सुषमा स्वराज के निधन से दुखी है पूरा देश
७ अगस्त २०१९सुषमा स्वराज के पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे और उनके पति स्वराज कौशल ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ लंबे वक्त तक काम किया. भारत के लोग जिस वक्त कश्मीर को विभाजित करने और उसके विशेषाधिकार को खत्म कर केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने का जश्न मना रहे थे उसी वक्त पूर्व विदेश मंत्री और भारतीय जनता पार्टी की दूसरी पीढ़ी की सबसे प्रखर नेताओं में शामिल सुषमा स्वराज के निधन की खबर आई. सुषमा स्वराज ने भी अपनी मृत्यु से कुछ ही देर पहले इस बात पर खुशी जताई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिनंदन करते हुए ट्वीट किया. यही ट्वीट उनका आखिरी ट्वीट बन गया.
सुषमा स्वराज ने अंबाला से ही राजनीतिक शास्त्र में स्नातक किया और फिर चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान ही 1970 से वे छात्र राजनीति में सक्रिय हो गईं थी. बाद में जनता पार्टी में शामिल हुई और आपातकाल के समय इंदिरा गांधी के खिलाफ जमकर अभियान चलाया. महज 27 साल की उम्र में वे जनता पार्टी के हरियाणा प्रदेश की अध्यक्ष बन गईं.
सुषमा स्वराज दो बार 1977 से 1982 और 1987 से 1990 तक हरियाणा विधानसभा की सदस्य रहीं. इस दौरान 1977 से 1979 तक हरियाणा सरकार में श्रम और रोजगार मंत्री तथा 1987 से 90 तक शिक्षा, खाद्य और सामान्य आपूर्ति मंत्री रहीं. सबसे कम उम्र में कैबिनेट मंत्री बनने का मौका सुषमा स्वराज को ही मिला था. 1990 में वे राज्यसभा के लिए चुनी गईं. 1996 में लोकसभा में पहुंची. इस समय उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय दिया गया. 1998 में दूसरी बार लोकसभा के लिए चुनी गईं. इस बार उन्हें सूचना एवं प्रसारण से साथ दूरसंचार का भी जिम्मा सौंपा गया.
दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री
सुषमा स्वराज 1998 में दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. हालांकि उनका यह कार्यकाल कुछ ही महीनों (19 मार्च से 12 अक्टूबर) का था.
अप्रैल 2000 में वे फिर से राज्यसभा के लिए चुनी गईं. केंद्र में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं. 2003 में उन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय दिया गया. अप्रैल 2006 में तीसरी बार राज्यसभा के लिए चुनी गईं. 2009 के लोकसभा में पहूंची और उन्हें नेता प्रतिपक्ष चुना गया. 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो सुषमा स्वराज को विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई. इंदिरा गांधी के बाद विदेश मंत्री बनने वाली वह पहली महिला थीं.
विदेश मंत्री रहते हुए सुषमा स्वराज ने अलग पहचान बनाई. वे सोशल मीडिया प्लेटफॅार्म टि्वटर पर बहुत सक्रिय रहती थीं. चाहे किसी का पति विदेश में फंस गया हो या कोई खुद कहीं मुसीबत में पड़ गया हो, मात्र एक सूचना मिलते ही सुषमा स्वराज और उनका मंत्रालय उस समस्या को दूर करने में जुट जाता था. उन्हें तुरंत सहायता उपलब्ध करवाई जाती थी.
सोनिया गांधी को चुनौती
बात 1999 लोकसभा चुनाव की है. करीब एक साल पहले सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं थी. उन्होंने इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के अमेठी और कर्नाटक के बेल्लारी दोनों सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला किया. बेल्लारी सीट कांग्रेस का गढ़ था. बावजूद सुषमा स्वराज सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में उतरी. चुनाव प्रचार के दौरान आम लोगों से संपर्क करने में परेशानी न हो, इसके लिए उऩ्होंने एक महीने के अंदर कन्नड़ भी सीख लिया. चुनाव में उन्होंने 'देशी बनाम विदेशी बहू' का नारा दिया था. हालांकि, इस चुनाव में सुषमा स्वराज को हार का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी. सोनिया गांधी मात्र 56 हजार वोटों से ही चुनाव जीत सकीं. चुनाव हारने के बाद सुषमा ने कहा था, 'मैं चुनाव हार गई, लेकिन संघर्ष मेरे नाम रहा.'
वर्ष 2004 में जब यूपीए को बहुमत मिला तो उस समय सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की चर्चा चली. सुषमा स्वराज ने खुलकर इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी विदेशी मूल की हैं. यदि सोनिया प्रधानमंत्री बनती हैं तो वे सिर मुंडा कर, सफेद वस्त्र धारण कर धरती पर सोएंगी. हालांकि, बाद में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया और मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने.
विवादों का साया
विदेश मंत्री रहते उनपर एक विवाद का साया भी पड़ा. आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी की विदेश जाने में कथित रूप से सहायता देने में उनका नाम आया. ललित मोदी पर बीसीसीआई ने आर्थिक गड़बड़ी का आरोप लगाया था इसी दौरान वह विदेश चले गये और भारत आने से इनकार कर दिया. मीडिया में ऐसी खबरें आई कि ललित मोदी ने विदेश जाने के लिए सुषमा स्वराज की मदद ली थी. हालांकि सुषमा स्वराज का कहना था कि उस वक्त उन पर भ्रष्टाचार का मामला नहीं चल रहा था और ललित मोदी ने पत्नी के स्वास्थ्य का हवाला देकर उनसे मानवीय आधार पर मदद मांगी थी.
लंबे समय से बीमार
सुषमा स्वराज लंबे समय से बीमारी के पीड़ित थीं. उन्हें मधुमेह की बीमारी भी थी. वर्ष 2106 में उनका किडनी प्रत्यारोपण हुआ था. काफी वक्त तक वे डायलिसिस पर थीं. शायद यही वजह रही कि उन्होंने वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.
विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज ने भरपूर शोहरत बटोरी. नरेंद्र मोदी के पिछले कार्यकाल में विदेश नीति सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर था और सुषमा स्वराज ने इसे पूरी जिम्मेदारी से निभाया. हिंदी की प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज को देश ने एक ऐसे विदेश मंत्री के रूप में देखा जो दुनिया के किसी भी कोने में उनकी मदद के लिए हर वक्त तैयार रहती थीं और महज एक ट्वीट उन तक पहुंचने के लिए काफी होता था. भारत के पड़ोसी देशों में भी सुषमा स्वराज को बहुत इज्जत मिली क्योंकि इलाज के लिए भारत आने वाले हर शख्स को समय पर वीजा मिले इसके लिए उनके मंत्रालय उनके दौर में विशेष रूप से सक्रिय रहता था. उनके निधन पर पाकिस्तान में भी लोग दुखी हैं.
2016 में जब उनकी किडनी के प्रत्यारोपण की खबर आई तो पूरे देश में उनके लिए हर तबके के लोगों ने ईश्वर से प्रार्थना की और उनके लिए दुआएं मांगी.
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