सेना की संगीनों के साए में पाकिस्तान का चुनाव
२० जुलाई २०१८25 जुलाई को होने वाले पाकिस्तान के आम चुनाव में क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी के बीच मुख्य मुकाबला है. नवाज शरीफ ने सेना पर पर्दे के पीछे रह कर इमरान खान की मदद करने का आरोप लगाया है हालांकि सेना इससे इनकार कर रही है.
चुनाव के दौरान सुरक्षा के लिए सेना के 371,000 जवान पूरे देश में बूथों और दूसरी जगहों पर तैनात किए जा रहे हैं. 2013 के चुनाव की तुलना में सुरक्षा बलों की तादाद करीब तीन गुना ज्यादा है. इसी महीने एक नोटिस जारी कर चुनाव आयोग ने सैनिकों को "मजिस्ट्रेट" की ताकत दे दी है. ऐसे में, फौजी मौके पर ही सुनवाई कर किसी को चुनाव के नियम तोड़ने के आरोप में सजा दे सकते हैं. लोगों को "भ्रष्टाचार" का दोषी पाए जाने पर छह महीने के लिए जेल की सजा दी जा सकती है.
कुछ राजनीतिक दलों ने इस कदम का विरोध किया है. उनका कहना है कि चुनाव में सेना की पारंपरिक भूमिक केवल सुरक्षा की जिम्मेदारी तक ही है. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सांसद फरहतुल्लाह बाबर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "यह पहली बार हो रहा है. प्रशासन, समाज और राजनीति का पहले से खतरनाक रूप से सैन्यीकरण किया जा चुका है."
पाकिस्तान की सेना देश का शासन कई बार अपने हाथों में ले चुकी है और 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद से अब तक आधे से ज्यादा वक्त सेना का ही शासन रहा है. हालांकि इसी महीने एक प्रेस कांफ्रेंस में सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने कहा कि सेना निष्पक्ष रहेगी. उन्होंने कहा, "पाकिस्तान की सेना की भूमिका चुनाव आयोग के उन कामों में सहयोग देने की है जिसके लिए हमें कहा जाएगा."
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने चुनाव से पहले सेना की ताकत बढ़ाए जाने पर चिंता जताई है. आयोग की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "इस तरह के कदम अभूतपूर्व हैं, और एक ऐसी संस्था के हाथों में खतरनाक रूप से सूक्ष्म स्तर पर प्रबंधन सौंपते हैं जिसे इस तरह के आम जनादेश में शामिल नहीं किया जाना चाहिए"
पेशे से वकील हैदर इम्तियाज का कहना है कि इस तरह का कदम परेशनान करने वाला है क्योंकि यह सेना को न्यायिक पदवी दे देता है. उन्होंने यह भी कहा, "यह संविधान की भावना का उल्लंघन है"
दूसरी तरफ इमरान खान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ ने इस आदेश का स्वागत किया है.
एनआर/एके (रॉयटर्स)