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कहां से आया फ्राइड पोटैटो

७ जनवरी २०१३

फ्राइड पोटैटो यानि भुना हुआ आलू. असली नाम पोम फ्रिट्स या फ्रेंच फ्राइस. सिर्फ फ्रांस और बेल्जियन लोगों को ही यह पसंद नहीं है, फ्राइड पोटैटो के दीवाने पूरी दुनिया में हैं. लेकिन दोनों में विवाद है कि इसकी शुरुआत कहां हुई.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

आलू के टुकड़ों को गर्म तेल में छान कर खाने की परंपरा भले ही भारत में भी रही हो लेकिन दुनिया में लोकप्रिय यह भुज्जी नहीं, बल्कि फ्रेंच भाषा का शब्द पोम फ्रिट्स है. फ्रांस और बेल्जियम के लोग इस विवाद का हल नहीं ढूंड पाए हैं कि उनमें से किसने आलू के टुकड़ों को तेल में तल कर बेचने की शुरुआत की. समाजशास्त्री भी इसकी खोज नहीं कर पाए हैं. फ्रेंच इतिहासकार मैडेलेन फेरियेरे कहती हैं, "तलना एक तरह का सड़कछाप रसोई है, निम्न स्तर की. इसलिए कहना कठिन है कि इसकी शुरुआत कहां हुई."

खासकर बेल्जियम में इस मुद्दे पर खासा विवाद है क्योंकि इस बीच पोम फ्रिट्स वहां राष्ट्रीय आहार माना जाता है. पिछले दिनों ब्रसेल्स में इसकी उत्पत्ति पर एक सेमिनार भी हुआ. लिएज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पियेर लेक्लेर्क कहते हैं, "बेल्जियन लोग पोमेस से प्यार करते हैं लेकिन कुछ समय पहले तक किसी ने उसके बारे जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश नहीं की."

फ्रांस में सबसे पहले इसकी शुरुआत शायद राजधानी पेरिस के सबसे पुराने पुल पोंट नोएफ पर हुई. समझा जाता है कि सड़क पर खोमचा लगाने वालों ने 1789 की क्रांति से ठीक पहले इसकी शुरुआत की. इतिहासकार फेरियेर कहती हैं कि वे वहां से गुजरने वाले लोगों को तली हुई चीजें बेचते थे जिसमें आलू के टुकड़े भी शामिल थे. लेकिन प्रोफेसर लेक्लेर्क के अनुसार बेल्जियम के कुछ लोग मानते हैं कि इसकी उत्पत्ति देश के दक्षिण में नामुर में हुई. शहर के गरीब लोग वहां से गुजरने वाली नदी मास से मछलियां पकड़ते और उन्हें जो भी मिलता उसे तलते. 17वीं सदी के मध्य में जब कड़ाके की ठंड में नदी जम जाती थी तो वे आलू के छोटे टुकड़े कर उन्हें तल कर खाते थे.

प्रोफेसर लेक्लेर्क हालांकि स्वयं बेल्जियमवासी हैं, लेकिन उन्हें इस कहानी पर भरोसा नहीं है. ब्रेसल्स की संस्कृति के विशेषज्ञ रोएल याकोब्स कहते हैं, "अंत में कि पोमेस कहां से आया. महत्वपूर्ण यह है कि उसका क्या हुआ." फ्रेंच और बेल्जियन लोगों ने उसका अलग अलग इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. फ्रेंच उसे मुख्य खाने मीट के साथ खाते हैं, जबकि बेल्जियन उसे चटनी और सॉस के साथ खाना पसंद करते हैं.

"बस फ्रिटेन" नाम की किताब के लेखक और प्रसिद्ध कुक अल्बेयर वेर्देयेन कहते हैं, "हम बेल्जियन लोगों ने पोम फ्रिट्स को इज्जतदार खाना बना दिया है, जो तरकारी से ज्यादा कुछ है." उनका कहना है कि किसी और को आलू को दो बार तलने की कला बेल्जियन लोगों से बेहतर नहीं आती जिससे आलू सुनहरे रंग का और कुरकुरा हो जाता है. फ्रेंच पोम फ्रिट्स के विपरीत बेल्जियम में आलू के टुकड़ों को पहले 140 डिग्री पर तलकर बाहर निकाल कर रख दिया जाता है. उसके बाद परोसने से पहले उसे 160 डिग्री पर फिर से तला जाता है. लक्ष्य होता है उसे बाहर से क्रिस्पी और अंदर से मुलायम रखना.

फ्रेंच लोग अपने पोम फ्रिट्स को कांटों के चम्मच से खाते हैं जबकि बेल्जियम के लोग उसे अंगुलियों से एक एक उठाकर सॉस में लगाकर खाना पसंद करते हैं, वह भी दिन के किसी भी समय. देश भर में कहीं फ्रिटकोट नाम के ढाबे हैं जहां पोम फ्रिट्स मिलता है. उनके सामने अक्सर लंबी लाइनें दिखती हैं. पोम फ्रिट्स बनाने वालों के संघ के प्रमुख बैर्नार्ड लेफेव्रे कहते हैं, "90 फीसदी बेल्जियन साल में कम से कम एक बार पोम फ्रिट्स के ढाबे पर जरूर जाते हैं."

Historisches Werbeplakat für eine Frittenmaschine
तस्वीर: picture-alliance/Romain Fellens

ब्रसेल्स में सबसे लोकप्रिय ढाबों में शामिल क्लेमेंटीने के मालिक फिलिप रात्सेल कहते हैं, "पोम फ्रिटेस के ढाबे पर जाना बेल्जियन आदत है. वे अपनी ढाबे का सौदा दुनिया के किसी रेस्तरां से नहीं करना चाहते, "हमारे ढाबे पर आप हर तरह के लोगों से मिलेंगे, बुजुर्ग महिला से लेकर स्टूडेंट और मिनिस्टर तक." दुकान इतनी लोकप्रिय हो तो फिर कौन चाहेगा उसके बदले किसी रेस्तरां का मालिक बनना.

एमजे/ओएसजे (एएफपी)