सेना से सदन पहुंची गाबार्ड की राष्ट्रपति पद पर नजर
१ फ़रवरी २०१९साल 2012, सितंबर का महीना. अमेरिका के नार्थ कैरोलाइना राज्य के शारलट शहर में चल रहे डेमोक्रैटिक नेशनल कन्वेंशन में नीली जैकेट, गले में फूलों की माला, फौजी जैसी फिटनेस और गर्मजोश मुस्कान के साथ हजारों की भीड़ और पूरी दुनिया के टीवी कैमरों के सामने उतरी थीं हवाई राज्य की तुलसी गाबार्ड. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उनके पहले शब्द थे, अलोहा. हवाई में ये शब्द नमस्ते और गुडबाय दोनों ही की तरह इस्तेमाल होता है लेकिन इसका अर्थ प्रेम, शांति और करूणा का मिलाजुला स्वरूप है. वो ओबामा युग था और उस दिन, उस मंच पर अमेरिका को वैसा ही उम्मीदों से भरा एक चेहरा नजर आया था.
डेमोक्रैटिक पार्टी ने उन्हें "उभरता सितारा” का नाम दिया, डेमोक्रैट रूझान वाले टीवी नेटवर्क्स ने उन्हें लंबी रेस का खिलाड़ी करार दिया और राष्ट्रपति ओबामा ने कांग्रेस की प्रतिनिधि सभा के लिए उनकी उम्मीदवारी को समर्थन देने का एलान किया. सात साल बाद, वही तुलसी गाबार्ड, उसी डेमोक्रैटिक पार्टी से अमेरिका की सबसे बड़ी कुर्सी यानि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की भीड़ भरी रेस में उतरी हैं. उनके नाम के साथ "प्रथम या पहली” शब्द कई बार जुड़ा है—अमेरिकी कांग्रेस की पहली हिंदू सदस्य, भगवद्गीता पर हाथ रखकर अपने पद की शपथ लेनेवाली पहली प्रतिनिधि, उस वक्त की सबसे कम उम्र की सांसद, अमेरिकन समोआ से चुनाव जीत कर कांग्रेस पहुंचनेवाली पहली महिला, और युद्ध में भाग ले चुकी महिलाओं में से कांग्रेस तक पहुंचनेवाली दो महिलाओं में से एक. उनकी इस उम्मीदवारी की रेस के साथ एक "प्रथम” और जुड़ गया है यानि वो इस रेस में उतरने वाली पहली हिंदू-अमेरिकी हैं. लेकिन अमेरिकी मीडिया पंडितों की मानें तो इस "प्रथम” पर बहुत जल्द ही "पूर्ण-विराम” लगने के आसार दिख रहे हैं.
कन्नी काटते पुराने दोस्त
जिस तुलसी गाबार्ड को डेमौक्रैटिक पार्टी के मसनद-नशीनों ने हाथों-हाथ उठाया था, आज उसी तुलसी गाबार्ड से वो कन्नी काट रहे हैं. पिछले सालों में उन्होंने पार्टी की विदेश नीति को चुनौती दी है, 2017 में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद से मुलाक़ात करके पार्टी को सकते में डाल दिया, इस्लाम और आतंकवाद पर सरेआम ओबामा की नीतियों की आलोचना की है, कांग्रेस में आने से पहले समलैंगिकता और गर्भपात जैसे संवेदनशील मामलों पर दिए गए उनके बयानों के वीडियो सामने आए हैं (उन्होंने उन बयानों के लिए माफ़ी मांग ली है), और पार्टी के प्रगतिवादी धड़े ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी मुलाकातों पर सवाल उठाते हुए उन्हें हिंदू राष्ट्रवाद से जोड़ने की कोशिश की है. एक पत्रिका ने उनके पहले के चुनाव अभियानों में चंदा देनेवालों की सूची प्रकाशित कर कहा कि इनमें से कई नाम हैं जो हिंदू हैं. बाद में पत्रिका ने ये कहते हुए माफी मांगी कि इसमें कुछ गलत नहीं है.
अमेरिकन समोआ में जन्मीं तुलसी गाबार्ड के माता-पिता कैथोलिक इसाई थे और बाद में वो हरे कृष्णा मूवमेंट की एक शाखा सायंस ऑफ आइडेंटिटी फाउंडेशन के सदस्य बने. तुलसी गाबार्ड का कहना है कि इसी फाउंडेशन के गुरू क्रिस बटलर ने उनकी हिंदू अस्मिता को आकार दिया. उन्होंने अमेरिका में अपनी हिंदू पहचान को सार्वजनिक तौर पर प्रकट तो किया ही है बल्कि उन्होंने 2013 में दिवाली पर अमेरिकी डाक टिकट जारी करवाने की मुहिम शुरू की जो 2016 में स्वीकृत हुई. अमेरिका में बसे भारतीय हिंदुओं ने उन्हें सराहा है, प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की पहली अमेरिका यात्रा के दौरान मैडिसन स्केवयर गार्डन में हुए भव्य जलसे में वो विशेष अतिथि थीं.
गाबार्ड के धर्म पर हमला
देखा जाए तो उस समय राष्ट्रपति ओबामा समेत पूरी डेमोक्रैटिक पार्टी मोदी सरकार को रिझाने में जुटी हुई थी और कई विश्लेषकों का मानना है कि गाबार्ड के धर्म को उनकी राष्ट्रवादी नीतियों एवं दूसरे विवादास्पद बयानों से जोड़ना सही नहीं है. साल 2016 में वो सुर्खियों में आईँ जब उन्होंने प्राइमरी चुनावों के दौरान हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ खड़े प्रगतिवादी नेता बर्नी सैंडर्स को खुलकर समर्थन दिया और अपनी ही पार्टी की ये कहते हुए आलोचना भी की कि उन्होंने दोनों ही नेताओं के बीच होनेवाली डिबेट्स की संख्या को जानबूझकर कम कर दिया जिससे क्लिंटन को फायदा हो. पार्टी के प्रगतिवादी धड़े ने तब उनको सराहा था लेकिन अब उनमें से कुछ ही हैं जो गाबार्ड के साथ हैं. और यदि बर्नी सैंडर्स भी उम्मीदवारी की रेस में कूद पड़े तो शायद वो भी न रहें.
गाबार्ड ने अपनी इस विवादों में घिरी छवि को साफ करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा है कि एक तबका है जिसे उनके हिंदू होने पर एतराज है और ये लोग अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ हैं. उन्होंने मध्य-पूर्व में अपने फौजी अनुभव का हवाला देते हुए कहा है कि युद्ध के दौरान किसी ने उनसे ये नहीं पूछा कि वो हिंदू हैं या इसाई या मुसलमान और आज जो ऐसा कर रहे हैं वो अमेरिकी संविधान को नीचा दिखा रहे हैं.
अमेरिका में 2020 में होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव का ये बिल्कुल शुरूआती दौर है. लेकिन अमेरिकी मीडिया में उनकी उम्मीदवारी के एलान के फौरन बाद ही जिस तरह से उनपर हमले हुए हैं उनसे उबरना किसी भी उम्मीदवार के लिए आसान नहीं होगा. ये अलग बात है कि तुलसी गाबार्ड का इतिहास रहा है कि वो किसी भी लड़ाई से पीछे नहीं हटी हैं. इस बार वो कहां तक जाएंगी ये देखने वाली बात होगी.