हामबाखर जंगल में सैकड़ों साल पुराने पेड़ कटेंगे
जर्मनी में कोलोन शहर के निकट स्थित हामबाखर जंगल में पर्यावरणवादियों और पुलिस के बीच जंगल को बचाने के लिए आंखमिचौनी शुरू हो गई है.
शांतिपूर्ण विरोध
पर्यावरणवादी काफी समय से हामबाखर जंगल को बचाने के लिए शांतिपूर्ण विरोध कर रहे हैं. पेड़ों को बचाने के लिए कुछ ने पेड़ों पर घर बना लिए हैं और वहीं रह रहे हैं. लेकिन उनके प्रयासों का अंत आ रहा है.
जंगल की बलि
हामबाखर जंगल भूरे कोयले की खदान की सीमा पर बसा है. जंगल के नीचे कोयला है और कोयला निकालने के लिए जंगल की बलि चढ़ेगी. जंगल को बचाने का पर्यावरण रक्षकों का प्रयास विफल साबित हुआ है.
पुलिस कार्रवाई
पुलिस ने जंगल पर कब्जा करने वाले पर्यावरणवादियों को हटाने का काम शुरू कर दिया है. इस इलाके में पर्यावरणवादी भूरे कोयले के खिलाफ लड़ते रहे हैं लेकिन ऊर्जा सुरक्षा के नाम पर ये सबसे बड़ी पुलिस कार्रवाई है.
पेड़ों पर घर
पर्यावरणवादियों ने जंगल की सुरक्षा के लिए हामबाखर जंगल में पेड़ों पर 50 घर बना रखे हैं. पुलिस उन्हें जबरन खाली कर रही है ताकि बिजली कंपनी कोयले की खुदाई के काम को आगे बढ़ा सके. अदालत ने भी इसकी अनुमति दे दी है.
तनाव का माहौल
जर्मनी के आखेन और कोलोन शहर के बीच स्थित इस इलाके में तनाव का माहौल है. प्रदर्शनकारियों को पता नहीं कि क्या होने वाला है और पुलिस को भी नहीं पता कि पर्यावरणवादी विरोध का क्या तरीका अपनाएंगे. लेकिन दोनों ही पक्ष तैयार हैं.
बिजली कंपनी के खिलाफ
पर्यावरणवादी बिजली कंपनी आरडब्ल्यूई का विरोध कर रहे हैं जो मध्य अक्टूबर से अपने ओपन कास्ट माइन का विस्तार करेगी. इसके लिए उसे उस जंगल की कटाई करनी होगी जहां सैकड़ों साल पुराने पेड़ लगे हैं. अब उन पेड़ों को बचाना संभव नहीं.
विरोध का विस्तार
कोयला विरोधी पर्यावरणवादियों ने इलाके से खुद को पुलिस द्वारा हटाए जाने की स्थिति में भारी प्रतिरोध की घोषणा की है. पर्यावरणवादियों ने धमकी दी है कि पुलिस की कार्रवाई के साथ रक्षा के लिए देशव्यापी अभियान शुरू किया जाएगा.
अदालत की भूमिका
हामबाखर जंगल में पेड़ों पर बने घरों को खाली कराए जाने पर अंतिम फैसला अदालत का होगा. पुलिस कार्रवाई शुरू होते ही कुछ पर्यावरणवादियों ने अदालत में राहत की अर्जी दी है. पेड़ों पर बने घरों में रहने वाले पर्यावरणवादी खुद को हटाए जाने का विरोध करेंगे.
पर्यावरण संगठनों का समर्थन
पर्यावरण संगठनों ने इलाके को खाली कराए जाने की आलोचना की है. उनका आरोप है कि बर्लिन में कोयला आयोग कोयले का खनन बंद करने पर सहमति की कोशिश कर रहा है तो सरकार चुपचाप देख रही है कि बिजली कंपनी विवाद को भड़का रही है.