1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सुरक्षा परिषद पर चीन का साथ चाहेगा भारत

१५ दिसम्बर २०१०

अमेरिका और फ्रांस जैसे बड़े देशों का समर्थन हासिल करने के बाद भारत की कोशिश रहेगी कि यूएन चीन भी भारत की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य की दावेदारी में सहयोग करे. चीन वीटो शक्ति वाले पांच देशों में शामिल है.

https://p.dw.com/p/QYuT
तस्वीर: picture alliance/Photoshot

हाल के दिनों में भारत ने इन पांच देशों के साथ शामिल होने की कसरत तेज कर दी है और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जब भारत पहुंचे तो उन्होंने इसका खुला समर्थन किया. अब प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के भारत दौरे में दिल्ली की कोशिश होगी कि चीन इसमें कोई अडंगा न लगाए.

पाकिस्तान के साथ चीन की नजदीकियों से ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं कि बीजिंग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की पक्की दावेदारी का विरोध कर सकता है. और ऐसे में दिल्ली का रास्ता मुश्किल हो जाएगा. भारत जर्मनी सहित पांच देश अगले महीने से दो साल के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य बन रहे हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि इस दौरान लंबे वक्त से अटके पड़े संयुक्त राष्ट्र सुधारों को पूरा किया जा सकता है.

UN Sicherheitsrat New York Dossierbild 3
तस्वीर: cc-by-sa-Patrick Gruban

1962 में युद्ध के मैदान पर भिड़े पड़ोसी भारत और चीन के फिलहाल अच्छे व्यापारिक संबंध हैं और वैश्विक व्यापार और जलवायु परिवर्तन शिखर वार्ता में पश्चिमी देशों के दबाव के विरोध में दोनों एक साथ खड़े हुए.

चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों के बीच फिलहाल व्यापार 60 अरब डॉलर का है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध सबसे अहम हैं. दोनों ही पक्ष इसे और बढ़ाना चाहते हैं और नई कोशिशें इस दिशा में जारी हैं."

दोनों ही देश कहते आ रहे हैं कि वह आपस में मुक्त व्यापार समझौता करना चाहते हैं लेकिन अभी तक इस पर ज्यादा प्रगति नहीं हुई है. दिल्ली को हमेशा यह आशंका रही है कि चीन अपने सस्ते उत्पाद भारत को बेच देना चाहता है. हालांकि दुनिया में दोनों देशों को उभरती हुई विश्व शक्तियों के तौर पर देखा जाता है, चीन का सकल घरेलू उत्पाद भारत से चार गुना ज्यादा है और वहां की मूलभूत संरचनाएं भारत के खस्ताहाल सड़कों और हवाई अड्डों की तुलना में काफी चमकदार है. गांवों की स्थिति दोनों देशों में एक जैसी है.

नाजुक रिश्ते

व्यापार के चमचमाते संबंधों के पीछे एक अंधेरा सा हिस्सा राजनीतिक और सामरिक अनबन का है. हाल ही में भारत में चीनी के दूत जांग यान ने कहा, "संबंध बहुत नाजुक हैं. उन्हें बहुत आसानी से हानि पहुंचाई जा सकती है और मुश्किल से वह ठीक होते हैं."

Besuch in China Manmohan Singh Wen Jiabao
भारत के प्रधानमंत्री की चीन यात्रातस्वीर: AP

वैश्विक मंच पर जहां चीन और भारत एक साथ खड़े हुए हैं पाकिस्तान और चीन के संबंध और जासूसी करने के मामले पर वह कई बार भिड़े हैं. लंबे समय से चला आ रहा सीमा विवाद तो जारी ही है.

चीन के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत आने के एक महीने बाद हो रही है. इसी साल ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन, फ्रांसिसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी भी भारत आ चुके हैं.

चीनी टेलीकॉम गियर मेकर हुआवेई जिनके उत्पादों पर भारत में जासूसी की आशंकाओं के मद्देनजर पाबंदी लगा दी गई थी, उन्होंने कहा कि वह अगले पांच साल में भारत के साथ दो अरब डॉलर का निवेश करना चाहते हैं तो भारत के अनिल अंबानी का ग्रुप चीनी बैंकों से अरबों रुपये का लोन लेने की तैयारी में है. रिलायंस कम्युनिकेशन चीन बैंक के साथ दस साल के लिए 1.93 अरब का कर्ज लेगा.

भारत में चीन का निवेश कुल मिला कर कम है. यह चीन के कुल विदेशी निवेश का 0.1 फीसदी ही है. चीन के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के हिसाब से यह पाकिस्तान में निवेश की तुलना में 7 गुना कम है.

चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ 400 कारोबारियों के प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली में हैं. भारत और चीन के बीच तीन दिवसीय बातचीत. एशिया के दो मजबूत और प्रतिस्पर्धी देशों के बीच व्यापार होगा केंद्रीय मुद्दा.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम

संपादनः ओ सिंह

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी