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सूखे की चपेट में घिरती जा रही धरती, क्या हैं उपाय

नताली मुलर
२६ अगस्त २०२२

जंगल की आग और बाढ़ जैसी मौसमी आपदाओं से उलट सूखा धीरे धीरे रेंगते हुए आता है, और चुपचाप बहुत बड़े पैमाने पर तबाही मचाता है. आखिर किसे कहते हैं सूखा? और इससे खुद को सुरक्षित रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

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Frankreich Umweltkatastrophe Dürre
तस्वीर: Stephane Mahe/REUTERS

प्रचंड तपिश के गर्मियों के मौसम और बारिश की किल्लत से जंगल के जंगल और खेतीबाड़ी झुलस कर रह जाती है. वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यूरोप कम से कम 500 साल में पहली बार अब तक के सबसे बुरे सूखे की चपेट में है.

यूरोपीय आयोग की साइंस और नॉलेज सर्विस के शुरुआती निष्कर्ष इस हफ्ते प्रकाशित हुए हैं. उपरोक्त आकलन उन्हीं नतीजों पर आधारित है. यह ऐसे समय में आया है जब नदियों के जलस्तर में कमी से जलबिजली उत्पादन और जहाजों से माल की ढुलाई पर असर पड़ा है.  

सिर्फ यूरोप ही अकेला प्रभावित क्षेत्र नहीं है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में साढ़े पांच करोड़ लोग सूखे से प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होते हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित महाद्वीप अफ्रीका है जो  44 फीसदी सूखे की चपेट में है.

हालांकि वैज्ञानिक जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे की आवृत्तियां बढ़ गई हैं, वह और तीव्र होने लगा है और उसकी मियाद भी लंबी होने लगी है. इसके बावजूद सूखे का अंदाजा लगाना या निगरानी करना आसान काम नहीं है.

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तो फिर सूखा ठीक ठीक क्या है?

संक्षेप में, सूखे से आशय, वर्षा की कमी से बनने वाली सामान्य से अधिक शुष्क स्थितियों की अवधि से है.

सूखा एक पेचीदा परिघटना है जो हफ्तों, महीनों या कई बार सालों तक खिंच सकता है और अक्सर लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्थाओं पर उसके बहुत बड़े निहितार्थ होते हैं. वैज्ञानिक आमतौर पर सूखे को चार श्रेणियों में बांटते हैं. मीटिरियोलॉजिकल ड्राउट यानी मौसमी सूखा जिसे कहा जाता है वह शुष्क मौसम पैटर्नों, औसत से कम बारिश और बर्फबारी की एक लंबी खिंची अवधि के बाद आता है. जब झरनों, नदियों, जलाशयों और भूजल के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आ जाती है तो उसे हाइड्रोलॉजिकल ड्राउट यानी जलीय सूखा कहते हैं.

यूरोप में भयानक सूखा पड़ा है
यूरोप में सूखे के कारण पैदावर घट गई हैतस्वीर: Pascal Rossignol/REUTERS

एग्रीकल्चरल ड्राउट यानी कृषि सूखा तब होता है जब मिट्टी में नमी कम होने लगती है और उसका असर पौधों और फसलों पर होने लगता है. जब पानी की किल्लत, चीजों की मांग और आपूर्ति पर असर डालती है, जैसे कि जहाजों से माल ढुलाई या जलबिजली उत्पादन में, तो उसे सोशियोइकोनमिक ड्राउट यानी सामाजिकआर्थिक सूखा कहा जाता है.

जर्मनी के लाइपजिष शहर के हेल्महोल्त्स पर्यावरण शोध केंद्र में वैज्ञानिक ओल्डरिष राकोवेक कहते हैं कि उपरोक्त चारों के चारों परिदृश्य या मौसमी बदलाव अक्सर एक साथ टूट पड़ते हैं लेकिन यह हमेशा नहीं होता. यूरोप में मौजूदा हालात ऐसे ही हैं.

राकोवेक कहते हैं, "लेकिन आमतौर पर सबसे पहले मौसमी सूखा ही पड़ता है." बारिश का रिकॉर्ड ही सामान्य रूप से सूखे का पहला संकेत होता है और उसके कुछ समय बाद नदियां सिकुड़ने लगती हैं और वनस्पति सूखने लगती है.

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शुष्क स्थितियों को आधिकारिक रूप से सूखा कब कहते हैं?

