चुनौती संगठन को सक्रिय करने की
८ मई २०१३पिछले सालों में इस संगठन ने अपनी अहमियत इतनी खो दी है कि जर्मन शहर कील के विश्व अर्थव्यवस्था संस्थान के रॉल्फ लांगहामर कहते हैं, "जो कोई भी डब्ल्यूटीओ के शिखर पर हो, वह महत्वपूर्ण सदस्यों के व्यवहार पर निर्भर होता है." और उन पर लांगहामर विश्व व्यापार की बाधाओं को दूर करने में राजनीतिक इच्छा के अभाव का आरोप लगाते हैं.
दशकों का दबदबा
कुछ साल पहले 90 के दशक के मध्य तक हालात अलग थे. उन दिनों डब्ल्यूटीओ के पूर्वगामी गैट (जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स एंड ट्रेड) की वार्ताओं में मुक्त व्यापार के हिमायती एक के बाद एक संधियां किए जा रहे थे. गैट वार्ता के 60 के दशक तक हुए पहले छह दौर में सदस्यों का लक्ष्य सीमा शुल्क में कमी लाना था. यह वह समय था जब सदस्य द्विपक्षीय वार्ताएं करते थे. सबसे व्यापक और बातचीत पूरी करने वाला 8वां दौर ऊरुग्वे में 1986 में शुरू हुआ.
योजना से तीन साल की देरी से सात साल की बातचीत और सौदेबाजी के बाद वार्ताकारों ने हस्ताक्षर के लिए एक समझौता और कई अतिरिक्त प्रोटोकॉल पेश किए. सारा दस्तावेज 22,000 पेजों का था. सीमा शुल्क में और कमी करने के अलावा इस संधि में कृषि क्षेत्र को उदार बनाने के पहले कदम उठाए गए थे. कृषि सबसिडी को कम करने और आयात के कोटे को सीमा शुल्क में बदलने का इरादा था. लेकिन बाद के सालों ने दिखाया कि सदस्य देशों ने कृषि क्षेत्र को खोलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. यह विश्व व्यापार संगठन के लिए दुर्भाग्य साबित हुआ.
महाशक्ति की कमी
2001 में शुरू हुए दोहा चक्र के बाद से ही यह साफ हो गया. मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र औद्योगिक देशों और विकासशील देशों के बीच विभाजन का कारण बना. धनी देश किसानों के लिए सबसिडी खत्म नहीं करना चाहते हैं तो विकासशील देश आयात शुल्क लगाकर अपने उत्पादों को बचा रहे हैं. जब तक दोनों पक्षों के बीच इस मुद्दे पर सहमति नहीं होती, उन्हें इस बात का कोई फायदा नहीं है कि वे सर्विस सेक्टर और उद्योग क्षेत्र को उदार बनाने या वोटिंग की प्रक्रिया को सुधारने पर सहमत हैं.
दोहा राउंड का समापन संधि के एक पैकेज के साथ ही संभव है, जिस पर सभी 159 देशों को सहमत होना होगा. लांगहामर का मानना है कि पहले अमेरिका इस तरह की मुश्किल को उन देशों को हर्जाना देकर हल कर सकता था, जिनका नई संधि से नुकसान होता. और इस तरह सहमति हासिल हो सकती थी. लेकिन अमेरिका के पास अब यह ताकत नहीं है. और लांगहामर के मुताबिक यही वह कारण है कि वह वैश्विक वार्ता को रोक रहा है.
दोहा या ट्रांस अटलांटिक संधि
दोहा चक्र में आए ठहराव के कारण बहुत से देशों ने अपनी व्यापारिक रणनीति बदल ली है. क्षेत्रीय मुक्त व्यापार संधियां लोकप्रिय हो रही हैं. इस बीच इस तरह की 354 संधियां अमल में हैं. और 192 संधियों पर बातचीत हो रही है. ऊरुग्वे दौर की समाप्ति पर इस तरह की सिर्फ 120 संधियां थीं. इस साल फरवरी में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने कहा है कि वे ट्रांस अटलांटिक मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू करेंगे. यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र होगा. लांगहामर कहते हैं कि जैसे ही यह बातचीत शुरू होगी दोहा संधि के लिए कोई मौका नहीं बचेगा. सारे संसाधन नई संधि की बातचीत में लग जाएंगे.
इस तरह की संधि गैर सदस्यों के साथ भेदभाव भी करती है. आलोचकों का मानना है कि बाजार को खोलने के बदले इनका उद्देश्य उसकी नाकेबंदी होती है. लांगहामर का कहना है कि खासकर चीन को इसका नुकसान होगा. दोहा वार्ता के शुरू में वह डब्ल्यूटीओ का सदस्य बना था और उसकी आर्थिक प्रगति ने पुराने औद्योगिक देशों पर दबाव बढ़ा दिया है.
दोहा वार्ता विफल होती है या उम्मीद के विपरीत सफल रहती है, विश्व व्यापार संगठन के समर्थकों का मानना है कि अब तक के प्रयास व्यर्थ नहीं रहे हैं. 1995 से 2008 में वित्तीय संकट आने तक विश्व व्यापार में 80 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. भले ही दोहा विफल हो जाए, विश्व व्यापार संगठन की अहमियत बनी रहेगी. लांगहामर कहते हैं, "संस्थान मरते नहीं, भंग किए जाने वे बदले वे विकृत हो जाते हैं." इस तरह से रोबैर्टो अजेवेडो भले ही कुछ न कर पाएं, लेकिन एक सुरक्षित पद तो उन्हें मिल ही गया है. ब्राजील के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन में यह अब तक का सर्वोच्च पद है.
रिपोर्ट: युट्टा वासरराब/एमजे
संपादन: आभा मोंढे