सोना की खदान जैसा है मुंबई का गटर
६ फ़रवरी २०१८मायानगरी, सपनों की नगरी मुंबई के बारे में ऐसे ही कसीदे कहे जाते हैं. कहा जाता है कि यह शहर सपने पूरा करता है और इसी वजह से हर साल लाखों लोग अपना घरबार छोड़कर काम की तलाश में यहां आते हैं. इसी शहर के बीचोंबीच बसी है देश की सबसे बड़ी सोना मंडी, झावेरी बाजार. दुकानों पर टंगी चूड़िया, हार, माला, बालियों की चमचमाहट से ये बाजार दिन रात खूब चमकता है. इस बाजार में तकरीबन ऐसी सात हजार दुकानें हैं जो सोने-चांदी का काम करती हैं. लेकिन हर सुबह 4-5 बजे जब यहां सन्नाटा पसरा होता है कुछ लोग अपनी किस्मत आजमाने आते हैं. दरअसल इनका काम है बाजार की खुली नालियों को साफ करना. सफाई इसलिए नहीं कि वह कोई सफाई कर्मचारी हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वे सोना तलाश रहे हैं. सोने की इस तलाश में लगे इन लोगों को घमेलेवाला कहा जाता है. घमेलावाला इसलिए क्योंकि यह अपने साथ कचरे को इकट्ठा कर उसे एक घमेले में इकट्ठा करते हैं और फिर सोना बीनने का काम शुरू करते हैं.
इन्हीं में से एक है 19 साल का आरिफ. आरिफ जल्दी-जल्दी नाली से धूल-धकड़ कचड़े का एक बड़ा हिस्सा निकालता है और उसे अपने घमेले में रख लेता है. उसे जो भी धूल मिलती है वह उसे इकट्ठा कर रगड़ता है. बकौल आरिफ, "मेरे परिवार का हर लड़का "घमेलावाला" ही बनता है. क्योंकि ये काम उसके परिवार में सालों किया जा रहा है और अब एक परंपरा बन गया है." उसने बताया कि उसको जो सोना मिलता है उस हिसाब से उसे पैसे मिल जाते हैं. कभी यह कमाई एक हजार तक रह सकती है तो कभी लाखों तक पहुंच जाती है.
दरअसल झावेरी बाजार कई ऐसी फैक्ट्रियों और दुकानों का इलाका है जहां सोने को काट कर तराशा जाता है. ऐसे में कुछ सोने के कण बेपरवाही से बाजार की गलियों में गिर जाते हैं और फिर बहकर नालियों में चले जाते हैं. बाजार में चाय बेचने वाला अहमद बताता है कि वह हर सुबह ये घमेलेवाले यहां गलियों में आकर गटर का ढक्कन उठाते हैं और इन दुकानों के धूल और कचरे को बीनते हैं. आरिफ ये काम पिछले पांच साल से कर रहा है. एक बार जब उसका घमेला भर जाता है तो वह पास स्थित एक कोने में जाकर इसकी सफाई शुरू करता है. वह कचरे को पानी के साथ धोता है अगर उसमें सोना होता है तो वह घमेले की सतह पर रह जाता है. जैसे ही आरिफ को कोई चमकीली चीज नजर आती है उसका चेहरा खुशी से चमक उठता है. इसके बाद वह इसमें पारा मिलाता है ताकि सोना पारे में चिपक जाए. फिर वह मिश्रण को भट्टी पर चढ़ाता है और नाइट्रिक एसिड मिलाता है, जिसके बाद पारा भाप में बदल जाता है और सोना पीछे छूट जाता है.
आरिफ कहता है कि उसे रोजाना करीब पांच ग्राम सोना मिल जाता है. सोने की शुद्धता और उसकी उस दिन की कीमत मुताबिक उसे पैसा मिल जाता है. सोना मिलने के बाद वह झावेरी बाजार में राम कुलकर्णी की दुकान पर जाता है जो पुराना सोना खरीदता है. साथ ही इन घमेलेवालों से भी सोना खरीदकर दुकानदारों को वापस बेच देता है.
कुलकर्णी कहते हैं, "हमारे बीच अच्छा संबंध है. मैं सोने की मात्रा और इसकी शुद्धता की जांच कर तय पैसा अदा कर देता हूं." उन्होंने बताया, "कुछ दुकानें इस सोने को "गटर का सोना" कहती हैं लेकिन असलियत में वह है तो खजाना ही."
आमतौर पर ये घमेलेवाले अकेले ही काम करते हैं लेकिन सोना ढ़ूंढना इतना भी आसान नहीं है. एक अन्य घमेलेवाला संजय कहता है कि यह काम किस्मत का है. किस्मत अच्छी तो पैसा ही पैसा. उसने बताया कि ऐसे कई दिन भी रहे हैं जब धूल के अलावा कुछ नहीं मिलता. संजय के मुताबिक, "बारिश के सीजन में सोना ढूंढना बड़ा मुश्किल भरा काम हो जाता है क्योंकि धूल-धक्कड़ पानी से धुल जाती है." कुछ घमेलेवाले इस काम के अलावा और भी काम करते हैं. कुछ कपड़े बेचते हैं तो कुछ घरों में माली और खाना भी बनाते हैं.
लेकिन मुंबई नगर निगम के सफाई कर्मचारी इन घमेलेवालों को बिल्कुल पसंद नहीं करते. सफाई कर्मचारी कहते हैं कि ये घमेलेवाले सिर्फ धूल और दुकानों का मोटा कचरा साफ करते हैं. लेकिन कागज, प्लास्टिक जैसा कचरा ऐसे ही सड़कों पर डाल कर चले जाते हैं. हालांकि ये घमेलेवाले पुलिस से डरते हैं और इन्हें देखकर तुरंत छुप जाते हैं. एक पुलिस अधिकारी ने बताया, "ये काम कानूनी नहीं है लेकिन इनकी वजह से सड़कें साफ रहती हैं इसलिए हम इन्हें नहीं रोकते. ये लोग कितना ही सोना असल में पा लेते होंगे?
हालांकि पिछले कुछ सालों में सुनार भी अब इस सोने के कचरे से वाकिफ हो गए हैं और उन्होंने खुद भी इसे इकट्ठा करना और बेचना शुरू कर दिया है. वहीं कुछ कारोबारी अपनी दुकानों की साफ-सफाई को लेकर अब अत्यंत सावधानी बरतने लगे हैं. लेकिन अब भी कुछ घमेलेवाले मानते हैं कि इतना सोना निकल ही आता है कि उनकी जेबें भर जाएं.
एए/ओएसजे (रॉयटर्स)