हिम्मत दिलाने वाला भी हिम्मती हो
१३ फ़रवरी २०१७एक मुख्तसर लेकिन सारगर्भित और चुनौतीपूर्ण शब्द बार बार श्टाइनमायर के भाषण में सुनाई दिया. मूट यानि हिम्मत. निर्वाचक मंडल द्वारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने पहले भाषण के अंत में श्टाइनमायर ने कहा, "आएं हम हिम्मती बनें, फिर मुझे भविष्य की कोई चिंता नहीं है."
19 मार्च को श्टाइनमायर जर्मनी के 12वें राष्ट्रपति के रूप में मौजूदा राष्ट्रपति योआखिम गाउक की जगह लेंगे. उनका मुख्य नारा आजादी था और अब श्टाइनमायर उसकी जगह हिम्मत ला रहे हैं. वे लोगों को हिम्मत दिलाने वाला बनना चाहते हैं. इसका परिपेक्ष्य उन्होंने अपने भाषण में खुद बताया है. वहां उन्होंने देश में लोगों में व्याप्त असुरक्षा और लोकतंत्र के लिए चिंता का जिक्र किया और कहा, "दुनिया बिखरती लग रही है."
यदि 61 वर्षीय श्टाइनमायर लोगों को हिम्मत देना चाहते हैं, तो वह सिर्फ खुले समाज की वकालत नहीं हो सकती. नहीं, श्टाइनमायर को राजनीति और सिस्टम के बाहर खड़े लोगों के बीच खाई को पाटने में भी योगदान देना होगा. एक राष्ट्रपति को उन लोगों तक पहुंचने में कामयाबी मिल सकती है जिनके पास तक राजनीति नहीं पहुंच पाती. हिम्मत दिलाने वाले राष्ट्रपति के रूप में श्टाइनमायर को अपने शब्द कूटनीतिक और रूखाई के बदले हिम्मत से चुनने चाहिए, उसके विपरीत जो उन्होंने जर्मनी के मुख्य राजनयिक के रूप में किया था.
पूर्व पादरी योआखिम गाउक की ताकत ये थी कि उनके शब्द, अक्सर सख्त शब्द याददाश्त में रहते थे. यही श्टाइनमायर के लिए भी पैमाना है, यदि वे जैसा कि उन्होंने चुनाव से पहले कहा था, "लोकतंत्र में विवेक की रक्षा" में योगदान देना चाहते हैं. इस पैमाने पर खरा उतरने के लिए उन्हें खासकर अपने बड़े औपचारिक भाषणों में बेहतर होना होगा. इसके लिए भी उन्हें हिम्मत मिले, इसकी कामना करनी होगी.
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