भारत के हिंदू मंदिरों में भी पूजा अर्चना करने वालों की कमी नहीं है. भक्त अपने इन पूजास्थलों पर जी खोल कर दान करते हैं और यही वजह है कि अब देश के मंदिर भी रईसी में पीछे नहीं रहे. (24.02.2017)
औदयोगिक विकास में अगुआ जर्मनी सालों से विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कुशल कामगारों और छात्रों की कमी महसूस करता रहा है. लेकिन पिछले सालों में उसने स्थिति से निबटने के लिए कई कदम उठाए हैं और कामयाब रहा है.
भारत के 30 करोड़ लोगों को बिजली नहीं मिल रही है. वहीं उस पर कोयले से बनने वाली बिजली से होने वाले कार्बन उर्त्सजन को कम करने का भी भीषण दबाव बना हुआ है. समाधान अक्षय ऊर्जा में है, लेकिन इस मसले में भारत कहां खड़ा है?
महाराष्ट्र में 180 किलोमीटर पैदल चल कर मुंबई पहुंचे हजारों किसानों के लॉन्ग मार्च ने एक अभूतपूर्व शांतिपूर्ण आंदोलन की मिसाल पेश की है. शिवप्रसाद जोशी पूछते हैं, जब सब दल किसानों के साथ हैं तो वे परेशान क्यों हैं?