होता क्या है जी20 में?
३० नवम्बर २०१८आम तौर पर जिसे जी20 कहा जाता है उसका मतलब है "ग्रुप ऑफ 20". एक ऐसा समूह जिसमें 19 देश हैं और 20वां हिस्सेदार है यूरोपीय संघ. सभी भागीदार साल में एक बार एक शिखर सम्मेलन में एक दूसरे से मिलते हैं. इन बैठकों में राज्यों के सरकार प्रमुखों के साथ उन देशों के केंद्रीय बैंक के गवर्नर भी शामिल होते हैं. यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व यहां यूरोपीय आयोग करता है और साथ ही यूरोपीय केंद्रीय बैंक भी बैठक में हिस्सा लेता है. मुख्य रूप से यहां आर्थिक मामलों पर चर्चा होती है.
यूरोपीय संघ के अलावा ये 19 देश जी20 के सदस्य हैं: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका. ये सभी सदस्य मिल कर दुनिया के सकल उत्पाद यानी जीडीपी का 85 फीसदी हिस्सा बनाते हैं. इसके अलावा इन देशों का वैश्विक व्यापार में हिस्सा भी अस्सी फीसदी है और दुनिया की दो तिहाई आबादी यहीं रहती है.
जी20 की बैठक के दौरान कुछ "मेहमानों" को भी आमंत्रित किया जाता है. अफ्रीकी संघ, एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (एपेक), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), संयुक्त राष्ट्र (यूएन), विश्व बैंक, विश्व आर्थिक संगठन (डब्ल्यूटीओ) और स्पेन इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाली स्थाई अतिथि हैं.
यूं हुई शुरुआत
जी20 को समझने के लिए जी7 के बारे में जानकारी जरूरी है. 1975 के आर्थिक संकट के मद्देनजर दुनिया के छह बड़े देशों ने एक साथ आने का फैसला किया. ये देश थे फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका. एक साल बाद कनाडा भी इसमें शामिल हो गया और इस तरह से जी7 की शुरुआत हुई. सोवियत संघ के खत्म होने के बाद धीरे धीरे रूस को इस समूह में शामिल करने के प्रयास शुरू किए गए. 1998 में आखिरकार रूस भी जुड़ गया और समूह जी7 से जी8 बन गया.
इसके अगले ही साल जून 1999 में जब जर्मनी के कोलोन शहर में जी8 के देशों की बैठक हुई, तब एशिया के आर्थिक संकट पर चर्चा की गई. उस वक्त दुनिया भर की बीस सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाने का फैसला किया गया. दिसंबर 1999 में बर्लिन में पहली बार जी20 का रास्ता तय करने के लिए बैठक हुई. इसमें सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों ने शिरकत की. माना जाता है कि बीस देशों की सूची बनाने का काम जर्मनी और अमेरिका ने मिल कर किया था.
वक्त के साथ बैठक के रूप में कई बदलाव आए. जी8 को राजनीतिक और जी20 को आर्थिक मंच के तौर पर अलग अलग पहचान दी गई. 2014 में रूस को जी8 से अलग किया गया और वह एक बार फिर जी7 बन गया. आज जिस रूप में हम जी20 को जानते हैं, उसकी शुरुआत दस साल पहले नवंबर 2008 से हुई. अमेरिका में पहली बार बीस देशों के राष्ट्राध्यक्ष आर्थिक मामलों पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए. 2009 और 2010 में यह बैठक दो बार हुई.
दुनिया में जी संगठनों की सूची लंबी है
कितना अहम है जी20?
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे आर्थिक विवाद को देखते हुए जी20 जैसे मंच की अहमियत समझ में आती है. डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से कई तरह के बदलाव आए हैं. अपनी "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत ट्रंप ने जी20 के उसूलों को कई बार नजरअंदाज किया है. वे लगातार वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाते रहे हैं और उन्होंने यह कहने में भी कभी संकोच नहीं जताया है कि उनके लिए सिर्फ उन्हीं के देश की अर्थव्यवस्था सबसे ज्यादा मायने रखती है.
2017 में जर्मनी के हैम्बर्ग में ट्रंप पहली बार बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति जी20 सम्मेलन में पहुंचे थे. 20 सदस्यों में वे एकमात्र थे, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन पर समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था. अपनी पहली बैठक में ट्रंप ने जो रवैया पर्यावरण के प्रति दिखाया, दूसरी बैठक में वे वही अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रति दिखा सकते है.
दो दिन चलने वाले इस सम्मेलन में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल अमेरिका, रूस, चीन और भारत के नेताओं से द्विपक्षीय बातचीत करेंगी. हालांकि प्लेन में आई खराबी के कारण वे समय से रवाना नहीं हो पाई और उनका कार्यक्रम थोड़ा बिगड़ गया है. वहीं, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन के पहले दिन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश से मुलाकात कर रहे हैं. जी20 के दूसरे दिन वे दो अहम त्रिपक्षीय बैठकों में हिस्सा ले रहे हैं. पहली जापान और अमेरिका के साथ और दूसरे रूस और चीन के साथ.
रिपोर्ट: थोमास कोलमन/ईशा भाटिया
जर्जर हाल में सरकारी हवाईजहाज