1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बंद रेस्तराओं में दिल्ली का दर्द

२७ सितम्बर २०१३

न्यू यॉर्क सिटी के ब्रुकलीन या लंदन के शॉरडिच जैसा ही है दिल्ली का हौजखास विलेज लेकिन पिछले हफ्ते कोर्ट के एक आदेश ने यहां सन्नाटा कर दिया. दर्जनों रेस्तरां पांच दिन के लिए बंद कर दिए गए.

https://p.dw.com/p/19pOw
तस्वीर: SAJJAD HUSSAIN/AFP/Getty Images

आर्ट गैलरी, बार, तरह तरह की दुकानें और 20 से ज्यादा अड्डेबाजी के ठिकानों वाला हौजखास विलेज कोर्ट के आदेश से सहमा पर बस थोड़ी देर के लिए. कोर्ट के आदेश ने दर्जनों रेस्तराओं को बंद कर यह दिखा दिया है कि शहरों में कथित विकास और चमक दमक में कितनी अराजकता, असुरक्षा और भ्रष्टाचार है. 34 रेस्तराओं ने उत्सर्जन की परमिट या फिर गंदे पानी को साफ करने की सुविधा से जुड़े प्रमाण पत्र नहीं दिए तो पर्यावरण अदालत यानी नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने उन्हें बंद करने को कहा.

मिया बेला रेस्तरां के मार्केटिंग मैनेजर विराट छाबड़ा का कहना है, "समस्या पिछले कई महीनों से बढ़ रही थी लेकिन तब किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया, अब इसने पलट कर वार कर दिया है." छाबड़ा ने बताया कि इस सप्ताहांत रेस्तरां बंद रहने से 3.5 लाख रुपये का नुकसान हुआ है. ट्राइब्यूनल ने मिया बेला समेत 34 में से 25 दूसरे रेस्तराओं को प्रदूषण की चिंता की शर्त पर बुधवार से उन्हें खोलने की मंजूरी दे दी.

हौजखास विलेज में करीब 75 आर्ट गैलरी, डिजाइनरों के बुटिक, बार और रेस्तरां हैं. पास ही में एक झील के किनारे बने 13वीं सदी के गुम्बद के खंडहर भी हैं और उसका नजारा दिखा सकें ऐसी जगहों के लिए दुकानदारों में बड़ी होड़ है. नतीजा यह हुआ है कि "गांव" एक ही दिशा में बढ़ते बढ़ते संकरा होता चला गया है. मकान मालिक ज्यादा से ज्यादा दुकानों की जगह बनाने के लिए मकानों की ऊंचाई बढ़ाते जा रहे हैं और नीचे जमीन सिमटती जा रही है. सामने तो बड़ी संकरी जमीन पर भी बड़ी चमक दमक है लेकिन पीछे जेनरेटरों का शोर और केबलों का जंजाल ही नजर आता है. साथ में जहरीला धुआं और शोर के साथ हर तरह का प्रदूषण.

एक रेस्तरां के मालिक ने नाम जाहिर न करने के शर्त पर कहा, "यह देश पैसे से चलता है. अगर आपके हाथ में पैसा है और आप सही लोगों को जानते हैं तो आपका काम हो जाएगा. अगर नहीं तो फिर आप महीनों या फिर सालों चक्कर लगाते रहेंगे." ऐसी सोच से यह आशंका उठती है कि इलाके में नई इमारतें खड़ी करने के लिए आग और भवन निर्माण के नियमों का पालन नहीं होता. बहुत से रेस्तरां मालिक तो मानते हैं कि पिछले हफ्ते का आदेश इस लिए आया क्योंकि रेस्तरां मालिक स्थानीय अधिकारियों की जेब गर्म करने से चूक गए. कई लोगों ने माना है कि उन्होंने कारोबार शुरू करते वक्त लाइसेंस के लिए एक करोड़ रुपये दिए. हर महीने वो पुलिस को 10 हजार रुपये या बीयर की क्रेट देते हैं ताकि देर रात तक तेज संगीत बजा सकें. सुप्रीम कोर्ट ने रात दस बजे से सुबह 6 बजे तक तेज संगीत बजाने पर रोक लगा रखी है.

रेस्तराओं के खिलाफ कोर्ट में शिकायत दर्ज करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता पंकज शर्मा का कहना है कि कचरे की समस्या से निबटना तो बहुत मामूली बात है. अभी तो इन रेस्तराओं के अवैध रूप से जमीन से पानी निकालने, पार्किंग में क्षमता से ज्यादा गाड़ियां खड़ी करने के साथ ही डीजल जेनरेटरों के कारण होने वाले प्रदूषण की समस्या जस की तस है. पंकज शर्मा कहते हैं, "यह जगह पूरी तरह से मौत का जाल है. ईश्वर बचाए अगर यहां कभी आग लग गई तो भारी अराजकता होगी. गांव सांस्कृतिक केंद्र से बदल कर खाने का केंद्र बन गया है."

कारोबारियों की शिकायत है कि अगर वो घूस न दें तो लाइसेंस लेने के लिेए उन्हें महीनों इंतजार करना होता है. उत्सर्जन और गंदे पानी से जुड़े परमिट के अलावा उन्हें स्वास्थ्य, सुरक्षित खाना, आग से सुरक्षा, प्रदूषण नियंत्रण, संगीत और पुलिस से "अनापत्ति प्रमाण पत्र" लेना होता है. नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष समीर कुकरेजा का कहना है, "लाइसेंस और मंजूरी में देरी उतना ही समय ले लेती है जितना समय रेस्तरां बनाने में लगता है." आए दिन भारत गिरती इमारतों की खबरें सुन और देख रहा है लेकिन फिर भी शहरीकरण की अंधी दौड़ पर इसका कोई असर नहीं है.

एनआर/एमजे (एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी