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होली का हुड़दंग और कार्निवल की मस्ती

रति अग्निहोत्री४ मार्च २००९

यूरोप में कार्निवल की धूम अभी ख़त्म ही हुई है तो भारत में होली के रंग बिखरने वाले हैं. दोनों ही रंग बिरंगे और मस्ती भरे त्यौहार हैं, लेकिन कुछ ऐसी दिलचस्प बातें हैं जो दोनों को एक दूसरे अलग करती हैं.

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भारत में आने वाली है रंगों की बहारतस्वीर: AP

कार्निवल यूरोप और ब्राज़ील के साथ साथ भारत के गोवा में भी मनाया जाता है. रंगबिरंगी ड्रेसें पहनकर लोग जमकर मस्ती करते हैं, जमकर बीयर और शराब पीते हैं. एक दूसरे को हंसते हंसाते हैं. वहीं होली में रंगों की बरसात होती है और बहुतों पर भंग का सुरूर चढ़ा होता है.

धार्मिक आधार

कार्निवाल की शुरुआत इटली में कैथोलिक धर्म के त्योहार के रूप में दो सौ साल पहले हुई. इस धर्म में लेंट नाम का एक व्रत होता है. इन दिनों लोग सिर्फ़ शाकाहारी भोजन करते हैं. इस व्रत के ठीक एक दिन पहले इटली के लोगों ने यह उत्सव मनाना शुरू किया. इस दिन वे रंग बिरंगी पोशाकों में सज धज कर नाचते गाते थे. वक़्त गुज़रने के साथ साथ इटली का यह कार्निवल अन्य यूरोपीय देशों में भी प्रचलित हुआ. इस प्रकार यह इटली से निकल कर फ़्रांस, स्पेन, जर्मनी जैसे देशों में फैल गया.

BdT Holi Fest der Farben
रंगों से सराबोरतस्वीर: AP

कार्निवल की तरह होली भी एक धार्मिक त्योहार के रूप में शुरू हुआ.लेकिन इसे ख़ासकर प्रेम और बेबाकी का त्योहार माना जाता है. इसे हिन्दू धर्म में प्रेम के प्रतीक राधा और कृष्ण की रासलीला का भी पर्याय माना जाता है. जिस प्रकार कर्निवल में लोग रंग बिरंगे मुखौटे पहने एक दूसरे के साथ प्यार भरी लुका छिपी का खेल खेलते हैं, उसी तरह होली पर भी लोग लाल, पीले, हरे रंगों की ओट में सामाजिक बंधनों से एक दिन के लिए निजात पाते हैं. भारत में टीवी और रंगमंच से जुड़े निखिल राज कहते हैं, ''होली के दिन आप किसी को गंदा करते हैं. कहते हैं न, गंदा कर दिया किसी को. अगर रंग लगाना हो तो वो गंदा होता है. लेकिन इस दिन लोग रंग लगाकर अपने आप को खुद गंदा करके ख़ुश होते हैं, मुझे रंगों, मुझे ढको, मुझे पोतो.''

मस्ती का माहौल

होली और कार्निवल दोनों की शुरुआत तो धार्मिक उत्सवों के रूप में हुई, लेकिन आज ये किसी धर्म विशेष की परिधि लांघ कर सभी लोगों को प्रेम और मस्ती के सूत्र में बांधने वाले सांस्कृतिक उत्सव बन गये हैं. जर्मनी के राइनलैंड क्षेत्र के शहर कोलोन में होने वाला कार्निवल यूरोप के सबसे बड़े कार्निवलों में से एक है. पांच दिन चलने वाला यह उत्सव यहां की संस्कृति में रच बस गया है. आज यह मात्र कैथोलिक उत्सव न होकर इस शहर के तुर्की, कुर्दिश आदि विभिन्न गैर इसाई समुदाय के लोगों के लिए भी एक मौका बन गया है. यही हाल भारत में होली का भी है. थियेटर और टीवी से जुड़े कलाकार बोनी भट्टाचर्य होली को बाक़ी भारतीय त्योहारों से अलग मानते हैं. उनके शब्दों में, ''एक तो रंगों का मामला है, तो वह मिलीजुली इन्ट्रेस्टिंग होता है. होली में पार्टिसिपेशन जो होता है, अक्रॉस द क्रॉस सेक्शन होता है. और वहां आप ये नहीं सोचते कि आपका स्टेटस क्या है. किस क्रॉस सेक्शन से आपका नाता है तो वहां एक भाईचारा पैदा होता है.''

Deutschland Karneval Rosenmontag Mainz
जो चाहो बन जाओतस्वीर: AP

बुरा न मानो..

कार्निवल के मौक़े पर जानबूझ कर हर चीज़ की अति कर दी जाती है, चाहे वों शराब पीना हो य हुड़दंग मचाकर मस्ती करना. चूंकि इसके बाद आने वाले व्रत के दिनों में लोगों को कड़े अनुशासन का पालन करना पड़ता है, इसीलिए माना जाता है क यह एक मौक़ा होता है उनके लिए दिल की सारी भड़ास निकालने का. कुछ ऐसा ही आलम होली पर भी होता है. निखिल राज उत्तर प्रदेश के शहर बनारस में खेली जाने वाली होली से जुड़े अपने अनुभवों को याद करते हुए कहते हैं, ''बनारस में जो होली खेली जाती है, उस दिन लोग अपने दिल की सारी भड़ास निकालते हैं, कविताओं के रूप में. जिसमें कहते हैं कि मज़ाकिया रिश्ते में जो गाली देना होता है, जो कि बनारस में ख़ासियत है. तो उस दिन या तो वो वीएचपी के नेता हों या कोई भी बड़े से बड़े नेता हों, सारी पोस्ट छोड़ कर आते हैं.''

Deutschland Karneval Rosenmontag Düsseldorf
कहिए, कैसा लगा मेरा रूपतस्वीर: AP

बनावटी ख़ुशी?

कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इन पर्वों पर होने वाली इस अति को आलोचनात्मक नज़रिए से देखते हैं. जर्मनी में लंबे समय से बसे पेरू के मिगल गार्किया का मानना है कि कार्निवल सरीखे त्योहार लोगों को आज़ादी का एक भ्रम देते हैं. वे कार्निवल से उत्पन्न हुई ख़ुशी को मीडिया द्वारा खींचे गए झूठे रंगीन तिलिस्म को देख होने वाली खुशी के समान मानते हैं. वे कहते हैं कि पश्चिमी सभ्यताओं में एक वास्तविक खुलेपन की कमी होती है, जिसे पूरी करने के लिए लोग कुछ दिन के लिए सामाजिक नियमों के तिलांजलि दे ख़ुश हो लेते हैं.