आईपीसीसी में बड़े बदलाव करने की सिफारिश
३१ अगस्त २०१०2035 तक हिमालय के ग्लेशियरों के पूरी तरह पिघलने का दावा करने के बाद संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी संस्था आईपीसीसी की जबरदस्त आलोचना हुई. आईपीसीसी के गलत दावों की जांच इंटरएकेडमी काउंसिल आईएसी को सौंपी गई. अमेरिका और ब्रिटेन समेत करीब 100 देशों के वैज्ञानिकों ने आईएससी के तहत काम किया. अब आईएसी ने अपनी सिफारिशों की रिपोर्ट सयुंक्त राष्ट्र को सौंप दी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के डॉक्टर राजेंद्र पचौरी की अगुवाई वाली आईपीसीसी में 'सफल बड़े फेरबदल' की जरूरत है. आईएसी के मुताबिक आईपीसीसी को हवाई दावों के बजाए बेहद ठोस और वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर ही कोई बात कहनी चाहिए. रिव्यू पैनल ने आईपीसीसी प्रमुख के कार्यकाल को घटाने और मैंनेजमेंट में बदलाव करने की सिफारिश भी की है.
रिपोर्ट में गया है कि आईपीसीसी के चैयरमैन के लिए दो बार छह-छह साल का कार्यकाल बहुत ज्यादा है. इसे कम करके सिर्फ छह साल का ही किया जाना चाहिए. अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यकाल में भी कटौती होनी चाहिए. डॉ आरके पचौरी 2002 से आईपीसीसी के प्रमुख हैं.
संयुक्त राष्ट्र से कहा गया है कि आईपीसीसी में एक एक्जीक्यूटिव कमेटी बनाई जानी चाहिए, इसमें आईपीसीसी से बाहर के वैज्ञानिकों को रखा जाना चाहिए. रिपोर्ट में आईपीसीसी की मौजूदा कार्यप्रणाली पर कुछ गंभीर सवाल उठाए गए हैं. कहा गया है कि पचौरी आईपीसीसी प्रमुख होने के साथ साथ कुछ एनर्जी फर्म्स के बोर्ड सदस्य हैं. ऐसे में हितों का टकराव होने की संभावना बनी रहती है. किसी की तरफदारी हो सकती है, इससे बचा जाना चाहिए. रिपोर्ट कहती है कि आईपीसीसी के लोगों को किसी अन्य व्यवसायिक फर्म का सदस्य नहीं होना चाहिए.
आईपीसीसी ने 2007 में जलवायु परिवर्तन पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी. रिपोर्ट में हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने और हॉलैंड के डूबने के गलत दावे किए गए थे. जांच में पता चला कि आईपीसीसी ने बिना किसी वैज्ञानिक आधार के कुछ मीडिया रिपोर्टों को जस का तस छाप दिया. आईएसी ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या है और लोगों में बिना भरोसा पैदा किए इससे निपटा नहीं जा सकता है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: महेश झा