जर्मन सेना में सुधार की योजना पेश
२३ अगस्त २०१०जर्मन सेना बुंडेसवेयर अपने 55 साल के इतिहास के सबसे गंभीर मोड़ पर खड़ी है. रक्षा मंत्री गुटेनबर्ग ने सोमवार को सेना में सुधार की अपनी योजना गठबंधन पार्टियों के संसदीय दलों के सामने पेश की. उन्होंने रविवार को ही चांसलर अंगेला मैर्केल को अपनी योजना की जानकारी दे दी थी. चांसलर ने सुधार के इस मॉडल को अभी तक अपना पूरा समर्थन नहीं दिया है लेकिन अनिवार्य सैनिक सेवा को रोकने के प्रस्ताव को खुले दिमाग से देख रही हैं. उनका कहना है कि अनिवार्य सैनिक सेवा को मौलिक रूप से समाप्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि किसी को पता नहीं कि भविष्य में कौन सी चुनौतियां सामने आएंगी.
अनुदारवादी सीडीयू सीएसयू पार्टी में अनिवार्य सैनिक सेवा विचारधारात्मक मुद्दा रहा है. इसलिए इसके समर्थक मोर्चा तैयार कर रहे हैं. अनिवार्य सैनिक सेवा को रोके जाने के साथ ही उसके बदले की जाने वाली नागरिक सेवा भी समाप्त हो जाएगी, जिसका असर सामाजिक सहायता संस्थाओं पर पड़ेगा.इनमें से बहुत सी ईसाई गिरजों के साथ भी जुड़ी हुई हैं. कल्याणकारी संस्थाओं ने सुधारों का विरोध शुरू कर दिया है.
गुटेनबर्ग ने सत्ताधारी सांसदों के सामने कुल पांच मॉडल रखे हैं लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता क्या है. उनके विचार से आने वाले सालों में सेना की संख्या 2 लाख 52 हजार से घटाकर 1 लाख 63 हजार कर दी जानी चाहिए. रक्षा मंत्री के अनुसार आबादी के विकास के मद्देनजर सेना की संख्या 1 लाख 80 हजार तक संभव हो सकेगी.
अनिवार्य सैनिक सेवा का प्रावधान संविधान में बना रहेगा लेकिन सहमति के बिना किसी को सेना में भर्ती नहीं किया जाएगा. उसके बदले 12 से 23 महीने की परीक्षण सैनिक सेवा की संभावना होगी जिसका इस्तेमाल रक्षा मंत्रालय पेशेवर सेना के सदस्यों को चुनने के लिए करेगा. एकमात्र गंभीर विकल्प 2 लाख 10 हजार वाली सेना है जिसमें 30 हजार अनिवार्य सैनिक सेवा करने वाले सैनिक होंगे. गुटेनबर्ग का लक्ष्य है, छोटी लेकिन एक आधुनिक और कुशल सेना.
सुधार के मसले पर सत्ताधारी मोर्चा विभाजित है लेकिन सरकार को विपक्षी पार्टियों और सामाजिक संगठनों के विरोध का भी सामना करना होगा. सुधारों का लक्ष्य 2014 तक सवा 8 अरब यूरो की बचत है. रक्षा मंत्री इस साल के अंत तक सुधारों की नैया पार करवा लेना चाहते हैं. सोमवार से जर्मन सेना में सुधारों की बहस शुरू हो रही है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: एम गोपालकृष्णन