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हेलमेट बनेंगे और बेहतर

९ जनवरी २०१४

वैज्ञानिकों ने फुटबॉल के खेल के दौरान पहना जाने वाला ऐसा हेलमेट बनाया है जो खिलाड़ियों की जान बचाने में ज्यादा असरदार होगा. कई बार हेलमेट पहने होने के बावजूद खिलाड़ियों के सिर पर लगी गंभीर चोटों से उनकी जान पर बन आती है.

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तस्वीर: imago sportfotodienst

पूरा विश्व सिर पर लगी चोट की वजह से गंभीर रूप से जख्मी हुए फॉर्मूला वन चैंपियन मिषाएल शूमाखर की हालत सुधरने की दुआ मांग रहा है, लेकिन हो सकता है कि एक खास आविष्कार भविष्य में खिलाड़ियों को इस तरह के हादसों से बचा सकेगा. अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा के वैज्ञानिक एक ऐसा हेलमेट बनाने में जुटे हैं जिससे मस्तिष्क को गहरे आघात से बचाया जा सकेगा. यह हेलमेट न सिर्फ अभी उपलब्ध हेलमेटों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित होंगे बल्कि उनसे सस्ते भी.

कैसे बचाता है हेलमेट

बाजार में खेलों के लिए जो खास हेलमेट मिलते हैं वो इस तरह से डिजाइन किये जाते हैं ताकि सिरों के बीच आमने सामने से हुई टक्कर को झेल सकें. लेकिन सीधी टक्कर के बाद सिर काफी तेज झटके के साथ पीछे भी जाता है. बहुत सारे शोध इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सिर पर बार बार चोट लगने से मस्तिष्क पर बुरा असर होता है. कई मामलों में तो कई सालों के बाद जाकर व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता में कमी आ सकती है, पागलपन और भूलने की बीमारियां भी हो सकती है.

फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग पढ़ा रहे घाटु सुभाष बताते हैं कि उन्होंने जो नया तरीका ढूंढा है उसमें हेलमेट के भीतर तरल द्रव्य से भरी थैलियों का इस्तेमाल किया जाएगा. टेस्ट के नतीजों में सामने आया है कि ऐसा करने से हेलमेट पहनने वाले के मस्तिष्क को सिर्फ सीधी टक्कर ही नहीं बल्कि किसी भी तरफ से लगने वाली चोट से बचाया जा सकेगा, "हेलमेट में मौजूद तरल द्रव्य वाली थैली हर हाल में सिर के सभी हिस्सों को बचाती है, चाहे टक्कर किसी भी दिशा से लगे."

खेलों के अलावा भी हैं इस्तेमाल

सुभाष को ऐसा हेलमेट बनाने का विचार तब आया जब वह सेना के लिये बेहतर रक्षा कवच बनाने के प्रोजेक्ट पर काम रहे थे. फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के ही तंत्रिका विज्ञानी इयान हेगर और रेडियोलॉजिस्ट कीथ पीटर्स के साथ काम करने वाले सुभाष इस हेलमेट को दुनिया के सामने लाने वाले हैं. इस हेलमेट पर परीक्षणों को आगे बढ़ाने और इनका बड़े स्तर पर उत्पादन करने के लिए वैज्ञानिकों का यह दल 20 जनवरी को निवेशकों के सामने भी प्रदर्शन करेगा.

सुभाष को उम्मीद है कि अगर उन्हें हेलमेट में लगाने के लिये थैलियां सस्ते दामों में मिल जाएंगी, तो इस समय उपलब्ध हेलमेटों में उन्हें दो साल के अंदर फिट किया जा सकेगा. ऐसी थैलियों वाले हेलमेट का इस्तेमाल सैनिक, अग्नि शमन अधिकारी और निर्माण कार्य में लगे मजदूर कर सकेंगें.

कोई हेलमेट नहीं है फूलप्रूफ

हेलमेट में पानी या हवा से भरी थैलियां लगाने से सीधी टक्करों के नुकसान से तो बचा जा सकता है लेकिन अगल बगल से लगी चोट से बचने के लिये नॉन-न्यूटोनियन द्रव्यों से भरी थैलियां ही प्रभावी होंगी. सुभाष बताते हैं कि जब इस खास द्रव्य से बनी थैली के एक खाने पर टक्कर लगती है तो द्रव्य उस खाने से निकल कर एक नली के रास्ते से बगल वाले खाने में चला जाता है. इस तरह हेलमेट पर एक ओर से लगा बल संतुलित हो जाता है और थोड़ी ही देर में द्रव्य वापस अपने पुराने खाने में लौट आता है. इन थैलियों का बार बार इस्तेमाल भी किया जा सकता है. इन नॉन-न्यूटोनियन यानी एक खास किस्म के गाढ़े द्रव्यों का इस्तेमाल बहुत सी कारों में शॉक एबजार्बर या झटके झेलने के लिए होता है.

सिर को झटकों से बचाने का दावा करने वाले बहुत से महंगे हेलमेट बाजार में बिक रहे हैं. इनमें से कई हेलमेट अपनी खूबियों में मस्तिष्क आघातों से सुरक्षा देने का दावा करते हैं लेकिन एथेलेटिक उपकरणों के मानक तय करने वाली नेशनल ऑपरेटिंग कमेटी के रिसर्च डायरेक्टर फ्रेडरिक मूलर बताते हैं कि ऐसा कोई हेलमेट नहीं है जो सर को टक्करों से पूरी तरह बचा सकता है.

आरआर/एमजी(रॉयटर्स)

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