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सोने की चिड़िया को सिर्फ चांदी-कांसा

१३ अगस्त २०१२

एक अरब से ज्यादा की आबादी. जीडीपी के लिहाज से दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था. लेकिन जब बात ओलंपिक मेडल की हो तो पूरी तरह फिसड्डी. पदक तालिका में भारत का स्थान नीचे से देखना पड़ता है.

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तस्वीर: AP

इस बार लंदन ओलंपिक में भी यही हाल रहा. 55वें स्थान पर रहा भारत अब इज्जत बचाने के लिए बहाने तलाश रहा है.

भारत के खेल मंत्री अजय माकन कहते हैं, "हमारी किस्मत इस बार अच्छी नहीं रही. हमारे कई खिलाड़ी टॉप 10 में पहुंचे और कई तो चौथे और पांचवें स्थान पर भी पहुंचे. इस बार हम लोगों ने सबसे ज्यादा मेडल जीते. ये गर्व की बात है. खिलाड़ियों के लिए अच्छे प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है. 2020 तक भारत को कम से कम 25 मेडल जीतना चाहिए."

भारत ने फिलहाल हार की वजह तलाशने के बजाय भविष्य में जीत के सपने देखने का फैसला किया है. ओलंपिक में भारत वेनेजुएला और मंगोलिया के बीच 55वें स्थान पर रहा.

Sushil Kumar
तस्वीर: dapd

फिसड्डी इतिहास

ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन हमेशा से कमजोर रहा है. आजादी के बाद से ही बात करें तो 65 सालों में सिर्फ एक खिलाड़ी ही स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहा है, भारत के बाकी स्वर्ण हॉकी के टीम इवेंट में आए हैं. 2008 के बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण जीता. इस बार पदकों की संख्या बढ़ कर छह हुई लेकिन सोने का पदक एक भी नहीं मिला. कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के सपने देखता रह गया.

दो रजत और चार कांस्य के साथ दस्ता भारत लौट गया. देश की मीडिया में कहीं आलोचना है तो कहीं संतोष. समाचार चैनल एनडीटीवी के मुताबिक बीजिंग के मुकाबले दोगुने पदक जीतने से देश में खशी का माहौल हो तो समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक ओलंपिक-2012 में भारत की हार 'खराब प्रदर्शन की कहानी' है.

Boxerin Mary Kom
तस्वीर: AP

कहां हो गई चूक?

जिनसे पदक की उम्मीद थी वो आखिरी वक्त में चूक गए. सबसे ज्यादा निराश अभिनव बिंद्रा ने किया. बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाले अभिनव बिद्रा से इस बार भी स्वर्ण की ही उम्मीद थी लेकिन वह क्वालीफाई ही नहीं कर सके. इसी तरह हॉकी में भी पदक की उम्मीद थी लेकिन हॉकी टीम बुरी तरह हारकर बाहर हुई. बीजिंग में पदक जीतने वाले बॉक्सर विजेंदर ने भी निराश किया. शानदार इनाम, नौकरियों का ऑफर और बड़े उद्योगपतियों द्वारा दिलवाई गई सुविधाएं भी खिला़ड़ियों का मनोबल नहीं बढ़ा सकी. जिस देश में क्रिकेट को धर्म का दर्जा हासिल है वहां ओलंपिक में खिलाडि़यों का निराशाजनक प्रदर्शन कई संभावनाओं पर उल्टा असर डाल सकता है.

भविष्य पर निगाहें

खेल में अक्सर कहा जाता है कि हार जीत तो लगी रहती है. लेकिन भारत के नसीब में हार ही हार लगी है. ये बात अलग है खिलाडियों का मनोबल ऊंचा बना हुआ है. इस बार कुश्ती का रजत पदक जीतने वाले सुशील कुमार 2016 के ओलंपिक में सोना जीतना चाहते हैं. वह कहते हैं, "भारत में जिनके साथ मैं कुश्ती का अभ्यास करता हूं वो अच्छे हैं. इस बार रजत उन्हीं की बदौलत संभव हुआ है. अगली बार ये और बेहतर होगा." सुशील कुमार के दावे पर यकीन किया जा सकता है. वो भारत के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जो लगातार दो ओलंपिक में पदक जीत चुके हैं. क्या पता रिडो दे जेनेरियो में उनकी उम्मीद सच साबित हो जाए!

Schnellfeuerpistole Vijay Kumar London 2012
तस्वीर: Reuters

लंदन ओलंपिक में पदक जीतने वाल नारंग भारत के प्रदर्शन से संतुष्ट तो नहीं लेकिन उत्साहित जरूर हैं. खास तौर से वह सुशील कुमार की तारीफ करते नहीं अघाते, "इस बार हम एक कदम आगे गए हैं. भारत के पहलवानों ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया. सुशील कुमार के प्रदर्शन ने नई पीढ़ी के पहलवानों को प्रेरित किया है."

वीडी/एजेए (एएफपी)

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