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सेक्स और फेसबुक में क्या है समानता

१४ मई २०१२

सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर अपनी राय देना या बहस करना दिमाग के लिए वैसा ही होता है जैसे खाना खाना या फिर सेक्स. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के नए शोध में यह बात सामने आई है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

फेसबुक पर अपनी या औरों की 'वॉल' पर कुछ लिखने से लोगों को खुशी का एहसास होता है और अगर अपनी कही बात पर कुछ 'लाइक' मिल जाएं या दोस्तों की प्रतिक्रया मिल जाए तब तो सोने पे सुहागा. अपनी बात कहने पर दिमाग को वैसा ही एहसास होता है जैसे किसी काम के लिए शाबाशी मिलने पर होता है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध में इसे खाना खाने या सेक्स के बाद मिलने वाली संतुष्टि जैसा बताया गया है.

यह शोध दो न्यूरोसाइंटिस्ट ने किया है. डायना तामीर और जेसन मिशेल के शोध में कहा गया है कि जब लोग अपने बारे में कुछ लिखते हैं तो उस से दिमाग में एक हलचल होती है और डोपामीन नाम का रसायन सक्रिय हो जाता है. इस रसायन को आनंद के भाव से या शाबाशी मिलने की आस लगाने से जोड़ कर देखा जाता है.

Symbolbild Religion und soziale Medien
तस्वीर: picture-alliance/landov

भावनाएं सबसे बड़ा इनाम

शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि अधिकतर जब लोग किसी से बात करते हैं तो उनकी बात का 30 से 40 फीसदी हिस्सा यह बताता है कि उनकी किसी विषय पर क्या राय है, लेकिन सोशल मीडिया पर बात करते समय यह हिस्सा 80 फीसदी होता है. इस से उन्हें संतुष्टि का एहसास होता है. हालांकि रिपोर्ट में सीधे सीधे फेसबुक का जिक्र नहीं किया गया है. लेकिन रिपोर्ट सोशल नेट्वर्किंग वेबसाइट पर अपनी भावनाएं व्यक्त करने पर आधारित है. शोध में कहा गया है, "यह इंसान को अपने मन की बात का प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है. अपने विचार व्यक्त करने के मौके को वैसे ही समझा जा सकता है जैसे कोई इनाम मिल रहा हो."

हालांकि इंसान और उसकी प्रजाति के अन्य प्राणियों की यह खासियत होती है कि वह इनाम लेने से दूर भी जा सकते हैं. शोध के दौरान कुछ लोगों को नकद पुरस्कार दिया गया. लोगों से कहा गया कि वे या तो कुछ चीजों के बारे में तथ्य बता सकते हैं या फिर अपनी राय दे सकते हैं. तथ्य बताने के लिए अधिक राशि दी गई जबकि अपनी राय के लिए कम. लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों ने अपनी राय बताना पसंद किया. ऐसा इसलिए क्योंकि अपनी बात कहना का मौका मिलने का अनुभव किसी इनाम मिलने जैसा होता है. शोध में इसकी तुलना बंदरों से की गई है जो अन्य बंदरों से दोस्ती करने के लिए फल या रस पर ध्यान नहीं देते.

आईबी/एएम (एएफपी)

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