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एशिया प्रशांत के देशों की ईयू जैसी चाहत

२३ अप्रैल २०१३

आपसी मतभेद और तीखे विवादों के बावजूद एशिया प्रशांत के 16 देश मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना चाहते हैं. वो यूरोपीय संघ जैसा मॉडल बनाना चाहते हैं. इसी उम्मीद के साथ बुधवार से ब्रूनेई में आसियान के नेता मिल रहे हैं.

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तस्वीर: REUTERS

मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने की मुहिम को रीजनल कॉनप्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) नाम दिया गया है. इसमें भारत, चीन, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों को भी शामिल करने की योजना है. आसियान के 10 सदस्य देश ब्रूनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम तो इसका हिस्सा होंगे ही. लेकिन आरसीईपी के इस विचार को ठोस समझौते तक पहुंचाना आसान नहीं है.

बीते साल नॉमपेन्ह में हुए आसियान शिखर सम्मेलन में आरसीईपी पर चर्चा हुई. बीते एक साल में योजना चर्चा के स्तर से आगे नहीं बढ़ी है. यही वजह है कि इस बार आसियान नेता अभी से इसे आगे बढ़ाने की तैयारी में जुटे हैं. ब्रूनेई में बुधवार और गुरुवार को होने वाली मुलाकात में इसी पर मुख्य ध्यान दिया जाएगा.

नेताओं की कोशिश है कि मई में होने वाले आसियान सम्मेलन में आरसीईपी को लेकर समझौते की प्रक्रिया शुरू हो. सम्मेलन से पहले तैयार किए गए मसौदे में कहा गया है, "हम मौजूदा चीजों (मुक्त व्यापार संधियों) को गहरा और विस्तृत करना चाहते हैं. आरसीईपी के मंच के जरिए हम भविष्य के कारोबार और एशिया व बाकी विश्व के साथ निवेश संबंधी मेल मिलाप को आगे ले जाना चाहते हैं."

आरसीईपी के जरिए आसियान देश इलाके में बढ़ते अमेरिकी प्रभाव से भी निपटना चाहते हैं. अमेरिका भी ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) पर बातचीत कर रहा है. टीपीपी में ऑस्ट्रेलिया, ब्रूनेई, चिली, कनाडा, जापान, मलेशिया, मेक्सिको, न्यूजीलैंड, पेरु, सिंगापुर, अमेरिका और वियतनाम जैसे देश हैं.

Indien ASEAN Gipfel in New Delhi
बीते साल दिल्ली में मिले आसियान नेतातस्वीर: dapd

आईएचएस ग्लोबल इनसाइट के चीफ रीजनल इकोनॉमिस्ट राजीव बिश्वास कहते हैं, "आरसीईपी एक ऐसा अहम मंच मुहैया कराता है जो एशिया-प्रशांत में व्यापार संबंधी डील तैयार करने मौका देता है. यह दुनिया का सबसे तेजी से विकास करने वाला इलाका है. यह पहल काफी अहम है क्योंकि इसमें विकास करते बाजारों के तीन सिरे हैं, चीन, भारत और आसियान."

संभावित सदस्यों का कहना है कि आपसी मतभेदों के बावजूद वो आरसीईपी के रास्ते पर आगे बढ़ने को तैयार हैं. हालांकि ऐसी बातें करने और हकीकत में फर्क भी होता है. फिलीपींस, वियतनाम, ब्रूनेई और मलेशिया के साथ चीन का दक्षिण चीन सागर में विवाद चल रहा है. इन दोनों का आरोप है कि बीजिंग उन्हें धमकाने के लिए आक्रामक तेवर अपना रहा है. भारत और चीन के बीच भी बीते छह दशकों से सीमा विवाद है. पूर्वी चीन सागर के द्वीपों को लेकर तो चीन और जापान की आए दिन तीखी नोंक झोंक हो रही हैं.

हालांकि आसियान के नेताओं को उम्मीद है कि एक मंच पर बड़े नेताओं के आने से ऐसे विवाद सुलझाने में भी मदद मिलेगी. मसौदा कहता है, "हम उस वचनबद्धता की फिर पुष्टि करते हैं जो धमकी या बल इस्तेमाल किए बिना शांतिपूर्ण तरीके से विवादों को हल करने का भरोसा दिलाती है." आसियान के अध्यक्ष देश ब्रूनेई को उम्मीद है कि इस साल के अंत तक आसियान और चीन के बीच दक्षिण चीन सागर को लेकर लिखित समझौता हो जाएगा.

आसियान की स्थापना 1967 में हुई. आर्थिक विकास के लिए एशिया के ज्यादातर देश लंबे वक्त तक अमेरिका या यूरोप पर निर्भर रहे. लेकिन अब एशियाई बाजार विकास का इंजन बन चुके हैं. ऐसे आसियान और एशियाई नेता चाहते हैं कि यूरोपीय संघ की तरह वो भी साथ आएं और मिसाल पेश करें. पश्चिमी देशों की मंदी से बचने के लिए भी यह सहयोग जरूरी दिखाई पड़ता है.

ओएसजे/एमजे (एएफपी, डीपीए)

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