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समाज

सेना प्रमुख के बयान से गहराता सियासी विवाद

प्रभाकर मणि तिवारी
२२ फ़रवरी २०१८

भारत के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के एक बयान से पूर्वोत्तर राज्य असम में सियासी पारा गरमाने लगा है. बदरुद्दीन अजमल की अगुवाई वाली राजनीतिक पार्टी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से इसकी शिकायत की है.

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Indien Armee Bipin Rawat
तस्वीर: Imago/ZUMA Press

सेना ने हालांकि सेना प्रमुख के असम संबंधी बयान पर सफाई जरूर दी है. लेकिन किसी सेनाध्यक्ष के अपनी किस्म के इस पहले बयान के बाद खासकर अल्पसंख्यक राजनीतिक दल आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) जनरल रावत के खिलाफ तलवारें भांजने लगा है. बदरुद्दीन अजमल की अगुवाई वाली इस राजनीतिक पार्टी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी इसकी शिकायत की है. देश के विभाजन के बाद से ही असम में पड़ोसी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ एक गंभीर राजनीतिक व सामाजिक समस्या रही है. इस मुद्दे पर छह साल लंबा असम आंदोलन हो चुका है और अब अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) को अपडेट करने की प्रक्रिया चल रही है.

सेना प्रमुख का बयान

सेना प्रमुख जनरल रावत ने बुधवार को अपने बयान में पूर्वोत्तर में योजनाबद्ध तरीके से पहुंचने वाले शरणार्थियों को भारत के पड़ोसियों की चाल बताया था. उन्होंने किसी को नाम तो नहीं लिया था. लेकिन बयान से साफ है कि उनका इशारा चीन व पाकिस्तान की ओर था. जनरल रावत ने कहा कि भारी तादाद में आने वाले शरणार्थियों की वजह से इलाके में आबादी का संतुलन बदल रहा है. पूर्वोत्तर में सीमा सुरक्षा से संबंधित एक सेमिनार में सेना प्रमुख का कहना था कि जिस तरह जम्मू-कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए आतंकवादियों को भेजा जाता है उसी तरह पूर्वोत्तर को अशांत करने के लिए सोची-समझी योजना के तहत बांग्लादेशी शरणार्थियों को भेजा जा रहा है. उन्होंने इसके लिए वोट बैंक की राजनीति को जिम्मेदार ठहराते हुए इस सिलसिले में अल्पसंख्यक संगठन एआईयूडीएफ का नाम लिया था. उन्होंने असम में जनसंघ और एआईयूडीएफ के विकास का जिक्र करते हुए कहा कि यह राजनीतिक संगठन बीजेपी के मुकाबले तेजी से फैल रहा है. 

दिल्ली में आयोजित सेमिनार में सेना प्रमुख ने कहा, "तमाम कोशिशों के बावजूद भारत को परेशान करने में नाकाम रहने पर हमारे पड़ोसियों ने अब छद्म युद्ध का तरीका चुना है. इसके तहत देश के पश्चिमी पड़ोसी ने उत्तरी पड़ोसी की सहायता से बांग्लादेश से शरणार्थियों की आवक को बढ़ावा देने की योजना बनाई है." जनरल रावत ने इलाके की आबादी को मिला कर गड़बड़ी फैलाने वालों की शिनाख्त का सुझाव भी दिया है. रावत का कहना है कि इलाके की आबादी में आने वाले बदलावों को अब पहले की हालत में ले जाना संभव नहीं है. पहले असम में पांच जिले मुस्लिम-बहुल थे. लेकिन अब उनकी तादाद बढ़ कर नौ हो चुकी है. उनका कहना था कि बांग्लादेश से शरणार्थियों की आवक को रोकना मुश्किल है.

विवाद

जनरल की ओर से एआईयूडीएफ का नाम लेने की वजह से असम की राजनीति उबाल आ गया है. वर्ष 2005 में अरबपति इत्र कारोबारी बदरुद्दीन अजमल की ओर से गठित एआईयूडीएफ के पास फिलहाल तीन सांसद और असम विधानसभा में 13 विधायक हैं. 

अजमल ने सेना प्रमुख के बयान को राजनीतिक करार देते हुए राष्ट्रपति से इसकी शिकायत की है. सेना ने हालांकि इस मुद्दे पर अपनी सफाई में जनरल रावत को बयान गैर-राजनीतिक बताया है. लेकिन अजमल सवाल करते हैं, "अगर सेना प्रमुख का बयान राजनीतिक नहीं है तो उन्होंने अपने बयान में एक खास राजनीतिक पार्टी का नाम क्यों लिया है? इस पार्टी के जनप्रतिनिधियों को आम लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से  चुना है." उनकी दलील है कि एआईयूडीएफ और आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दल बड़े राजनीतिक दलों के कुशासन के चलते पनपे हैं. अजमल ने सवाल किया है कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी तेजी से आगे बढ़ रही है तो इसमें सेना प्रमुख को क्या दिक्कत है?

सेना की सफाई

सेनाध्यक्ष के बयान पर बढ़ते विवाद के बीच सेना की ओर से बृहस्पतिवार को जारी बयान में कहा गया है कि जनरल रावत ने इलाके में आबादी के मिश्रण और विकास की जरूरत पर जोर दिया था. उनका बयान राजनीतिक या धार्मिक नहीं है. सेना के मुताबिक, जनरल ने कहा था कि बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को अब अलग-थलग करना संभव नहीं है. इसलिए विकास के जरिए उनको साथ लेकर ही आगे बढ़ना होगा. लेकिन अजमल इससे संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने सेना प्रमुख पर राजनीति करने और बीजेपी के पक्ष में बयान देने का भी आरोप लगाया है.

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल शंकर राय चौधरी ने जनरल रावत के बयान का समर्थन किया है. लेकिन अजमल के अलावा एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने उनके बयान की आलोचना की है. ओवैसी ने कहा है कि सेना प्रमुख को राजनीतिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है. कौन सी पार्टी कितनी तेजी से बढ़ रही है, इससे जनरल रावत को कोई मतलब नहीं होना चाहिए. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआीसी अपडेट होने की वजह से राज्य में रहने वाले लाखों अल्पसंख्यकों पर पहले से ही बांग्लादेश खदेड़े जाने की तलवार लटक रही है. ऐसे में सेना प्रमुख के बयान से सांप्रदायिक तनाव के और बढ़ने का अंदेशा है. असम के बाकी राजनीतिक दलों ने अब तक इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है. लेकिन एआईयूडीएफ के रवैए से लगता है कि सेना प्रमुख   के बयान से उपजा सियासी विवाद जल्दी ठंडा नहीं पड़ेगा.