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टॉयलेट से परेशान केन्या

१३ नवम्बर २०१३

अगर 300 लोगों पर सिर्फ एक टॉयलेट हो, तो अंजाम क्या होगा. केन्या की राजधानी नैरोबी के बाहरी हिस्से में ऐसी ही हालत है और लोगों का बुरा हाल है.

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तस्वीर: Fotolia

इस वजह से काफी गंदगी है. बीमारियां बढ़ रही हैं और लोगों को यहां वहां गंदगी फेंकने पर मजबूर होना पड़ रहा है. नैरोबी की बाहरी झुग्गी बस्ती कीबेरा में लाखों लोगों के लिए मुट्ठी भर टॉयलेट हैं और स्थिति सुधारने की कोशिश की जा रही है. इस प्रोजेक्ट से जुड़ी केमीला वीरसीन का कहना है, "साफ सफाई दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में एक है. 40 फीसदी लोगों के पास टॉयलेट नहीं और कहा जाता है कि 70 प्रतिशत बीमारियां इसी वजह से होती हैं, जहां सफाई नहीं है, जहां का पानी गंदा है."

नायाब टॉयलेट

स्वीडन के पीपुपल प्रोजेक्ट से जुड़ी वीरसीन कहती हैं कि वह कीबेरा में ऐसा मॉडल लाना चाह रही हैं, जहां टॉयलेट की गंदगी अपने आप विघटित हो जाए. यह यूज एंड थ्रो (इस्तेमाल करो और फेंको) टॉयलेट है और उनका कहना है कि इससे दुनिया भर के अरबों लोगों को फायदा पहुंच सकता है.

इस योजना के तहत पीपू नाम की ऐसी प्लास्टिक थैली विकसित की गई है, जिसे सीलबंद किया जा सकता है और जो खुद ही डिकंपोज हो जाती है. इसमें थोड़ा सा यूरिया पावडर डाला जाता है. इससे मल में मिले खतरनाक संक्रमण वाले तत्व दो तीन हफ्ते में विघटित हो जाते हैं. इसे किसी गोलाकार बर्तन पर फिट किया जा सकता है और इस्तेमाल के बाद आसानी से बांध कर रखा जा सकता है. बाद में इसे अलग अलग केंद्रों पर जमा किया जाता है, जहां से इसे खाद बनाने वाली कंपनियों को बेचा जा सकता है. बदले में इस्तेमाल करने वाले लोगों को थोड़े पैसे भी दिए जाते हैं.
बेहतर माहौल

वीरसीन का कहना है कि पहले पूरे इलाके में गंदी थैलियां जमा हो जाती थीं और लोग सुरक्षा के डर से रात में टॉयलेट के लिए बाहर निकलने से कतराते थे. महिलाओं का हाल तो और भी बुरा था.

Kambodscha Hygiene Aufklärung Toilette
साफ सफाई जरूरीतस्वीर: DW/K. James

29 साल की लीडिया क्वामबोका कीबेरा में रहती हैं और खुशी खुशी इस प्रोजेक्ट में शामिल हुई हैं. उनका कहना है कि टॉयलेट जाना अब जी का जंजाल नहीं रहा, "जहां मैं रहती हूं, वहां कोई टॉयलेट नहीं है. जब मेरे बच्चों को रात में डायरिया हो जाता था, तो मैं प्लास्टिक का इस्तेमाल करती थी और बाद में इसे नाली में फेंक देती थी. लेकिन अब पीपू प्रोजेक्ट से हर जगह बदलाव आ रहा है. आप इसे कभी भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे बाद में केंद्रों में जमा कराने पर उसी दिन पैसे भी मिल जाते हैं."

लोगों में संतुष्टि

पीपू बेचने वाली 51 साल की पैट्रीशिया ओकेलो कहती हैं कि 2010 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के बाद से अब 5,000 लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं और अब इलाका ज्यादा स्वच्छ हुआ है, "पीपू से पहले यह इलाका बहुत गंदा था. पीने का पानी भी साफ नहीं था. अब हमारे सामने हैजा और टायफाइड जैसी बीमारियां नहीं हैं." ओकेलो भी कीबेरा की ही रहने वाली हैं. वीरसीन कहती हैं कि अगले साल तक इस प्रोजेक्ट को पांचगुना और 2015 तक 10गुना बढ़ाने की योजना है.

हालांकि पीपू की दीर्घकालीन सफलता अभी साबित नहीं हुई है. पर कीबेरा के लोगों को इस बात की संतुष्टि है कि उनका इलाका साफ हो रहा है और उन्हें बदले में हर बार दो डॉलर तक की रकम भी मिल जा रही है. कंपनी को उम्मीद है कि यह उपाय प्राकृतिक आपदाओं में भी काम आ सकता है. सबसे बढ़ कर बात कि लोगों को टॉयलेट जाने को लेकर शर्मिंदगी से नहीं गुजरना पड़ता. वीरसीन कहती हैं, "साफ सफाई इज्जत की भी बात है."

एजेए/ओएसजे (एएफपी)

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