अन्य चीजों के साथ साथ वर्षा, वनस्पति की सेहत और मिट्टी की नमी का प्रतिनिधित्व करने वाले अलग अलग सूचकांकों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिक सूखे को मॉनीटर करते हैं. राकोवेक कहते हैं कि लंबी अवधि के डाटा के निरीक्षण के बाद, जब स्थितियां सामान्य कही जाने वाली लकीर को पार कर लेती हैं- तो ये स्पष्ट हो जाता है कि सूखा शुरू हो चुका है. इसी तरह, जब स्थितियां अपनी स्वाभाविक या प्रचलित अवस्था में लौट आती हैं तो सूखे की अवधि समाप्त मान ली जाती है.

हेल्महोल्त्स पर्यावरण शोध केंद्र में जर्मनी का सूखा मॉनीटर मिट्टी में नमी को खंगालकर, कृषि सूखे का आकलन करता है. उसके मॉडल के मुताबिक सूखा तब शुरू हुआ मान लिया जाता है जब मिट्टी की नमी उस स्तर पर पहुंच जाती है जो एक लंबी अवधि के दौरान सिर्फ 20 फीसदी वर्षों में ही देखा गया हो. 

राइन नदी में पानी बहुत कम हो गया है
सूखे के कारण राइन नदी में घटे पानी ने जहाजों को अपना बोझ घटाने पर विवश किया हैतस्वीर: Rina Goldenberg-Huang/DW

इस सप्ताह प्रकाशित यूरोपीय कमीशन के सूखे से जुड़े आकलन में शोधकर्ताओं ने, वर्षा, मिट्टी की नमी और पौधों पर दबाव को मापने वाले एक समन्वित सूखा संकेतक का उपयोग किया था. इसके जरिए उन्होंने ये नतीजा निकाला कि मौजूदा हालात पांच सदियों में सबसे खराब दिखते हैं.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि यूरोप का करीब आधा भूभाग सूखे के लिहाज से चेतावनी के स्तर पर पहुंच चुका है यानी मिट्टी की नमी में साफतौर पर कमी आ चुकी है. 17 फीसदी अलर्ट की अवस्था में था जहां वनस्पति भी प्रभावित हो चुकी है.

सुधार और भविष्य की जरूरतें

किसी क्षेत्र में सुधार की क्षमता इस पर निर्भर करेगी कि वहां पड़ा सूखा कितना गंभीर और कितनी लंबी मियाद वाला है. यह भी, कि मिट्टी को फिर से तर करने लायक, भूजल को रिचार्ज करने लायक और जलाशयों को सराबोर करने लायक, पर्याप्त बारिश हुई है या नहीं.

यूरोपीय आयोग के संयुक्त शोध केंद्र में वरिष्ठ शोधकर्ता आंद्रेया टोरेटी कहते हैं कि सूखों से निपटने के लिए जल प्रबंधन तरीकों में सुधार करना होगा, लोगों को उसमें जोड़ना होगा और ग्लोबल वॉर्मिंग को पूर्व औद्योगिक स्तरों से ऊपर डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर सीमित करना होगा.

सूखे के कारण यूरोप से लेकर एशिया और अफ्रीका से लेकर अमेरिका तक सभी परेशान हैं
सूखे का असर कम करने के लिये नई तकनीकों की जरूरत हैतस्वीर: Pascal Rossignol/REUTERS

टोरेटी कहते हैं, "मध्यम से दीर्घ अवधि में वैश्विक स्तर पर हमें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इतनी कटौती करनी होगी कि वे कम से कम पैदा हों और अतिरिक्त ग्लोबल वॉर्मिंग के जोखिम को कम किया जा सके."

राकोवेक ने जोर देकर कहा कि "प्रचंड सूखे के हालात से निपटने के लिए नये प्रौद्योगिकीय विकास" की जरूरत है.

क्षेत्रीय स्तर पर विशाल जलाशयों का निर्माण, भूमिगत भंडारण, जरूरत के लिए पानी को बचाए रख सकता है. जड़ों तक पहुंचने वाली सिंचाई की स्मार्ट, तेज तकनीक पानी को बेकार जाने से भी रोक सकती है और पौधों को स्वस्थ रख सकती है. राकोवेक कहते हैं कि ताप-निरोधी फसलों को उगाने से सूखे के दौरान होने वाले नुकसान कम किए जा सकते हैं. 

एकल पेड़ों के बजाय मिश्रित वनों को उगाना भी एक अच्छा विचार है. क्योंकि विविध प्रजातियां पानी को बेहतर ढंग से संरक्षित रख सकती हैं और सूखे से बच सकती हैं.

राकोवेक कहते हैं कि अंततः यूरोप को प्रचंडताओं के हिसाब से ढलना ही होगा.

कहां गया हरा भरा यूरोप