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बंद कश्मीर में पेड़ों पर ही लटके हैं सेब

१९ सितम्बर २०१९

कश्मीर के बागान सेब से लदे हुए हैं लेकिन लोग उन्हें तोड़ नहीं रहे. बाजार में सन्नाटा है, सेब तोड़ भी लिये तो रखेंगे कहां. फल अगर समय पर नहीं टूटे तो सड़ कर नीचे गिर जाएंगे.

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Indien Kaschmir Obsthandel in Sopore
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

उत्तरी कश्मीर के सोपोर का बाजार आमतौर पर लोगों, ट्रकों और सेबों से भरा रहता है. यह वक्त सेब की फसल तैयार होने का है लेकिन इस साल यहां सन्नाटा पसरा है. लोग घरों में दुबके हैं, ट्रक गराजों में और पेड़ों पर लगे सेब पक कर नीचे गिर रहे हैं. दुनिया में सेब पैदा करने वाले सबसे बड़े इलाकों में एक कश्मीर भी है. बीते महीने केंद्र सरकार ने इस राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया. सेब बगान के मालिक और सेव व्यापारियों का कहना है कि कश्मीर के बाजार भारत और विदेश के खरीदारों से कट गए हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार के इस कदम के समर्थन में कहा था कि इससे जम्मू कश्मीर देश के बाकी हिस्सों से जुड़ जाएगा. हालांकि फिलहाल सरकार के कदम से उपजी अशांति ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है. इससे स्थानीय लोगों में नाराजगी है और आशंका जताई जा रही है इससे कश्मीर में बीते तीन दशकों से जारी हिंसा को और बढ़ावा मिलेगा.

Indien Kaschmir Obsthandel in Sopore
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

सोपोर को उसके हरे भरे बागों, बड़े घरों और संपन्नता के कारण स्थानीय लोग "लिटिल लंदन" भी कहते हैं लेकिन इन दिनों यहां वीरानगी छाई है. बागों और घरों के गेट बंद पड़े हैं, लोग बाहर निकलने से डर रहे हैं और कारोबार तो पूरी तरह से ठप है.

बीते हफ्ते सुबह की नमाज के लिए मस्जिद की ओर जाते एक व्यापारी ने कहा, "हर कोई डरा हुआ है. कोई नहीं आएगा."

सेब कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए जीवन का आधार है, इससे कश्मीर के 35 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं यानी करीब आधी आबादी.

बीते महीने की 5 तारीख को अचानक राज्य का विशेषाधिकार खत्म कर उसे दो हिस्से में बांटने का एलान कर दिया गया. इसके बाद लोगों की गतिविधियों पर तत्काल रोक लग गई और मोबाइल, टेलिफोन और इंटरनेट का संपर्क भी खत्म हो गया. सरकार का कहना है कि उसकी पहली प्राथमिकता कश्मीर में हिंसा को रोकना है. 1989 से चली आ रही हिंसा में अब तक 40 हजार लोगों की जान जा चुकी है. सरकार का यह भी कहना है कि कश्मीर में जारी पाबंदियों को धीरे धीरे हटा लिया जाएगा. टेलिफोन कनेक्शन बहाल किए जा चुके हैं.

Indien Kaschmir Obsthandel in Sopore
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

सरकार ने राज्य में तेजी से आर्थिक विकास का वादा किया है और इसी साल निवेशकों का सम्मेलन बुलाने की योजना भी बनाई है. इससे भारत की बड़ी कंपनियां राज्य में निवेश के लिए आएंगी जिससे नौकरियां पैदा होंगी और युवाओं को आतंकवाद की ओर जाने से रोका जा सकेगा.

हालांकि यह भविष्य की बात है फिलहाल तो सुरक्षा घेरे में फंसे किसान और फल व्यापारी सेबों को बाजार और भारत के दूसरे हिस्सों तक पहुंचाना चाहते हैं. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि आतंकवादी उन्हें व्यापार के कामों से दूर रहने की धमकी दे रहे हैं.

सोपोर और आसपास के पूरे इलाके में सेब के पेड़ पर सेव लटक रहे हैं और खराब हो कर नीचे गिर रहे हैं. एक स्थानीय व्यापारी हाजी ने कहा, "हम तो दोनों तरफ से फंसे हुए हैं, ना इधर जा सकते हैं ना उधर."

व्यापारियों का कहना है कि ना सिर्फ फल उद्योग बल्कि कश्मीर के दो और अहम सेक्टर पर्यटन और दस्तकारी पर भी बड़ी मार पड़ी है.

गर्मियों की राजधानी श्रीनगर में हाउस बोट चलाने वाले शमीम अहमद कहते हैं कि इस साल सैलानियों के आने का मौसम पूरी तरह से बेकार हो गया. शमीम ने कहा, "अगस्त सबसे बढ़िया मौसम था और हमारे पास अक्टूबर तक की बुकिंग थी. इसे वापस आने में समय लगेगा और हमें नहीं पता कि आगे क्या होगा."

Indien Kaschmir Obsthandel in Sopore
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

व्यापार जगत से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि इंटरनेट और मोबाइल पर रोक ने उनके काम पर बहुत बुरा असर डाला है. इसकी वजह से लोग ना तो टैक्स जमा कर पा रहे हैं ना ही बैंक से लेनदेन.

कुछ व्यापारी उन सैकड़ों लोगों में भी शामिल हैं जिन्हें नेताओं के साथ हिरासत में लिया गया है. स्थानीय नेता हसीब दराबु राज्य के पूर्व वित्त मंत्री हैं वो कहते हैं कि बाहर के लोग कश्मीरी लोगों के साथ व्यापार करने से बच रहे हैं. उन्होंने कहा, "कुछ व्यापारियों के घर छापा पड़ा है और बहुत सारे लोग हिरासत में हैं, ऐसे में देश के बाकी हिस्से से उनके साथ कौन व्यापार करना चाहेगा. अगर किसी ने किया तो उसकी भी जांच हो सकती है या फिर उनके खातों की पड़ताल की जा सकती है."

बीते कुछ सालों से कश्मीर में लगातार अशांति और असुरक्षा का आलम है. 2014 में यहां बाढ़ आ गई थी जिसमें भारी तबाही हुई. इसके बाद के दो साल में हिंसा और अशांति का बोलबाला रहा. इस साल अप्रैल और जुलाई में सैलानियों की आमदरफ्त बढ़ी थी लेकिन सरकार के आंकड़े दिखाते हैं कि अगस्त में यह तेजी से नीचे गयी. बीते महीने केवल 10,130 सैलानी यहां आए जबकि जुलाई में यह संख्या 1,50,000 और जून में 1,60,000 थी. अब सैलानियों के लिए अगले साल अप्रैल तक इंतजार करना होगा.

श्रीनगर के जूनीमार मोहल्ले में अब्दुल हमीद शाह अपने घर में खिड़की के पास बैठे शाल पर कढ़ाई कर रहे हैं. एक शाल बनाने में कम से कम तीन महीने लगते हैं और कई बार एक साल भी. उन्हें हर शाल के लिए व्यापारी से 35,000 रुपये मिलते हैं. यह रकम 10 हजार की किश्तों में आती है. इस साल अगस्त से उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है. शाह बताते हैं कि उनका व्यापारी उनसे कह रहा है कि उसके पास ना तो काम है ना पैसा.

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

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