1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सौर ऊर्जा से बदलती जिंदगी

१ फ़रवरी २०११

गोवा को सैलानियों का स्वर्ग कहा जाता है. साल भर देशी-विदेशी सैलानी गोवा के खूबसूरत समुद्र तटों का आनंद उठाते नजर आते हैं. लेकिन शहर की रंगीनियों से दूर इस राज्य के देहाती इलाकों में एक नई क्रांति अंगड़ाई ले रही है.

https://p.dw.com/p/10896
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस क्रांति को संभव बनाया है सौर ऊर्जा ने. कभी बेहद महंगी समझी जाने वाली यह उर्जा तक अब किसानों तक भी पहुंचने लगे हैं. राज्य के कृषि विभाग ने किसानों को यह तकनीक सुलभ कराई है. इसकी सहायता से किसान अपने खेतों में बिजली के तारों की बाड़ लगा कर फसलों को जानवरों से बचाने का अनूठा प्रयोग कर रहे हैं.

महंगी तकनीक

कोटिगा गांव के लक्ष्मण गावोनकर बताते हैं, "सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से पहले भी हम खेतों में गन्ना और धान उगाते थे. लेकिन कभी हमें पूरी फसल नहीं मिलती थी. हमारी 40 फीसदी फसल जानवर खा जाते थे. लेकिन खेतों में बाड़ लगने के बाद जानवरों की ओर से होने वाला नुकसान बंद हो गया है. इससे हमें काफी फायदा हुआ है. हम अपनी तमाम फसलें उगा सकते हैं."

वैसे, यह तकनीक अब भी महंगी है. एक वर्गकिलोमीटर खेत में ऐसी बाड़ लगाने पर अममून दो लाख रुपये का खर्च आता है. लेकिन गोवा में कृषि निदेशालय इस पर पचास फीसदी की छूट दे रहा है. कम्युनिटी फेंसिग स्कीम के तहत पूरे गांव के लोग एक समूह के तौर पर इसके लिए आवेदन करते हैं. इसके लिए उनको महज दस हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं. लेकिन इससे फसल जानवरों से सुरक्षित रहती है. लक्ष्मण बताते हैं, "हमने पांच-छह महीने पहले सौर ऊर्जा वाली बाड़ लगाई थी. तबसे बंदर या लोमड़ियां खेतों में नहीं घुस पाती हैं. अब हम रातों को घर में चैन की नींद सो सकते हैं. पहले हमें जानवरों के खेत में घुसने की चिंता रहती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है."

सुंदरबन में रोशनी

गोवा से दूर देश के पूर्वी छोर पर बंगाल की खाड़ी से सटे सुंदरबन में भी सौर ऊर्जा से रोशनी हो रही है. दुनिया में रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा घर कहे जाने वाले इस जंगल में इंसानों की हालत जानवरों से भी बदतर है. सुदंरबन की ज्यादातर बस्तियों और द्वीपों पर बिजली नहीं पहुंच सकी है. इलाके का बीहड़ होना और आवाजाही की सुविधा का अभाव इसकी प्रमुख वजह है. लेकिन अब पश्चिम बंगाल सौर ऊर्जा विकास निगम की पहल पर सागरद्वीप में पहला सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित होने के बाद इलाके के लोगों का जीवन काफी हद तक बदल गया है. अब उनको लालटेन की टिमटिमाती रोशनी में रात का अंधेरा काट खाने नहीं दौड़ता. जिनके लिए कभी पारंपरिक बिजली भी सपना थी, उनके घर आज सौर ऊर्जा से जगमगा रहे हैं.

मौसमी द्वीप के बलियारा गांव के दीपक कुमार सील का परिवार अब तक मिट्टी के तेल से जलने वाले दीए की रोशनी पर ही निर्भर था. लेकिन अब सौर ऊर्जा से उनलोगों का जीवन ही बदल गया है. वह कहते हैं, "पहले हम घर में मिट्टी के तेल के दीए और लालटेन जलाते थे. मिट्टी का तेल खरीदने के लिए हमें महीने में डेढ़ से दो सौ रुपए खर्च करने पड़ते थे. लेकिन अब सौर ऊर्जा आने के बाद एक कनेक्शन के लिए पांच सौ रुपए देने होते हैं. इसके लिए महीने में सिर्फ 75 रुपए खर्च होते हैं. हमें रोजाना पांच से छह घंटे बिजली मिलती है. अब हम टीवी भी देख सकते हैं. पहले यह संभव नहीं था. सौर ऊर्जा से निश्चित तौर पर हमें काफी फायदा हुआ है."

फैलता दायरा

बलियारा गांव के चार हजार में से डेढ़ हजार लोग फिलहाल सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह तादाद लगातार बढ़ती जा रही है.

पश्चिम बंगाल सौर ऊर्जा विकास निगम के निदेशक एस.पी. गनचौधरी कहते हैं कि भौगोलिक प्रतिकूलता की वजह से सुंदरबन डेल्टा में रहने वाले लगभग 40 लाख लोगों को पारंपरिक बिजली मुहैया करना संभव नहीं था. फिलहाल सुंदरबन इलाके में सौर ऊर्जा की लगभग 20 परियोजनाओं के जरिए लगभग एक लाख लोगों को बिजली मुहैया कराई जा रही है. गनचौधरी के मुताबिक, "हम कई प्रस्तावों पर विचार कर रहे हैं. सबसे पहले हमने सागर द्वीप में एक ऐसी परियोजना शुरू की थी. बाद में दूसरे द्वीपों में भी ऐसी परियोजनाएं शुरू की गई हैं. फिलहाल ऐसी 18 से 20 परियोजनाएं काम कर रही हैं और उनसे सुंदरबन के एक लाख लोगों को बिजली मिल रही है."

इलाके के ज्यादातर द्वीपों में जाने के लिए अब भी नावें ही एकमात्र साधन है. लेकिन अब सौर ऊर्जा से वहां के लोगों को सहूलियत हो गई है. यह ऊर्जा न सिर्फ सस्ती है बल्कि यह प्रदूषणमुक्त भी है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ए कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें