आईपीसीसी चेयरमैन पचौरी ने माफ़ी मांगी
२८ मार्च २०१०आईपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में हिमालय ग्लेशियर 2035 तक पिघलने की बात कही थी लेकिन भारत सरकार ने उस दावे को चुनौती दी थी. आईपीसीसी ने जवाब में भारत सरकार की रिपोर्ट को वूडू साइंस यानी जादू टोना क़रार दिया था लेकिन अब पचौरी माफ़ी मांग रहे हैं. 70 साल के आरके पचौरी ने कहा कि वह अब तटस्थ सलाहकार की भूमिका निभाना चाहते हैं और जलवायु परिवर्तन अध्ययन पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहेंगे.
जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले के लिए कैसी नीतियां अपनाई जानी चाहिए आरके पचौरी इसकी अनुशंसा से अब दूर रहने की बात कह रहे हैं. आईपीसीसी चेयरमैन ने माना कि हिमालय ग्लेशियर के पिघल जाने संबंधी दावे पर सवाल उठने के बाद संस्था की प्रतिक्रिया देर में आई और वह अपर्याप्त थी.
इस्तीफ़े की मांगों पर पचौरी ने कहा कि उन्हें दुनिया की हर सरकार का समर्थन मिला हुई है और वह आईपीसीसी की अगली रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक चेयरमैन बने रहेंगे. आईपीसीसी की अगली आकलन रिपोर्ट 2014 में प्रकाशित होनी है.
भारत सरकार की रिपोर्ट को जादू टोना बताने पर पचौरी कहते हैं कि वह सही बयान नहीं था और उन्हें ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. "मुझे ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिए जो किसी ख़ास विषय पर काम कर रहे हैं." उन्होंने आईपीसीसी की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों को ख़ारिज किया है.
लंदन के टाइम्स अख़बार को उन्होंने बताया कि यह कहना सही नहीं है कि लोग उनका विश्वास नहीं करते. पचौरी ने स्वीकार किया कि कई इंटरव्यू में उन्होंने उत्सर्जन में कटौती के लिए कुछ विशेष क़दम उठाने की पैरवी की और वह एक ग़लती थी.
पिछले साल उन्होंने हवाई यात्राओं और मोटर गाड़ियों पर ज़्यादा टैक्स लगाने की वकालत की थी और लोगों को कम मीट खाने की सलाह दी थी. पचौरी का प्रस्ताव था कि होटल के कमरों में मीटर लगे होने चाहिए ताकि एयर कंडीशनिंग का अतिरिक्त पैसा लोगों से वसूला जा सके.
लेकिन अब पचौरी ऐसे कोई भी सलाह देने से दूर रहने की सोच रहे हैं. "मैं कहना चाहता हूं कि मैं कोई भी समाधान नहीं सुझा रहा हूं. हर व्यक्ति कुछ न कुछ सीखता है और मुझे ऐसी बातों को कहने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए. यह मैंने सीखा है."
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़