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समाज

पाकिस्तान में पुलिस यातना की संस्कृति

१९ सितम्बर २०१९

पाकिस्तान में लोग पुलिस ज्यादती का शिकार हो रहे हैं. हाल ही में पुलिस हिरासत में हुई कई की मौत के बाद पाकिस्तानी लोग काफी गुस्से में हैं. वे पीड़ितों को तुरंत न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं.

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Todesfall in Pakistanischer Polizeigewahrsam
तस्वीर: Privat

मुहम्मद अफजल पंजाब के गुजरांवाला जिले के गोराली गांव के रहने वाले है. यह जगह पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 250 किलोमीटर की दूरी पर है. उनके मानसिक रूप से विक्षिप्त बेटे सलाहुद्दीन अयूबी की कथित तौर पर पुलिस हिरासत में यातना के बाद मौत हो गई. बेटे की मौत के बाद आसपास के काफी सारे लोग उनके घर पर शोक मनाने के लिए इकट्ठा हुए. 60 साल के अफजल ने डीडब्ल्यू को बताया कि 30 अगस्त को उन्हें स्थानीय न्यूज चैनल के माध्यम से अपने बेटे की गिरफ्तारी के बारे में पता चला. न्यूज में दिखाया जा रहा था कि अयूबी बैंक एटीएम तोड़ रहा है. सीसीटीवी का मजाक उड़ाते अयूबी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इसके बाद पुलिस ने 27 साल के अयूबी को गिरफ्तार कर लिया.

अफजल कहते हैं, "उन्होंने बेरहमी से मेरे बेटे की हत्या कर दी. मैंने अपने बेटे के शरीर पर टार्चर के कई निशान देखे. उसका दाहिना हाथ जला हुआ था. ऐसा लग रहा था कि या तो गर्म पानी फेंका गया है या फिर बिजली के झटके दिए गए हैं. उसके पूरे शरीर पर नीले निशान थे."

पंजाब पुलिस ने अयूबी को टार्चर करने की बात से इनकार कर दिया और कहा कि यह एक स्वभाविक मौत है. अधिकारियों ने कहा कि वह एक 'पागल' व्यक्ति की तरह हरकतें कर रहा था और जब वे उसे अस्पताल लेकर गए तो वह अचेत होकर गिर पड़ा. पंजाब पुलिस के प्रवक्ता इनाम गनी कहते हैं, "हम किसी भी तरह की हिंसा या टार्चर की निंदा करते हैं. यह एक व्यक्तिगत कृत्य हो सकता है. हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि अयूबी की मौत में कोई पुलिस अधिकारी जिम्मेदार है या नहीं. भविष्य में इस तरह की घटना ना हो, इसके लिए हम पुलिस को पीपुल्स फ्रेंडली बनाने के लिए बदलाव कर रहे हैं." एक फोरेंसिक रिपोर्ट में पुष्टी हुई है कि अयूबी की मौत शारीरिक और मानसिक यातना की वजह से हुई है.

पाकिस्तान में पुलिस हिरासत में मौत
पाकिस्तान में पुलिस हिरासत में हुई मौत का कोई विश्वसनीय डाटा नहीं है. मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि पुलिस टार्चर की वजह से होने वाली मौतें बढ़ी है. वे कहते हैं कि वे कहते हैं कि "पुलिस यातना की संस्कृति" देश के अन्य हिस्सों की तुलना में सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत पंजाब में ज्यादा है. अयूबी की मौत ने दक्षिण एशियाई देशों में हिरासत में होने वाली मौतों को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है. अफजल के वकील उसामा खवार कहते हैं, "अयूबी की पुलिस टार्चर के मौत इस तरह की कोई पहली घटना नहीं है. पाकिस्तान में पुलिस हिरासत में टार्चर की वजह से मौत आम बात हो गई है. "

ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) का कहना है कि पुलित द्वारा प्रताड़ित होने का सबसे ज्यादा खतरा हाशिए पर रहने वाले समुदाय के लोगों को होता है. एचआरडब्ल्यू के पाकिस्तानी शोधकर्ता सरूप एजाज कहते हैं, "पुलिस की ज्यादतियों में जवाबदेही ना के बराबर होती है. इससे "पुलिस यातना की संस्कृति" को बढ़ावा मिला है. आधुनिक चुनौतियों से निपटने के लिए पाकिस्तानी पुलिस के पास संसाधनों की कमी है. पुलिस बल को आधुनिक बनाने की जरूरत है. हिरासत में मौत या अन्य अधिकारों के उल्लंघन में शामिल पुलिस अधिकारियों पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए. यह पूरी तरह पारदर्शी और प्रभावी होना चाहिए."

मानवाधिकार के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट कहते हैं कि पाकिस्तान में पुलिस टार्चर को रोकने के लिए कानून की कमी है. वर्ष 2002 में जारी पुलिस आदेश के अनुसार पुलिस अधिकारी किसी भी व्यक्ति को टार्चर नहीं कर सकते हैं. ऐसा करने वाले अधिकारियों पर जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है लेकिन ज्यादातर पुलिस वाले खुद को कानून से ऊपर मानते हैं. ऐसा पुलिस विभाग में जवाबदेही की कमी की वजह से है.

जस्टिस प्रोजेक्ट पाकिस्तान के कार्यकारी निदेशक सराह बिलाल कहते हैं, जो भी पुलिस अधिकारी टार्चर में शामिल होते हैं, उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि किसी भी पुष्ट हुए मामले में एक भी पुलिसकर्मी के ऊपर जवाबदेही तय नहीं की गई. इससे यह साबित होता है कि हमारे पास स्वतंत्र जिला और प्रांतीय निगरानी इकाई नहीं है जो टार्चर के आरोपों की जांच कर सके.

पुलिस सुधार की जरूरत
इस साल की शुरुआत में पंजाब के सहिवाल शहर में आतंकवादी होने के संदेह में पुलिस ने एक ही परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी थी. प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस घटना की निंदा करते हुए पुलिस सुधार का वादा किया था. लेकिन अभी तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि पुलिस सुधार में लंबा वक्त लगेगा. फिलहाल एक नियम बनाना चाहिए जिसमें सभी तरह के टार्चर को अपराध माना जाए. साथ ही टार्चर से पीड़ित और गवाहों की सुरक्षा के लिए संस्था बनाई जाए. टार्चर के मामलों की जांच के लिए स्वतंत्र इकाई की स्थापना हो.

रिपोर्टः हारून जंजुआ/आरआर

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